सरबजीत सिंह
सरबजीत सिंह | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु का/के कारण | हत्या कोट लखपत जेल में जेल कैदियों द्वारा पाकिस्तान में |
सज़ा | मौत की सजा |
स्थिति | समीक्षाधीन |
मातापिता | सुलक्षण सिंह ढिल्लों |
सरबजीत सिंह (1963 - 2 मई 2013) एक भारतीय नागरिक थे जिन्हें पाकिस्तान ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप लगाकर सजा और प्रताड़ना दी। वे १९९० से पाकिस्तान के कोट लखपत जेल, में थे [१] जहाँ उसी जेल के कैदियों ने हमला करके उन्हें मार दिया।
जीवन
1963/1964 में भारत के पंजाब के गांव भीखीविंद, जिला तरनतारन में पैदा हुये थे। उनके पिता श्री सुलक्षण सिंह ढिल्लों उत्तर प्रदेश रोडवेज में नौकरी करते थे।[२] कबड्डी का बेहतरीन खिलाड़ी सरबजीत मैट्रिक तक की पढ़ाई करने के बाद अपने परिवार की सहायता करने के लिए खेतों में ट्रैक्टर चलाकर आजीविका चलाने लगा और वह 1984 में सुखप्रीत कौर से शादी रचाकर अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगा था। उनसे उसे दो बेटियां पूनमदीप और स्वपनदीप हुई, लेकिन उसे क्या पता था कि किस्मत उसे पाकिस्तान [३] की जेल में ले जाएगी।
28 अगस्त 1990 को उसकी जिंदगी का सबसे मनहूस दिन था। वह शराब के नशे में पाकिस्तान की सीमा में घुस गया, क्योंकि तब तार के बाड़े नहीं होते थे और एक पाकिस्तानी कर्नल ने उसे पकड़कर सात दिन तक रखा, फिर अदालत में पेश कर दिया। अदालत में उसे मंजीत सिंह के नाम से पेश किया गया, क्योंकि इसी नाम से उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया। उन पर भारत के लिए जासूसी करने के आरोप भी लगे। यहीं से उनकी दर्द भरी कहानी [४] शुरू हुई।[५]
एक दर्दनाक कहानी की शुरुआत
पंजाब के तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव के रहनेवाले सरबजीत सिंह की दर्दनाक कहानी शुरु होती है २८ अगस्त[६] १९९० से। इसी दिन शराब के नशे में सरबजीत सिंह सीमा पार गए चले गए जहां उन्हें पाकिस्तानी सेना [७] ने गिरफ्तार किया था। सरबजीत सिंह को रॉ का एजेंट बताते हुए उन्हें लाहौर , मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया। बाद में अक्टूबर १९९१ में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। सरबजीत सिंह के पक्ष में उनके परिवार के साथ साथ मानवाधिकार संगठन भी सामने आए तब पता चला कि सरबजीत के मामले में पाकिस्तान सरकार ने कई फर्जीवाड़े किए हैं। पाकिस्तान की अदालत में जो पासपोर्ट पेश किया गया था उस पर नाम लिखा था खुशी मोहम्मद का लेकिन तस्वीर सरबजीत सिंह की लगाई गई थी। इसी तरह २००५ में पाकिस्तानी ने एक वीडियो जारी करके दावा किया कि सरबजीत सिंह ने अपना जुर्म कबूल लिया है, लेकिन २००५ तक पाकिस्तान सरबजीत सिंह को मंजीत सिंह कहता था। २००५ में ही वो गवाह मीडिया के सामने आया जिसने सरबजीत की पहचान की थी, उसने मीडिया से साफ कहा कि उस पर दबाव डालकर सरबजीत के खिलाफ बयान दिलवाया गया था। लेकिन इन फर्जीवाड़े के बावजूद एक अप्रैल २००८ को सरबजीत को फांसी दिए जाने की तारीख तय कर दी गई थी, हालांकि कूटनीतिक प्रयासों के बाद उनकी फांसी अनिश्चितकाल के लिए टल गई। जून २०१२ में पाकिस्तानी मीडिया में खबर आय़ी कि सरबजीत को रिहा किया जा रहा है लेकिन यह खबर [८] अफवाह साबित हुई. दरअसल पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत के बदले सुरजीत सिंह< की रिहाई का आदेश दिया था। तब से भारत के लोगों में यह उम्मीद जागी कि सरबजीत सिंह रिहा होकर एक दिन अवश्य वापस आएंगे लेकिन आखिर में आयी उनकी मौत की खबर [९]। २६ अप्रैल को लाहौर के कोट लखपत जेल में उनपर जो हमला हुआ वो जानलेवा साबित हुआ।[१०]
आरोप
पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत सिंह [११] ने वर्ष २०१० में ही अपने साथी कैदियों के बुरे व्यवहार के बारे में बताया था। लेकिन इसके बावजूद जेल प्रशासन ने उसकी सुरक्षा पर कोई कदम नहीं उठाए। उसने अपने वकील अवैस शेख को इस संबंध में एक मार्मिक चिट्ठी लिखी। पत्र में उसने अपनी आपबीती बयां की थी। उसने लिखा था कि पाकिस्तान के सरकारी संस्थान (पुलिस और कोर्ट) उसे सरबजीत सिंह से मंजीत सिंह बनाने पर तुले हुए थे, जबकि वह खुद मंजीत सिंह के बारे में नहीं जानता था और उसने पाकिस्तान में क्या किया था, इसका भी इल्म उसे नहीं था। उसने लिखा था, "जेल का स्टाफ और पुलिस और यहां तक कि जेल में बंद कैदी भी मुझे हिकारत भरी नजरों से देखते थे। वे मुझे धमाके करने वाला मानते थे।" सरबजीत ने पाकिस्तानी वकील अवैस शेख का धन्यवाद देते हुए लिखा कि उन्होंने असली मंजीत सिंह को ढूंढ निकाला था। जब सरबजीत को पकड़कर मंजीत सिंह बनाया तो उस वक्त असली मंजीत सिंह इंग्लैंड और कनाडा की सैर कर रहा था। लेकिन बाद में वह पकड़ा गया।
सरबजीत के परिवार के अनुसार वह सीमा पर स्थित अपने गांव से पाकिस्तान में [१२] भटक जाने के बाद वह गलत पहचान का शिकार बन गया।
उसने लिखा था, “जेल का स्टाफ और [१३] पुलिस और यहां तक कि जेल में बंद कैदी भी मुझे हिकारत भरी नजरों से देखते थे। वे मुझे धमाके करने वाला मानते थे। पाकिस्तान में गलती से दाखिल हो गया था। लेकिन मुझे लगता है कि मैं जल्द ही छूट जाऊंगा। मैंने कोई जुर्म नहीं किया था, सिर्फ बॉर्डर ही तो पार किया था।"[१४]
निर्दोष किसान
सरबजीत के परिवार वालों [१५] का कहना है कि वो एक निर्दोष किसान थे और उनको भूल [१६] से कोई और समझकर पकड़ लिया गया है। इसके बाद सरबजीत सिंह पाकिस्तान की अलग-अलग अदालतों [१७] के दरवाजे खटखटाते रहे, लेकिन निचली अदालत की ये सजा उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखी।[१८] एक समाचार पत्र के अनुसार बॉलीवुड गायक मीका सिंह [१२] ने वायदा किया है कि सरबजीत की बेटी का विवाह वो अपने पैसों से करेंगे।
हकीकत
सरबजीत के पाकिस्तानी [१९] वकील ओवैस शेख़ ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश कर मामला फिर से खोलने की अपील की। वकील ओवैस शेख़ ने कोर्ट में दावा किया कि उनका मुवक्किल सरबजीत बेगुनाह है और वो मनजीत सिंह [२०] के किए की सजा काट रहा है। ओवैस शेख़ का कहना था सरबजीत को १९९० में मई-जून में कराची बम धमाकों का [२१] अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तविकता में २७ जुलाई १९९० को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है।
सरबजीत सिंह की मृत्यु
साँचा:refimprove 26 अप्रैल 2013 को तक़रीबन दोपहर के 4.30 बजे सेंट्रल जेल, लाहौर में कुछ कैदियों ने ईंटो, लोहे की सलाखों और रॉड से सरबजीत सिंह पर हमला कर दिया था। बाद में नाजुक हालत में उन्हें जिन्नाह हॉस्पिटल, लाहौर में भर्ती करवाया गया, उस समय वे कोमा में भी चले गये थे और उनकी रीड की हड्डी भी टूट चुकी थी। फिर भी हॉस्पिटल में उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। लेकिन उनपर कितने हमले किये गये थे और क्यों किये गये थे इस बार में पकिस्तान सरकार ने बताने से इंकार कर दिया. सरबजीत की बहन का ऐसा मानना था की उनपर जो हमला किया गया था उसकी पहले से ही योजना बनाई गयी थी। उनकी पत्नी, बहन और 2 बेटियों को उन्हें हॉस्पिटल में देखने की इज़ाज़त दी गयी थी।
29 अप्रैल 2013 को भारत में पकिस्तान को सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील भी की लेकिन भारत की इस अपील को पकिस्तान सरकार ने ख़ारिज कर दिया. सरबजीत के वकील ने भी पकिस्तान कोर्ट में सरबजीत की रिहाई की अपील की लेकिन वे भी इसमें असफल हुए और पकिस्तान सरकार ने सरबजीत को मेडिकल जांच के लिये भारत भेजने की बजाये UK भेजा.
1 मई 2013 को जिन्नाह हॉस्पिटल के डॉक्टरो ने सरबजीत सिंह को ब्रेनडेड घोषित किया लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियो ने इसे मानने से इंकार कर दिया. और उनकी बहन और उनके परिवार को भी भारत वापिस भेज दिया गया. लेकिन भारत आने के बाद उनकी बहन ने दावा किया की डॉक्टर इमानदारी से उनके भाई का इलाज नही करते थे. उनकी बहन का ऐसा कहना है की उन्होंने उनके भाई के अंगूठे पर स्याही का निशान देखा था और जब उन्होंने डॉक्टरो से इस विषय में पूछा था तो उन्होंने इसका जवाब देने से इंकार कर दिया था।
2 मई 2013 को, रात 12.45 बजे लाहौर में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। और उन्हें वेंटिलेटर से भी निकाल लिया गया था। बाद में उनके शव को भारत भेजा गया और पोस्टमार्टम में भारतीय डॉक्टरो ने यह बताया की उनके शरीर के मुख्य अंग निकाल दिए गये थे. और उन्होंने बताया की पकिस्तान में किये गये पोस्टमार्टम में उनके शरीर के साथ छेड़खानी की गयी थी।
सरबजीत सिंह की मृत्यु पर पंजाब सरकार ने राज्य में तीन दिन के शोक की घोषणा की. और उनके परिवार को 10,000,000 का अनुदान देने को घोषणा भी की. उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बन रही है जिसमे ऐश्वर्या राय और रणदीप हुड्डा मुख्य भूमिका निभा रहे है. जो संभवितः मई-2016 को रीलीझ होगी।
सन्दर्भ
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- ↑ सरबजीत की कहानी, एक दुखद अंत- दैनिक भास्कर
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