श्रेणी:चुनाव प्रणाली

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1. प्रस्तावना:

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प्राय: सभी लोकतान्त्रिक देशों में संविधान द्वारा नागरिकों को कुछ अधिकार दिये गये हैं । ये अधिकार सामाजिक जीवन की वे बुनियादी परिस्थितियां हैं, जिसके बिना साधारणत: कोई मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर पाता ।

इन्हीं अधिकारों के फलस्वरूप नागरिक स्वतन्त्रताओं का उपयोग और अपने व्यक्तिव का सर्वागीण विकास करते हैं । भारत के नागरिकों को भी संविधान द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकार दिये गये हैं । कानून की भाषा में इसे मौलिक अधिकार कहते हैं । ये अधिकार दो प्रकार से मौलिक हैं:

1. संविधान द्वारा देने के कारण यह देश का मौलिक कानून है, अत: संविधान इनकी रक्षा की व्यवस्था भी करता है ।

2. सरकार इन मौलिक अधिकारों के विरुद्ध या इसे सीमित करने के लिए कोई कानून बनाती है, तो ऐसा कानून असंवैधानिक होगा, जिसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है । न्यायालय उसे अमान्य घोषित कर सकता है ।

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मानव के मौलिक पहलुओं और प्राकृतिक पहलुओं पर होने के कारण ये सार्वभौमिक अधिकार होते है । न्यायाधीश के॰ सुबाराव ने कहा था परम्परागत प्राकृतिक अधिकारों का दूसरा नाम मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अपरिहार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं । व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता ।

2. मौलिक अधिकारों की विशेषताएं:

श्री एन॰एन॰ पालकीवाला के अनुसार: “मौलिक अधिकार राज्य के निरंकुश स्वरूप से साधारण नागरिकों की रक्षा करने वाले कवच हैं ।” मौलिक अधिकारों को भारत संविधान की आत्मा औए हृदय भी कहा जा सकता है । भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को जो 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिये गये हैं, उनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. सर्वाधिक व्यापक अधिकार:  भारतीय संविधान के तृतीय भाग में अनुच्छेद न 2 से 30 तक तथा 32 से 35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन है । मौलिक अधिकारों की सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि विश्व के अन्य देशों के संविधानों की तुलना में सर्वाधिक विस्तृत एवं व्यापक है ।

2. समानता पर आधारित:  भारतीय संविधान में वर्णित अधिकार भेदभाव बिना समानता के आधार पर सभी को प्राप्त है । अल्पसंख्यक, अनुशचइत जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष व्यवस्थाएं इसमें की गयी हैं । समाज के सभी वर्गो धर्मो के लिए समान मौलिक अधिकार दिये गये हैं ।

3. व्यावहारिक:  भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार कोरे सिद्धान्त न होकर व्यावहारिकता पर आधारित हैं ।

4. नकारात्मक एवं सकारात्मक अधिकार:  भारतीय संविधान में नागरिकों को दिये गये अधिकार सीमित व मर्यादित हैं । उन्हें सकारात्मक अधिकार कहा जाता है । नकारात्मक अधिकारों में निषेधाज्ञा के रूप में वे अधिकार आते हैं, जो शक्तियों को सीमित व मर्यादित करते हैं ।


5. सरकार की निरंकुशता पर अंकुश:  मौलिक अधिकार प्रत्येक भारतीय की पहचान एवं उसकी स्वतन्त्रता के द्योतक हैं । भारतीय सरकार इस पर मनमानी करते हुए प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती ।

6. राज्य के सामान्य कानूनों से ऊपर:  मौलिक अधिकार को देश के सर्वोच्च कानूनों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है ।

7. न्यायालय द्वारा संरक्षित:  मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रत्येक भारतीय अनुच्छेद 32 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में शरण ले सकता है ।

8. भारतीय नागरिकों तथा विदेशियों में अन्तर:  भारतीय तथा अप्रवासी विदेशी नागरिकों के लिए दिये गये मौलिक अधिकारों में यह अन्तर है कि विदेशियों को जीवन व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार है, किन्तु वे भारतीय नागरिकों की तरह समस्त मौलिक अधिकारों का उपभोग नहीं कर सकते ।

3 मौलिक अधिकारों का स्वरूप:

मौलिक अधिकारों के स्वरूप में निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं:

(क) समता का अधिकार यह अधिकार इस बात की व्यवस्था करता है कि कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं । जाति, लिंग, स्थान तथा वर्ण आदि के आधार पर राज्य नागरिकों से कोई भेदभाव नहीं करेगा । किसी भी नागरिक को सार्वजनिक भोजनालयों, दुकानों, मनोविनोद, धार्मिक स्थलों पर जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर जाने से नहीं रोका जा सकेगा ।

सभी को राज्य के अधीन नौकरियों में नियुक्ति के अधिकार बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हैं । इस अधिकार में अस्पृश्यता का अन्त कर इसे दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है । सैनिक तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी उपाधियों और खिताबों को समाप्त कर दिया गया है । इसके अन्तर्गत यह अपवाद है कि सरकार बच्चों, स्त्रियों, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जातियों को विशेष सुविधा प्रदान करेगी ।

(ख) स्वतन्त्रता का अधिकार:  इस अधिकार के अन्तर्गत 6 प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है: 1. भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता । 2. शान्तिपूर्ण एकत्र होने की स्वतन्त्रता । 3. संघ तथा समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता । 4. भारतीय क्षेत्र के भीतर कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता ।

5. व्यापार, आजीविका तथा कारोबार की स्वतन्त्रता । 6. भारत के किसी भी भाग में बसने तथा निवास करने की स्वतन्त्रता । ये सभी स्वतन्त्रताएं मानव विकास के लिए आवश्यक हैं । सरकार देश की प्रमुसता एवं अखण्डता के हित में नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में इन अधिकारों को सीमित कर सकती है ।

संविधान में यह महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है कि किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है । जब तक किसी व्यक्ति ने किसी कानून की अवहेलना का अपराध न किया हो, तब तक उसे जीवन या सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता ।

किसी भी व्यक्ति को गिरफतारी से पूर्व उसका कारण बताना आवश्यक है । प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घण्टे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सम्मुख पेश करना अनिवार्य है । ऐसे व्यक्ति को स्वयं तथा वकील के माध्यम से अपनी सफाई पेश करने का अवसर दिया जाता है । संविधान में इस बात का ध्यान भी रखा गया है कि किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का अनुचित ढंग से उपहरण नहीं होना चाहिए ।

यदि देश की एकता, अखण्डता, शान्ति, सुरक्षा का मामला है, तो उसे 24 घण्टे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष बन्दी बनाये जाने वाले व्यक्ति को पेश करना अनिवार्य नहीं रहता । इसको नजरबन्दी कहते हैं । सामान्यत: किसी व्यक्ति को 3 माह से अधिक समय के लिए नजरबन्द नहीं किया जा सकता । इससे अधिक देर तक नजरबन्द करने के लिए उच्च न्यायालय की सिफारिश के अनुसार नियुक्त मण्डल के समक्ष मामले को रखना पड़ता है ।

न्यायालय में 5 उपचार उपयोग में लाये जाते हैं:

1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण:  इसका अर्थ है-सशरीर उपस्थिति । यदि बन्दी बनाये गये व्यक्ति के विरुद्ध पर्याप्त कारण नहीं हैं, तो उसे रिहा किया जा सकता है ।

2. परमादेप्तीं लेख: इसका अर्थ है: हम आज्ञा देते हैंजब कोई सरकारी विभाग या अधिकारी सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन नहीं करता, जिसके परिणामस्वरूप मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो न्यायालय के द्वारा इस लेख से अधिकारी को कर्तव्य पालन का आदेश दे सकता है ।

3. प्रतिशेध लेख:  इसका अर्थ है-रोकनए । यह आज्ञापत्र उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालय को किसी मुकदमे की कार्रवाई स्थगित करने के लिए निर्गत किया जाता  है । उनके द्वारा यह आदेश दिया जाता है कि वे मुकदमे की सुनवायी न करे, तो उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है ।

4. उत्सेक्षण लेख:  इस लेख का अर्थ है-पूर्णत: सूचित करना । जब कोई मुकदमा उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर होता है और न्याय के प्राकृतिक सिद्धान्तों के दुरूपयोग की सम्भावना होती है, तो उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से किसी मुकदमे के विषय में सूचनाएं भी लेख के आधार पर मांग सकता है ।

5. अधिकार पृच्छा लेख:  इस लेख का अर्थ है-किसी अधिकार से जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद को अवैधानिक तरीके से प्राप्त कर लेता है, तो न्यायालय इसके द्वारा उसके विरुद्ध पद को खाली करने का निर्देश देता है ।

इस आदेश द्वारा न्यायालय सम्बन्धित व्यक्ति से यह पूछता है कि वह किस अधिकार से इस पद पर कार्य कर रहा है ? जब तक इस प्रश्न का सम्यक एवं सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिल जाता, तब तक वह उस पद पर कार्य नहीं कर सकता ।

(ग) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार: भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है अत: हमारे देश के सभी नागरिकों को अपने धर्म में विश्वास रखने, उसका प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है ।

(घ) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार: इस अधिकार के अनुसार भारत या उसके भू-भाग में रहने वाले प्रत्येक नागरिक या नागरिक समूहों को अपनी भाषा-लिपि एवं संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार

होगा ।

किसी भी नागरिक को राजकीय अनुदान प्राप्त करने वाले विद्यालयों में जन्म भाषा, प्रदेश, धर्म एवं प्रजाति के आधार पर प्रवेश देना अस्वीकार नहीं किया जा सकता, पर धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार विद्यालय खोलने व प्रशासन का अधिकार है । यह अधिकार शैक्षणिक हितों के लिए इस आधार पर दिया गया है कि वह संस्था अनैतिक व्यापार, राष्ट्रीय, सामाजिक अशान्ति को बढ़ावा न देती हो ।

(ड.) संवैधानिक उपचारों का अधिकार:  इस अधिकार के तहत सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की सहायता लेने का अधिकार है । न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक है । यदि सरकार कोई संस्था या किसी व्यक्ति किसी नागरिक समूह के मौलिक अधिकारों का हनन करती है, रोक लगाती है, अपहरण करती है, तो आवेदन करने पर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय न्यायपालिका के माध्यम से उसके अधिकारों की रक्षा करती है ।

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को पुलिस ने गिरपतार कर लिया है, तो उस व्यक्ति के मित्र या रिश्तेदार न्यायालय में निवेदन कर सकते हैं कि उस व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष उपस्थित कर यह पूछा जाये कि उसे क्यों बन्दी बनाया गया ? कारण अस्पष्ट होने पर व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है ।

4. मौलिक अधिकारों पर रोक:

यदि सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती है, तो नागरिक सरकार के विरुद्ध न्यायपालिका की शरण में जा सकता है । सर्वोच्च न्यायालय उक्त कार्रवाई को अवैध घोषित कर सकता है ।

भारतीय संविधान के 352वें अनुच्छेदानुसार राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल घोषित किये जाने पर भाषण, विचार, अभिव्यक्ति, शान्तिपूर्ण सभा करने, निःशस्त्र प्रदर्शन करने, सभा या समुदाय बनाने, देश में भ्रमण करने तथा किसी भाग में बसने की स्वतन्त्रता स्थगित हो जाती है ।

व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका द्वारा निर्मित कानून न्यायालय भी इसे अवैध घोषित नहीं करेंगे । आपातकाल में संवैधानिक उपचारों के अधिकारों पर भी स्थगन लग जाता है ।

5. मौलिक अधिकार के गुण एवं दोष:

मौलिक अधिकार हमारे संविधान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है । इन अधिकारों के अभाव में स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है । यह अधिकार व्यावहारिकता पर आधारित हैं । समानता के सिद्धान्त पर आधारित हैं ।

शासन की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं । सामाजिक बुराइयों का अन्त करते हैं । इसके विपरीत इन अधिकारों का दोषपूर्ण पक्ष यह है कि समानता का अधिकार एक दिखावा है । आज भी भारतीय समाज में काफी असमानताएं हैं ।

विशेष वर्ग ही सुविधा का लाभ ले रहे हैं । आपातकाल में मौलिक अधिकारों का हनन हो जाता है । कार्यपालिका द्वारा शक्ति के दुरूपयोग की सम्भावनाएं हैं । आपातकाल मे राष्ट्रपति द्वारा स्वतन्त्रता तथा संवैधानिक उपचारों के निलम्बन एवं स्थगन को इसका सबसे बड़ा दोष माना जाता है ।

6. उपसंहार:

निःसन्देह यह कहा जा सकता है कि मौलिक अधिकारों की व्यवस्था में गुण एवं दोष तो विद्यमान हैं, किन्तु यह सत्य है कि हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था और संविधान में मौलिक अधिकारों का स्थान सर्वोपरि

है ।

मौलिक अधिकार न केवल व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करते हैं, वरन उन्हें समानता का अवसर भी प्रदान करते हैं । ये अधिकार राज्य और व्यक्ति के बीच व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं । राज्य की आधारशिला हैं । राष्ट्रीय एकता, समानता तथा शक्ति में वृद्धि करते हैं ।

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