सर वाल्टर मॉर्गन(न्यायाधीश)
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (नवम्बर 2021) साँचा:find sources mainspace |
सर वाल्टर मॉर्गन(Walter Morgan) (1821-1903) एक वेल्श न्यायाधीश थे । वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। तत्पश्चात् वह 1871 से 1879 तक मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी रहे ।
जीवन
मॉर्गन का जन्म लैंट्रिसेंट, ग्लैमरगन, वेल्स में हुआ था । उनके पिता का नाम भी वाल्टर मॉर्गन था । उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन में शिक्षा प्राप्त की । उन्होंने मिडल टेम्पल(Middle Temple) में प्रवेश लिया, और 22 नवंबर 1844 को उनको बार में आमंत्रित किया गया । प्रारंभ में इस पेशे में उनकी प्रगति धीमी थी । वह अपना पेशा बदलने की बात सोच रहे थे । तब उन्होंने भारत जाने के विकल्प पर विचार किया ।
मॉर्गन ने इलाहाबाद में मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले कलकत्ता में एक न्यायाधीश के रूप में कार्य किया । वहाँ साम्या विधि(equity law) में उनकी विशेषज्ञता के कारण उन्हें विधि के क्षेत्र के सर्वाधिक विद्वान व्यक्तियों में से एक माना जाता था । वह 1866 से 1871 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे । उन्हें नाइट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। जब स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्ता ने एक वकील(attorney-at-law) के रूप में नामांकित होने के लिए आवेदन किया तो मॉर्गन ने ही उनका आवेदन स्वीकार किया था । इस दौरान उनकी प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई और वह कलकत्ता, बॉम्बे या मद्रास में मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण करने के योग्य माने जाने लगे। मॉर्गन को 1871 में मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां वे 7 फरवरी 1879 तक रहे।
1903 में मॉर्गन की मृत्यु हो गई । वह ईस्टबोर्न में रहते थे।