संसदीय विधि
संसदीय विधि या संसदीय प्रक्रिया, के उन समस्त नियमों का समूह है जो विधायन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए सामान्य रूप से आवश्यक माने जाते हैं। यद्यपि देश-काल के अनुरूप ऐसे नियम कुछ विषयों में अलग-अलग हो सकते हैं किंतु संसदीय विधि का मूल स्रोत इंग्लैड की संसद् के वे नियम है जिनके अनुसार विधिनिर्माण, कार्यपालिका पर नियंत्रण तथा आर्थिक विषयों के नियमन हेतु ऐसी प्रक्रियाएँ बनाई जाती है जिनसे इन विषयों पर सदन का मत ज्ञात होता है। वेस्टमिंस्टर प्रक्रिया में सर्वप्रथम संसद् के सत्र को संप्रभु, राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल आहूत करता है। सत्र आरंभण के पश्चात् सदन का कार्यसंचालन सदन का अध्यक्ष (जिसे सभापति भी कहते हैं) करता है। अध्यक्ष विभिन्न विषयों पर सदन का मत विभिन्न प्रकार के प्रश्नों, प्रस्तावों तथा उनपर मतगणना के परिणामों से ज्ञात करता है। अत: प्रस्तावों तथा संबंधित प्रश्नों और समुचित रूप से विचार करने के लिए एक कार्यसूची बनाई जाती है जिसके अनुसार प्रस्तावक अथवा प्रश्नकर्ता के लिए समय नियत किया जाता है।
संसदीय प्रक्रिया का इतिहास व विभिन्न रूप
16 वीं और 17 वीं शताब्दी में, इंग्लैंड के प्रारंभिक संसदों में अनुशासन के नियम थे। 1560 के दशक में सर थॉमस स्मिथ ने स्वीकृत प्रक्रियाओं को लिखने की प्रक्रिया आरम्भ की और 1583 में हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए उनके बारे में एक पुस्तक प्रकाशित की।[१] प्रारंभिक प्रक्रिया में निम्न नियम शामिल थे:
- एक समय में एक विषय पर ही चर्चा होनी चाहिए (1581 को अपनाया गया)[१]
- व्यक्तिगत हमलों को बहस में टाला जाना चाहिए (1604)[१]
- चर्चा प्रश्न के गुणों तक सीमित होनी चाहिए (1610)[१]
- जब प्रश्न के एकाधिक हिस्से हों तब प्रश्न का विभाजन होना चाहिए (1640)[१]
वेस्टमिंस्टर प्रक्रिया
वेस्टमिंस्टर प्रणाली का पालन यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत अधिकांश राष्ट्रमंडल देशों में होता है, जिनमे ब्रिटिश संसद में वर्षों में विकसित हुई परंपरा से निकली प्रक्रिया के अनुरूप नियमों का पालन होता है। मसलन, भारत, कनाडा इत्यादि देशों की संसदीय प्रक्रिया संहिता ब्रिटेन में इस्तेमाल किये जाने वाली प्रक्रिया के आधार पर निर्मित की गयी है।[२]
अमेरिकी प्रक्रिया
अमेरिकी कांग्रेस के लिए संसदीय प्रक्रिया को ब्रिटिश प्रक्रिया के आधार पर थॉमस जेफ़र्सन द्वारा निर्मित किया गया था, इसमें ब्रिटिश नियमों से कुछ भिन्नता थी, मुख्यतः उसे गणतांत्रिक मूल्यों और अध्यक्षीय व्यवस्था के अनुरूप बनाया गया है।[३] यह अथवा इससे प्रेरित संसदीय व्यवस्थाएँ इंडोनेशिया, फिलीपींस, मेक्सिको और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी पायी जाती है।
जापान
जापान के डाइट की प्रक्रियाओं को मूल रूप से ब्रिटिश प्रणाली के आधार पर डिजाइन किया गया था, लेकिन यह समय के साथ ब्रिटिश संसदीय मॉडल से दूर हो गया। अमेरिकी अधिकृत-जापान में, जापानी संसदीय प्रथाओं को अमेरिकी संसदीय प्रक्रियाओं के अधिक अनुरूप लाने का प्रयास किया गया था।[४] जापान में, औपचारिक प्रक्रियाओं की तुलना में अनौपचारिक बातचीत अधिक महत्वपूर्ण होती है।[५]
इटली
इटली में नियमों के लिखित कोड संसद के सदनों के जीवन को नियंत्रित करते हैं: संवैधानिक न्यायालय उन सीमाओं को निर्धारित करता है, जिनके पार ये नियम नहीं जा सकते।[६]
संसदीय प्रश्न
प्रश्नों का मुख्य उद्देश्य कार्यपालिका (सरकार) पर नियंत्रण रखना होता है। कार्यपालिका के अनुचित कृत्यों अथवा अन्य त्रुटियों पर प्रश्नोत्तर के समय अध्यक्ष अपनी व्यवस्थाएँ देता है। ऐसे समय केवल संसदीय भाषा का प्रयोग अपेक्षित होता है। कोई ऐसा प्रश्न नहीं उठाया जा सकता जो न्यायालय के विचाराधीन हो अथवा किसी कारण से अध्यक्ष उसको आवश्यक नहीं समझता। सामान्य रूप से प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम, अल्पसूचित प्रश्न जिनके सार्वजनिक महत्व के होने के कारण उनका उत्तर अध्यक्ष की व्यवस्थानुसार तुरंत ही संबंधित मंत्री को देना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो अध्यक्ष मंत्री को कुछ और समय देने की व्यवस्था दे सकता है। द्वितीय, तारांकित प्रश्न जिनका उत्तर शासन की ओर से मौखिक दिया जाता है। तृतीय, अतारांकित प्रश्नों का लिखित उत्तर दिया जाता है। उत्तर अपर्याप्त होने की दशा में अध्यक्ष अनुपूरक प्रश्नों की अनुमति भी दे सकता है।
प्रश्नकाल
प्रश्नकाल, संसदीय कार्रवाई की शुरुआत में कुछ आरक्षित समय (सामान्यतः १ घंटो) के लिए होता है जिसमें केवल प्रश्न किए जाते हैं और उनके उत्तर दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, खोजी और अनुपूरक प्रश्न पूछने से मंत्रियों का भी परीक्षण होता है कि वे अपने विभागों के कार्यकरण को कितना समझते हैं। प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पर होने वाले कटु तर्क-वितर्क से सदन का वातावरण सामान्यतः अनिश्चित होता है। कुछ प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है। इन्हें तारांकित प्रश्न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्नों का लिखित उत्तर दिया जाता है। इस काल के दौरान प्रश्नों की प्रक्रिया अपेक्षतः सरल और आसान है।
शून्यकाल
‘शून्यकाल’ अथवा जीरो आवर के नाम से जाना जाने लगा है। सी दौरान मामले बिना अनुमति के या बिना पूर्व सूचना के उठाए जाते हैं। अतः नियमों की दृष्टि से तथाकथित शून्यकाल एक अनियमितता है। प्रश्नकाल के समाप्त होते ही सदस्यगण ऐसे मामले उठाने के लिए खड़े हो जाते हैं जिनके बारे में वे महसूस करते हैं कि कार्यवाही करने में देरी नहीं की जा सकती। हालाँकि इस प्रकार मामले उठाने के लिए नियमों में कोई उपबंध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रथा के पीछे यही विचार रहा है कि ऐसे नियम जो राष्ट्रीय महत्व के मामले या लोगों की गंभीर शिकायतों संबंधी मामले सदन में तुरंत उठाए जाने में सदस्यों के लिए बाधक होते हैं, वे निरर्थक हैं। ‘शून्यकाल’ 12 बजे प्रारंभ होने के कारण इस नाम से जाना जाता है इसे ‘आवर’ भी कहा गया क्योंकि पहले ‘शून्यकाल’ पूरे घंटे तक चलता था, अर्थात 1 बजे दिन में सदन का दिन के भोजन के लिए अवकाश होने तक।
प्रस्ताव
सदन का मत प्रस्ताव तथा उसपर मतगणना से भी ज्ञात किया जाता है। मुख्य रूप से प्रस्ताव दो प्रकार के होते हैं। प्रथम मुख्य प्रस्ताव, द्वितीय गौण प्रस्ताव। गौण प्रस्ताव उचित रूप से सूचित एवं अध्यक्ष की अनुज्ञा से उपस्थित किए गए मुख्य प्रस्ताव पर विवाद के समय रखे जाते हैं, जैसे कार्य स्थगित करने के लिए प्रस्ताव। यह प्रस्ताव मुख्य प्रस्ताव को छोड़कर किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। विवादांत प्रस्ताव का उद्देश्य किसी प्रश्न पर अनावश्यक विवाद को समाप्त करना होता है। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर प्रश्न तुरंत सदन के समक्ष मतगणना के लिए रख दिया जाता है। मुख्य प्रस्ताव के संशोधन अथवा उसपर विचार करने हेतु निर्धारित समय को बढ़ाने हेतु भी गौण प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा सकते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रकार का प्रस्ताव सदन के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी मंत्री या मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी होता है। इस प्रस्ताव के उचित रूप से सूचित करने के पश्चात् उसपर विचार किकया जाता है। प्रस्तावों पर नियमानुसार विचार के उपरांत मतगणना की जाती है। मतदान का कोई रूप प्रयुक्त किया जा सकता है, जैसे हाथ उठवाकर, प्रस्ताव के पक्ष एवं विपक्ष के सदस्यों को अलग अलग खड़ा करके, एक एक से बात करके अथवा गुप्त मतदान पेटी में मतदान करवा कर। यदि आवश्यक समझा जाए तो प्रथम तथा द्वितीय वाचन के बाद किंतु तृतीय वाचन के पूर्व विधेयक पर पूर्ण विचार करने के लिए प्रवर अथवा अन्य समितियों को विषय सौंप दिया जा सकता है।
सदन लोक महत्व के विभिन्न मामलों पर अनेक फैसले करता है और अपनी राय व्यक्त करता है। कोई भी सदस्य एक प्रस्ताव के रूप में कोई सुझाव सदन के समक्ष रख सकता है। जिसमें उसकी राय या इच्छा दी गई हो। यदि सदन उसे स्वीकार कर लेता है तो वह समूचे सदन की राय या इच्छा बन जाती है। अंत: मोटे तौर पर विभिन्न प्रकार के संसदीय प्रस्ताव सदन का फैसला जानने के लिए सदन के सामने लाया जाता है। सदनों के नियमों में लोक महत्व के मामले बिना देरी के और कई प्रकार से उठाने की व्यवस्था है। जो विभिन्न प्रक्रियाएं प्रत्येक सदस्य को उपलब्ध रहती हैं वे इस प्रकार हैं:
- ध्यानाकर्षण
इसके द्वारा कोई भी सदस्य सरकार का ध्यान तत्काल महत्व के मामले की और दिला सकता है। मंत्री को उस मामले में बयान देना होता है। ध्यानाकर्षण करने वाले प्रत्येक सदस्य को एक प्रश्न पूछने का अधिकार होता है।
- आपातकालीन चर्चाएं
इनके द्वारा तत्काल महत्व के प्रश्नों पर एक घंटे की चर्चा की जा सकती है। हालाँकि इस पर मतदान नहीं होता।
- विशेष उल्लेख
हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि किस तरह ऐसे मामले उठाने का प्रयास करते हैं जिनका नियमों एवं विनियमों की व्याख्या से कोई संबंध नहीं होता। लेकिन ये मामले उस समय उन्हें और उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को उत्तेजित कर रहे होते हैं। जो मामले व्यवस्था के प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्नों, अल्प-सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से संबंधित नियमों के अधीन नहीं उठाए जा सकते, वे इसके अधीन उठाए जाते हैं।
मंत्रिपरिषद तब तक पदासीन रहती है जब तक उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त हो। लोक सभा द्वारा मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करते ही सरकार को संवैधानिक रूप से पद छोड़ना होता है। नियमों में इस आशय का एक प्रस्ताव पेश करने का उपबंध है जिसे ‘अविश्वास प्रस्ताव’ कहा जाता है। राज्यसभा को अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।
निंदा प्रस्ताव अविश्वास के प्रस्ताव से भिन्न होता है। अविश्वास के प्रस्ताव में उन कारणों का उल्लेख नहीं होता जिन पर वह आधारित हो। परंतु निंदा प्रस्ताव में ऐसे कारणों या आरोपों का उल्लेख करना आवश्यक होता है। यह प्रस्ताव कतिपय नीतियों और कार्यों के लिए सरकार की निंदा करने के इरादे से पेश किया जाता है। निंदा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के विरूद्ध या किसी एक मंत्री के विरूद्ध या कुछ मंत्रियों के विरूद्ध पेश किया जाता है। उसमें किसी मंत्री या मंत्रियों की विफलता पर सदन द्वारा खेद, रोष या आश्चर्य प्रकट किया जाता है।
- स्थगन प्रस्ताव
इसके द्वारा लोक सभा के नियमित काम-काज को रोककर तत्काल महत्वूपर्ण मामले पर चर्चा कराई जा सकती है।
- संकल्प
संकल्प भी एक प्रक्रियागत उपाय है यह आम लोगों के हित के किसी मामले पर सदन में चर्चा उठाने के लिए सदस्यों और मंत्रियों को उपलब्ध है। सामान्य रूप के प्रस्तावों के समान संकल्प, राय या सिफारिश की घोषणा के रूप में हो सकता है। या किसी ऐसे अन्य रूप में हो सकता है जैसा कि अध्यक्ष उचित समझे।
संसदीय विशेषाधिकार
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सदन का कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए सदन को संयुक्त रूप से तथा प्रत्येक सदस्य को व्यक्तिगत रूप से परंपरातर्गत कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते है, जिन्हें संसदीय विशेषाधिकार कहा जाता है। उदाहरणार्थ सदन में भाषण का अप्रतिबंधित अधिकार, सदन की कार्यवाही का विवरण प्रकाशित अथवा न प्रकाशित करने, अजनबियों को हटाने, सदन को अपनी संरचना करने एवं प्रक्रिया स्थापित करने का पूर्ण अधिकार होता है। इसके अतिरिक्त कोई भी सदस्य सत्र आरंभण के चालीस दिन पहले एवं सत्रांत के चालीस दिन पश्चात् तक बंदी नहीं बनाया जा सकता, यदि उसके ऊपर कोई अपराध करने, निवारक नजरबंदी या न्यायालय अथवा सदन के अवमान का आरोप न हो। यदि किसी सदस्य ने अथवा अन्य किसी ने उपर्युक्त विशेषाधिकारों की अवहेलना की है तो यह सदन के अवमान (कंटेप्ट) का प्रश्न बन जाता है और इसके बदले सदन को स्वयं अथवा विशेषाधिकार समिति के निर्णय पर दोषित व्यक्ति को दंड देने का पूर्ण अधिकार प्राप्त रहता है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ ई उ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ Jefferson, Thomas. (1820). A manual of parliamentary practice for the use of the Senate of the United States, p. vi स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
- ↑ Reischauer, Edwin O. and Marius B. Jansen. (1977). The Japanese Today: Change and Continuity, p. 250 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
- ↑ Mulgan, Aurelia George. (2000). The Politics of Agriculture in Japan, p. 292 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
- ↑ The "functionalist" criterion (set by the Bill, on the initiative of Senator Maritati: Bill n. 1560/XVI) identified – inside parliamentary Institutions – acts of political bodies which, on the one hand, are not linked to the functions (legislative, political address or inspection) but which, on the other hand, are not classified as high-level administration: साँचा:cite journal(सब्सक्रिप्शन आवश्यक)
बाहरी कड़ियाँ
- भारतीय संसदीय प्रक्रियासाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] (सारांश माला)
- तब कांग्रेस की “संसदीय प्रक्रिया ” कहाँ थी ?
- Compedium of Procedure for Canada's House of Commons
- National Conference of State Legislatures: Mason's Manual vs. Robert's Rules of Order
- Using Mason's Manual — National Conference of State Legislatures (ncsl.org)
- National Association of Parliamentarians (parliamentarians.org)
- American Institute of Parliamentarians (parliamentaryprocedure.org)
- Robert McConnell Productions (parli.com)
- Canadian Political Science Student Association
- Parliamentary Procedure Online! (parlipro.org)
- Robert's Rules Online! (rulesonline.com)
- SBAY Networked Meeting Procedures by the South Bay Community Network for use in online meetings