शुकसप्तति
शुकसप्तति (अर्थ = 'तोते की सत्तर कथाएँ') एक कथासंग्रह है जो मूलतः संस्कृत में रचा गया था। अपने गृहस्वामी के परदेश चले जाने पर कोई पालतू तोता अपनी स्वामिनी को हर रात एक कथा सुनाता है और इस प्रकार परपुरषों के आकर्षणजाल से अपनी स्वामिनी को बचाता है। इसकी विस्तृत वाचनिका के लेखक कोई चिन्तामणि भट्ट हैं जिनका समय १२वीं शताब्दी से पूर्ववर्ती होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने इस ग्रंथ में पूर्णभद्र के द्वारा संस्कृत "पंचतंत्र" का स्थान-स्थान पर उपयोग किया है।
१४वीं शताब्दी से पहले ही इसका अनुवाद फारसी में हो चुका था। यह अनुवाद बहुत अच्छा नहीं रहा होगा, क्योंकि उससे असंतुष्ट होकर ही फारसी के प्रसिद्ध कवि नख्शवी ने (जो हाफिज और सादी के समकालीन थे) १३२९-३० ई. में 'तूती नामह' लिखा, जो सौ वर्षों के अन्दर तुर्की भाषा में अनूदित हुआ और फिर अन्य यूरोपीय भाषा में गया। नख्शवी को ‘शुकसप्तति' की कुछ कहानियाँ अश्लील लगी थीं। उन्होंने उन्हें छोड़ दिया था और 'बेतालपंचविंशतिका' (वैतालपचीसी) से लेकर कुछ अन्य कथाएँ जोड़ दी थीं। फारसी रूपान्तर से कई एशियाई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ और यूरोप की पश्चिमी सीमा के देशों तक यह कहानी पहुँच गई।
कथा
इसमें हरदत्त नामक व्यापारी का अकर्मण्य पुत्र मदनसेन है, जिसकी पत्नी प्रभावती, मुख्य पात्र है। एक ओर प्रभावती के साथी उसे देशाटन पर गए पति वियोग-विलाप के बजाय यौवन-सुख के साथ जीवन को सार्थक बनाने की सीख देते हैं वहीं दूसरी तरफ शुक द्वारा उसे सत्तर रातों तक कहानियां सुनाई जाती हैं, जिसके चलते पति की अनुपस्थिति में नायिका पर-पुरुष रमण, कदाचार से बच जाती है, लेकिन कहानियों में अन्य पत्नियों के विश्वासघात और गणिकाओं के धूर्त व्यवहार का बखान है।