शेर और चूहा

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सन् 1844 में जॉन डॉयल (आयरिश कलाकार) द्वारा बादामी रंग की पृष्ठभूमि पर काली पेंसिल से शिलामुद्रण

शेर और चूहा की कथा दंतकथाओं में से एक है।

साहित्यिक आख्यायिका

सबसे पुराने संस्करणों में शेर एक चूहे को धमकाता है जो उसे नींद से जगाता है। चूहा उससे क्षमा माँगते हुए यह कहता है कि इस तरह के शिकार से शेर को कोई सम्मान नहीं मिलेगा। शेर उसकी बात से सहमत होकर उसे छोड़ देता है। बाद में एक शिकारी शेर को जाल में फँसा लेता है। उसकी दहाड़ सुनकर चूहा अपना क्षमादान याद करते हुए शेर की रस्सियों को कुतर कर उसे मुक्त कर देता है। कहानी का नैतिकता यह है कि दया अपना प्रतिफल लाती है और कोई इतना छोटा नहीं है कि वह किसी बड़े की मदद न कर सके। अतः प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

स्कॉटिश कवि रॉबर्ट हेनरीसन ने १४८० के दशक में अपने मोरल फैबिलिस[१] के एक संस्करण में इस तर्क का विस्तार किया कि चूहा कानून, न्याय और राजनीति जैसे गंभीर विषयों से परिचय कराता है। कविता में ४३ सात पंक्ति वाले छंद हैं, जिनमें से पहले बारह श्लोकों में एक सपने में ईसप के साथ बैठक का वर्णन है तथा अंतिम छह श्लोकों में नैतिकता का उल्लेख किया गया है; फ्रांसिस बार्लो के १६८७ के संस्करण वाली दंतकथाओं में एक अलग तरह की राजनीतिक सीख मिलती है। इसपर कवि अफरा बेह्न ने टिप्पणी की है कि कोई भी सेवा छोटी नहीं होती, जैसे विनम्र चूहे ने शेर की सहायता की थी, या एक बार ओक ने राजा चार्ल्स द्वितीय की रक्षा की थी जब वह वॉर्सेस्टर की लड़ाई के बाद भाग रहा था।[२]

१६वीं सदी के फ्रांसीसी कवि क्लेमेंट मारोट ने अपने एपिट्रे बेटे एमी ल्यों जैमेट (अपने मित्र ल्यों जैमेट को पत्र) के दौरान कल्पित कहानी के एक विस्तारित संस्करण को भी याद किया, जो पहली बार १५३४ में प्रकाशित हुआ था।

पूर्वी संस्करण

कल्पित कहानी को एक लंबे मिस्र के मिथक में एक उदाहरण के रूप में पेश किया गया है।[३]

संदर्भ