श्रुतकेवली
श्रुतकेवली, श्रुतज्ञान अर्थात् शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं। श्रुतकेवली और केवली, ज्ञान की दृष्टि से दोनों समान हैं, लेकिन श्रुतज्ञान परोक्ष और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष होता है। केवलियों को जितना ज्ञान होता है उसके अतनवें भाग का वे प्ररूपण कर सकते हैं और जितना वे प्ररूपण करते हैं उसका अनंतवाँ भाग शास्त्रों में संकलित किया जाता है। इसलिए केवलज्ञान से श्रुतज्ञान अनंतवें भाग का भी अनंतवाँ भाग है। श्रुतकेवली १४ पूर्वों के पाठी होते हैं। महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जंबूस्वामी, ये तीन केवली हुए। जंबूस्वामी के बाद दिगंबर परंपरा के अनुसार विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबहुसाँचा:sfn तथा श्वेतांबर परंपरा के अनुसार प्रभव, शय्यंभव, वशोभद्र, सभूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र नाम के छह श्रुतकेवली हुए। स्थूलभद्र को श्रुतकेवलियों में न गिनने से श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार पांच ही श्रुतकेवली माने गए हैं।महावीर के मोक्ष जाने के 161 वर्षों तक श्रुत्केवली मुनिराज का इस धरातल पर सद्भाव रहा था