साँचा:आज का आलेख १२ सितंबर २०१०
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सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दु ग्रंथों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक श्लोक (१०.७५) में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुए बताया गया है। ऋग्वेद की नदी स्तुति में जिन सात नदियों का जिक्र है क्रमशः वे हैं : सिंधु , सरस्वती,वितस्ता(झेलम), शतुद्रि(झेलम), विपाशा(व्यास),परुष्णी(रावी) और अस्किनी(चिनाब)। तो यह था ऋग्वैदिक काल का सप्तसैन्धव इलाका, ऋग्वेद के दसवें मंडल का ७५ वां सूक्त सिंधु की महिमा का ही गायन है। सरस्वती और दृषद्वती के बीच का इलाका ब्रह्मावर्त था. सरस्वती का जिक्र करते समय तो ऋग्वैदिक ऋषि भावविभोर ही हो उठता है और 'अम्बितमे, नदीतमे, देवीतमे' जैसे सुपरलेटिव्ज़ द्वारा उसकी अभ्यर्थना के गीत गाता है। उत्तर वैदिक ग्रंथों जैसे ताण्डय और जैमिनिय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सुखा हुआ बताया गया है, महाभारत भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नामक जगह में अदृश्य होने का वर्णन करता है। महाभारत में सरस्वती नदी को प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि नामों से भी बताया गया विस्तार में...