समाजवादी इंटरनेशनल
समाजवादी इंटरनैशनल (Socialist International) विश्व के लोकतांत्रिक समाजवादी दलों का संघ है जिसका मुख्य कार्यालय लंदन में है। इसका मूल ध्येय मनुष्य द्वारा मनुष्य के तथा राष्ट्र द्वारा राष्ट्र के शोषण का अंत करना और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। सभी महाद्वीपों के मजदूर तथा लोकतांत्रिक समाजवादी दल इसमें हैं और अपनी अपनी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय नीति में स्वाधीन हैं तथा किसी एक मतवाद अथवा पंथ के अनुयायी नहीं हैं। यह इंटरनैशनल अपने सदस्यों में पारस्परिक संबंधों को दृढ़ करने और सहमति के आधार पर उनकी राजनीतिक अभिवृत्तियों को समन्वित करने का प्रयत्न करता है और साम्राज्यविरोधी तथा पूँजीवाद-विरोधी होने के साथ साम्यवाद-विरोधी भी है। प्रथम और द्वितीय इंटरनैशनल के उत्तराधिकारी के रूप में इसने सन् १९६४ में अपनी जन्मशती मनाई।
प्रथम इंटरनैशनल
यूरोप में मशीनी उद्योग तथा पूँजीवाद के उदय के साथ प्रौद्योगिक मजदूरों के संघ और समाजवादी विचारधारा का उदय हुआ और वहाँ के अनेक समाजवादी विचारकों तथा मजदूर नेताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक समाजवादी संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई। सन् १८४७ में कम्युनिस्ट लीग की स्थापना एक ऐसे ही प्रयास का फल थी। इतिहास प्रसिद्ध 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' कार्ल मार्क्स और फीड्रिख ऐंगेल्स ने इसी कम्युनिस्ट लीग के लिए तैयार किया था। किंतु तत्कालीन क्रांति के प्रयासों की विफलता के साथ यह संगठन जल्दी ही नि:शेष हो गया। सन् १८६२ में फ्रांस और ब्रिटेन के मजदूर नेता लंदन में इकट्ठे हुए। उनकी चिंता यह थी कि यूरोप की कुछ सरकारों ने मजदूर हड़तालों को तोड़ने के लिए विदेशी मजदूरों का इस्तेमाल किया था। यहाँ उन्होंने फैसला किया कि इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाया जाए। फलत: सन् १८६४ में लंदन में एकत्र हुए यूरोपीय देशों के मजदूर नेताओं तथा समाजवादी विचारकों के एक सम्मेलन में श्रमिक अंतरराष्ट्रीय संघ (वर्किंग मेंस इंटरनैशनल असोसिएशन) स्थापित हुआ जिसे सामान्यत: 'प्रथम इंटरनैशनल' के नाम से जाना जाता है।
प्रथम इंटरनैशनल की शाखाएँ जल्दी ही यूरोप के विभिन्न देशों में स्थापित हो गईं। इस इंटरनैशनल के उद्देश्य और नियम कार्ल मार्क्स ने तैयार किए थे और जान बूझकर इसलिए नरम रखे गए थे कि संगठन को व्यापक रूप दिया जा सके। सन् १८७१ में पेरिस कम्यून का विप्लव हुआ जिसका प्रथम इंटरनैशनल के कुछ नेताओं ने जोरदार समर्थन किया। परंतु विद्रोह अंत में विफल हो गया जिससे इंटरनैशनल को भारी धक्का लगा। ब्रिटिश ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने सहयोग देना बंद कर दिया। उधर अराजकतावादी माइकेल बुकानिन तथा कार्ल मार्क्स के मतभेद और झगड़ों के कारण इंटरनैशनल बहुत कमजोर हो चुका था और अंत में सन् १८७६ में वह समाप्त हो गया।
द्वितीय इंटरनैशनल
सन् १८८९ में 'समाजवादी इंटरनैशनल के नाम से स्थापित हुआ, किंतु इसका विधिवत् संगठन सन् १९०० में हुआ। इसे आम तौर से द्वितीय इंटरनैशनल के नाम से जाना जाता है द्वितीय इंटरनैशनल के नियामक घटक समाजवादी तथा मजदूर (राजनीतिक) दल थे जो इस बीच यूरोप के अनेक देशों में गठित हो गए थे। समाजवादी इंटरनैशनल समान हित तथा रुचि के मसलों पर विचार करनेवाला एक मंच था जिसके सदस्य अपनी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय नीतियों में पूर्णत: स्वाधीन थे और इंटरनैशनल द्वारा नियंत्रित नहीं थे। युद्ध रोकना और बड़े राष्ट्रों में युद्ध शुरू हो जाने की दशा में अपने अपने देश में व्यापक संघर्ष तथा विप्लव द्वारा सत्ता हस्तगत करना, सन् १९१४ तकश् इंटरनैशनल के विचार का मुख्य विषय बना हुआ था। फिर भी यह इंटरनैशनल मतवैभिन्य के कारण कोई ऐसा निर्णय नहीं ले पाया। उसके स्वीकृत प्रस्ताव युद्ध रोकने तथा शांति बनाए रखने के संकल्प तक सीमित रहे। जब प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो यूरोप के अधिकांश समाजवादी दलों ने युद्ध में अपनी अपनी सरकारों का साथ दिया। युद्धकाल में द्वितीय इंटरनैशनल सर्वथा निष्क्रिय रहा। युद्ध समाप्त हो जाने के बाद सन् १९१८ में जब द्वितीय इंटरनैशनल को मजदूर तथा समाजवादी इंटरनैशनल के नाम से पुनर्गठित किया गया तो लेनिनवादी-मार्क्सवादी दल उसमें शामिल नहीं हुए और उन्होंने लेनिन के नेतृत्व में तृतीय इंटरनैशनल कायम किया सन् १९३९ में दूसरा विश्वयुद्ध शुरु होने पर द्वितीय इंटरनैशनल फिर निष्क्रिय हो गया। युद्ध समाप्त होने पर, रूस के प्रभाव में आए पूर्वी यूरोप के समाजवादी दलों की विषम स्थिति के कारण, द्वितीय इंटरनैशनल को पुनरुज्जवीति नहीं किया गया और सन् १९४६ में उसे समाप्त कर दिया गया। इसके बाद सन् १९४८ में 'कोमिस्को' नाम से लोकतांत्रिक समाजवादी दलों का एक नया समाजवादी अंतरराष्ट्रीय मंच बना जिसे सन् १९५१ में 'समाजवादी इंटरनैशनल' में बदल दिया गया।
तृतीय इंटरनैशनल
प्रथम विश्वयुद्ध में यूरोप के अधिकांश समाजवादी दलों ने अपनी युद्धरत राष्ट्रीय सरकारों के साथ सहयोग किया था जिससे मार्क्सवादी तत्व असंतुष्ट थे। उन्होंने युद्धकाल में ही लेनिन के नेतृत्व में अपनी बैठकें की थीं और समाजवादी दलों से अपनी युद्धरत सरकारों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति तथा व्यापक विद्रोह करने का आह्वान किया था। १९१७ में रूस में बोलशेविक क्रांति हो गई। फलत: सन् १९१८ में विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने पर लेनिन के नेतृत्व में एक तीसरा इंटरनैशनल कम्युनिस्ट इंटरनैशनल (कोमिनटर्न) बना जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व में समाजवादी क्रांति को चरितार्थ करना था। यह इंटरनैशनल सन् १९४३ तक स्तालिन और रूस के नेतृत्व में काम करता रहा। दुनिया की कम्युनिस्ट पार्टियों का नेतृत्व इस इंटरनैशनल के माध्यम से होता था। दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि गैरकम्युनिस्ट राष्ट्र रूस के साथ थे। अत: 'मित्र राष्ट्रों' के दबाव के फलस्वरूप तृतीय इंटरनैशनल को सन् १९४३ में भंग कर दिया गया।
कोमिनफार्म
दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होने पर सन् १९४७ में रूस के नेतृत्व में यूरोप के कम्युनिस्ट दलों का एक नया अंतरराष्ट्रीय मंच 'कोमिनफार्म' के नाम से बना जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रों के कम्युनिस्ट दलों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान करना था। किंतु हंगरी के आंतरिक विद्रोह के बाद सन् १९५६ में 'कोमिनफार्म विघटित कर दिया गया।