सरलीकृत तमिऴ् (तमिल) लिपि
सन् १९७८ ई॰ में, तमिऴ् नाडु सरकार ने कुछ तमिऴ् लिपि के अक्षरों में परिवर्तन किये थे, उसे सरल बनाने के लिये।
उनका उद्देश्य ஆ (आ), ஒ (ऒ), ஓ (ओ) और ஐ (ऐ) अक्षरों के अमानक संयुक्ताक्षरों का माननीकरण करना था। ये परिवर्तन केवल भारत में ही विस्तृत हुए, वहीं श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, मॉरिशस, रेयूनियों एवं अन्य तमिऴ् भाषा बोलने वाले देश आज भी परंपरागत तमिऴ् लिपि का ही प्रयोग करते हैं।
हांलाकि प्रस्तावित १५ परिवर्तनों में से केवल १३ परिवर्तन ही सहेजे गये, क्योंकि लोगों ने அய் (अय्) के स्थान पर ஐ (ऐ) और அவ் (अव्) के स्थान पर (औ) का प्रयोग करना जारी रखा।
इतिहास
பெரியார் ஈரோடு வெங்கடப்பா இராசாமி (पॆरियार् ईरोटु वॆङ्कटप्पा इराचामि/पेरियार इरोड वेंकटप्पा रामास्वामी) उन लोगों में से एक था जिन्होंने लिपि परिवर्तन के लिये सुझाव दिया था। सन् १९४७ ई॰ में पेरियार के अन्तर्गत एक लिपि परिवर्तक समिति बनाई गई थी, और १९५१ ई॰ में तमिऴ् नाडु सरकार ने उनके सुझावों को स्वीकृति भी दे दी थी, परन्तु लागु नहीं कर पाई।