रामचरितमानस
रामचरितमानस | |
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चित्र:Ram-charit-manas.gif | |
जानकारी | |
धर्म | हिन्दू धर्म |
लेखक | तुलसीदास |
भाषा | हिंदी की बोली अवधी |
श्लोक/आयत | 10,902 |
रामचरितमानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है।[१][२]
रामचरितमानस के नायक राम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।[३][४][५][६]
परिचय
रामचरितमानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया महाकाव्य है, जैसा कि स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।[५][६]
रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने रामचन्द्र के निर्मल एवं विशद चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है। यद्यपि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र का वर्णन है परन्तु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में उल्लेखनीय अन्तर है। जहाँ वाल्मीकि ने रामायण में राम को केवल एक सांसारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया है वहीं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।[७][८]
रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं - बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। रामचरितमानस में प्रत्येक हिंदू की अनन्य आस्था है और इसे हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है।[९][१०][११]
संक्षिप्त मानस कथा
यह बात उस समय की है जब मनु और सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वर्ष तपस्या करने के बाद शंकरजी ने स्वयं पार्वती से कहा कि ब्रह्मा, विष्णु और मैं कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के लिये आये ("बिधि हरि हर तप देखि अपारा, मनु समीप आये बहु बारा") और कहा कि जो वर तुम माँगना चाहते हो माँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुत्र रूप में स्वयं परमब्रह्म को ही माँगना था, फिर ये कैसे उनसे यानी शंकर, ब्रह्मा और विष्णु से वर माँगते? हमारे प्रभु राम तो सर्वज्ञ हैं। वे भक्त के ह्रदय की अभिलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वर्ष और बीत गये तो प्रभु राम के द्वारा आकाशवाणी होती है-
- प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृप रानी।
- माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी॥
इस आकाशवाणी को जब मनु सतरूपा सुनते हैं तो उनका ह्रदय प्रफुल्लित हो उठता है और जब स्वयं परमब्रह्म राम प्रकट होते हैं तो उनकी स्तुति करते हुए मनु और सतरूपा कहते हैं- "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, बिधि हरि हर बंदित पद रेनू। सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक॥" अर्थात् जिनके चरणों की वन्दना विधि, हरि और हर यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही करते है, तथा जिनके स्वरूप की प्रशंसा सगुण और निर्गुण दोनों करते हैं: उनसे वे क्या वर माँगें? इस बात का उल्लेख करके तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।
अध्याय
रामचरितमानस में सात काण्ड (अध्याय) हैं-
- बालकाण्ड
- अयोध्याकाण्ड
- अरण्यकाण्ड
- किष्किन्धाकाण्ड
- सुन्दरकाण्ड
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड)
- उत्तरकाण्ड
भाषा-शैली
रामचरितमानस की भाषा के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। कोई इसे अवधी मानता है तो कोई भोजपुरी। कुछ लोक मानस की भाषा अवधी और भोजपुरी की मिलीजुली भाषा मानते हैं। मानस की भाषा बुंदेली मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
गोस्वामी जी ने भाषा को नया स्वरूप दिया। यह अवधी नहीं अपितु वही भाषा थी जो प्राकृत से शौरसेनी अपभ्रंश होते हुए, १५ दशकों तक समस्त भारत की साहित्यिक भाषा रही ब्रजभाषा के नए रूप मागधी, अर्धमागधी आदि से सम्मिश्र होकर आधुनिक हिन्दी की ओर बढ़ रही थी, जिसे ‘भाखा’ कहा गया एवं जो आधुनिक हिन्दी ‘खड़ीबोली’ का पूर्व रूप थी।
तुलसीदास 'ग्राम्य गिरा' के पक्षधर थे परन्तु वे जायसी की गँवारू भाषा अवधी के पक्षधर नहीं थे। तुलसीदास की तुलना में जायसी की अवधी अधिक शुद्ध है। स्वयं गोस्वामी जी के अन्य अनेक ग्रन्थ जैसे ‘पार्वतीमंगल’ तथा 'जानकीमंगल’ अच्छी अवधी में है। गोस्वामी जी संस्कृत के भी विद्वान् थे, इसलिए संस्कृत व आधुनिक शुद्ध हिन्दी खड़ीबोली का प्रयोग भी स्वाभाविक रूप में हुआ है।
चित्रकूट स्थित अन्तरराष्ट्रीय मानस अनुसंधान केन्द्र के प्रमुख रामभद्राचार्य ने रामचरितमानस का सम्पादन किया है। स्वामी जी ने लिखा है कि रामचरितमानस के वर्तमान संस्करणों में कर्तृवाचक उकार शब्दों की बहुलता हैं। उन्होंने इसे अवधी भाषा की प्रकृति के विरुद्ध बताया है। इसी प्रकार उन्होंने उकार को कर्मवाचक शब्द का चिन्ह मानना भी अवधी भाषा के विपरीत बताया है। स्वामीजी अनुनासिकों को विभक्ति को द्योतक मानने को भी असंगत बताते हैं- 'जब तें राम ब्याहि घर आये'। कुछ अपवादों को छोड़कर अनावश्यक उकारान्त कर्तृवाचक शब्दों के प्रयोग को स्वामी रामभद्राचार्य ने अवधी भाषा के विरुद्ध बताया है। स्वामी रामभद्रचार्य ने 'न्ह' के प्रयोग को भी अनुचित और अनावश्यक बताया है। उनके अनुसार नकार के साथ हकार जोड़ना ब्रजभाषा का प्रयोग है अवधी का नहीं। स्वामीजी के अनुसार मानस की उपलब्ध प्रतियों में तुम के स्थान पर 'तुम्ह' और 'तुम्हहि' शब्दों के जो प्रयोग मिलते हैं वे अवधी में नहीं होते। इसी प्रकार 'श' न तो प्राचीन अवधी की ध्वनि है और न ही आधुनिक अवधी की।
नीति एवं सदाचार
रामचरितमानस में भले रामकथा हो, किन्तु कवि का मूल उद्देश्य राम के चरित्र के माध्यम से नैतिकता एवं सदाचार की शिक्षा देना रहा है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति का वाहक महाकाव्य ही नहीं अपितु विश्वजनीन आचारशास्त्र का बोधक महान् ग्रन्थ भी है। यह मानव धर्म के सिद्धान्तों के प्रयोगात्मक पक्ष का आदर्श रूप प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ है। यह विभिन्न पुराण निगमागम सम्मत, लोकशास्त्र काव्यावेक्षणजन्य स्वानुभूति पुष्ट प्रातिभ चाक्षुष विषयीकृत जागतिक एवं पारमार्थिक तत्त्वों का सम्यक् निरूपण करता है। गोस्वामी जी ने स्वयं कहा है-
- नाना पुराण निगमागम सम्मत यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्योऽपि
- स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ भाषा निबंधमति मंजुलमातनोति ॥
अर्थात यह ग्रन्थ नाना पुराण, निगमागम, रामायण तथा कुछ अन्य ग्रन्थों से लेकर रचा गया है और तुलसी ने अपने अन्तः सुख के लिए रघुनाथ की गाथा कही है।
सामान्य धर्म, विशिष्ट धर्म तथा आपद्धर्म के विभिन्न रूपों की अवतारणा इसकी विशेषता है। पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, गुरुधर्म, शिष्यधर्म, भ्रातृधर्म, मित्रधर्म, पतिधर्म, पत्नीधर्म, शत्रुधर्म प्रभृति जागतिक सम्बन्धों के विश्लेषण के साथ ही साथ सेवक-सेव्य, पूजक-पूज्य, एवं आराधक-आर्राध्य के आचरणीय कर्तव्यों का सांगोपांग वर्णन इस ग्रन्थ में प्राप्त होता है। इसीलिए स्त्री-पुरुष आवृद्ध-बाल-युवा निर्धन, धनी, शिक्षित, अशिक्षित, गृहस्थ, संन्यासी सभी इस ग्रन्थ रत्न का आदरपूर्वक परायण करते हैं।
देखिए-
- सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
- जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
इसी प्रकार, राजधर्म पर कहते हैं-
- सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
- राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥
वस्तुतः रामचरितमानस में भक्ति, साहित्य, दर्शन सब कुछ है। तुलसीदास की लोकप्रियता का कारण यह है कि उन्होंने अपनी कविता में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक चित्रण किया है।
रामचरितमानस तुलसीदासजी का सुदृढ़ कीर्ति स्तम्भ है जिसके कारण वे संसार में श्रेष्ठ कवि के रूप में जाने जाते हैं। मानस का कथाशिल्प, काव्यरूप, अलंकार संयोजना, छंद नियोजना और उसका प्रयोगात्मक सौंदर्य, लोक-संस्कृति तथा जीवन-मूल्यों का मनोवैज्ञानिक पक्ष अपने श्रेष्ठतम रूप में है।
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Lutgendorf 1991, p. 1.
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ Subramanian 2008, पृष्ठ 19
- ↑ अ आ McLean 1998, पृष्ठ 121
- ↑ अ आ Puri & Das 2003, पृष्ठ 230
- ↑ Lele 1981, पृष्ठ 75
- ↑ Lorenzen 1995, पृष्ठ 160
- ↑ Lutgendorf 2006, पृष्ठ 92
- ↑ Sadarangani 2004, पृष्ठ 78
- ↑ Kumar 2001, पृष्ठ 161
इन्हें भी देखें
- रामायण आरती (रामचरितमानस)
- वाल्मीकि रामायण
- तुलसीदास
- विभिन्न भाषाओं में राम कथा
अन्य परियोजनाओं पर
विकिस्रोत पर इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है: |
बाहरी कड़ियाँ
- रामचरित मानस - मूलपाठ एवं अर्थ सहित (वेबदुनिया)
- संपूर्ण रामचरितमानस, प्रमुख पात्रों का संदर्भ, MP3 ओडियो, गुजराती भाषान्तर
- रामचरितमानस में शाश्वत जीवनमूल्य एवं रामायण की प्रासंगिकता (मधुमती पत्रिका)
- रामचरितमानस में मनोवैज्ञानिकतासाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- रामचरितमानस में नीति तत्व (डॉ. गीता कौशिक)
- रामचरितमानस का साहित्यिक मूल्यांकन (गूगल पुस्तक; लेखक - सुधाकर पाण्डेय)
- रामचरितमानस : द्वितीय सोपान - अयोध्याकाण्ड (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह)
- प्रगतिशील आलोचना और रामचरितमानस (सर्वेश सिंह)