समवाय सम्बन्ध
वैशेषिक दर्शन में स्वीकृत सात पदार्थों में छठा पदार्थ 'समवाय संबंध' है।
संबंध नित्य और अनित्य होते हैं। संयोग अनित्य संबंध है जैसे कलम का कागज से। पर कलम का कलम के रंग से नित्य संबंध है। अत: ऐसे संबंध को जिसके बिना वस्तु की सत्ता ही न रहे समवाय संबंध कहते हैं। द्रव्य का गुण से, द्रव्य का क्रिया से, अवयव का अवयवी से, जाति का व्यक्ति से तथा नित्य द्रव्य का विशेष से समवाय संबंध होता है। गुण, क्रिया आदि से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान विशेषण और विशेष्य के संबंध के ज्ञान से होता है, अत: गुण, क्रिया आदि का गुणी, क्रियावान् आदि से कोई संबंध अवश्य होगा। यह संबंध संयोग से भिन्न है अत: इसको अलग पदार्थ माना गया।
सगुण वस्तु गुण और द्रव्य का, अवयवों का समूह मात्र नहीं है। यह उनके समूह से विशिष्ट है। यह वैशिष्ट्य समवाय संबंध के कारण है। बौद्ध तथा मीमांसा दर्शनों में अवयवी को अवयवों का समूह मात्र माना गया है, अत: समवाय का खंडन किया गया है। न्याय दर्शन ने समवाय को तार्किक दृष्टि से पुष्ट किया।