श्रेणी:भारतीय भूगोलवेत्ता
गजानंद सैनी-1980 के दशक में भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश के अर्धशुष्क क्षेत्र दक्षिण हरियाणा के नारनौल के एक कॉलेज से भूगर्भ शास्त्र में एम.एस.सी. करने के कई साल बाद गजानंद सैनी तरक्की करता हुआ स्वीडन के उत्तर में स्थित किरूना नगर (62°52'N;20°15'E) में स्थित एक लौह अनुसंधान संस्थान में नौकरी पा गया। किरूना सारा साल सर्द रहता है और यहां सर्दीयो का अर्थ है- हड्डियों को कंपाने वाली भीषण पवने और भारी हिम। यहां महीने तक आकाश अदीप्त रहता है। गजानंद सैनी प्रात: 8 बजे अंधेरे में अपनी विशाल ए.सी.कार चलाकर दफ्तर जाता है। सर्दियों में हिम पर चलने के लिए उसकी कार में विशेष टायर लगे हैं। उसकी कार की शक्तिशाली लाइटें उसे कहीं भी अंधेरे में दिक्कत नहीं आने देतीं। जिस दफ्तर में वह काम करता है, वह कांच के एक विशाल गुम्बद के नीचे बना हुआ है। यह गुबंद सर्दियों में हिम को बाहर रखता है और गर्मियों में धूप को अंदर आने देता है। गजानंद का कार्यालय सुविधाजनक 24 डिग्री सेल्सियस पर कृत्रिम ढंग से गर्म रहता है। तापमान को सावधानी पूर्वक नियंत्रित किया जाता है और वहां प्रर्याप्त प्रकाश रहता है। यद्यपि ऐसे रूक्ष मोसम में ताज़ी सब्जियां और फल नहीं उगते। गजानंद अपनी टेबल पर आर्किड रखता है और अपने जन्म स्थान पर पाए जाने वाले फ़लो 🍌 बेर,चीकू और 🥗 में हरे प्याज़ का आनंद लेता है। यह फल नियमित रूप से वायुयान द्वारा उष्ण क्षेत्रों से मंगवाएं जातें हैं। गजानंद सैनी ने एक अपना व्यक्तिगत हैलिकॉप्टर भी खरीद रखा है। 🐁 की एक टक से वह इंटरनेट के जरिए महेन्द्रगढ़ में आपने परिजनों से व दिल्ली, रूड़की, मुम्बई,व न्यूयार्क में अपने सहकर्मियों से जुड़ जाता है। वह प्राय पोलैंड की राजधानी वारसा के लिए सुबह की उड़ान लेता है और शाम को अपने मनपसंद क्लब में अपने मित्रों के साथ जिम ज्वाइन करता है। यद्यपि गजानंद सैनी 45 वर्षीय है फिर भी वह विश्व के अन्य हिस्सों के लोगों से अधिक युवा और तरोताजा दिखाई पड़ता है।
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