शिरीषकुमार मेहता
शिरीषकुमार मेहता | |
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Born | साँचा:birth date |
Died | साँचा:death date and age नंदूरबार, महाराष्ट्र, भारत |
Nationality | भारतीय |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Known for | भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन |
Notable work | साँचा:main other |
Opponent(s) | साँचा:main other |
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Spouse(s) | साँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
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शिरीषकुमार मेहता (28 दिसम्बर, 1926 – 9 सितम्बर, 1942) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। शिरीष कुमार ने भारत के स्वतंत्रता स्वतंत्रता संग्राम में अपने पांच साथियों के साथ अपने प्राणों को न्योछावर किया था।
शिरीषकुमार का जन्म नंदूरबार गाँव में हुआ था जो महाराष्ट्र-गुजरात सीमा पर बसा एक छोटा सा गाँव है। नंदुरबार की पहचान एक व्यापारी नगर के तौर पर की जाती है। इसी गांव में एक गुजराती व्यापारी के घर में सन 1926 में शिरीष कुमार का जन्म हुआ था। वे अपने माता-पिता की अकेली संतान थे। बचपन से शिरीष कुमार अपनी माता से स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां सुनते थे। ऐसा माना जाता है कि शिरीष कुमार पर आजाद हिंद फौज के संस्थापक के सुभाष चंद्र बोस का अच्छा खासा प्रभाव था। शिरीष कुमार जब 12 साल के थे तभी से वह अपने दादाजी के साथ तिरंगा उठाकर आजादी के आंदोलन में शामिल हो जाते थे।
सन 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ। उसके बाद हर गांव में तिरंगा लेकर लोग 'वंदे मातरम', 'भारत माता की जय' का जय घोष लेकर निकल पड़े। 9 मार्च 1942 को नंदुरबार में एक बड़ी रैली निकाली गई। उस रैली में शिरीष कुमार तिरंगा लेकर रैली का नेतृत्व करने लगे। उस समय उनकी उम्र मात्र 16 वर्ष थी। अपनी मातृभाषा गुजराती में घोषणा देने लगे। 'नहीं शमसे' 'नहीं शमसे' निशान भूमि भारतभूनी', भारत माता की जय, वंदे मातरम , उनके अंदर उनके अंदर पूरी तरह से मातृभूमि के लिए एक अलग ही जोश था।
जब रैली शहर के बीचो बीच पहुंची तब अंग्रेज पुलिस अफसर ने रैली पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया। लेकिन शिरीष कुमार अपने साथियों के साथ रैली में डटे रहे और भारत माता की जय वंदे मातरम का जयघोष करना जारी रखा। इस बात से अंग्रेज अफसर काफी गुस्से में आ गया, और उसने प्रदर्शन करने वाले लोगों के ऊपर बंदूक तान दी। शिरीष कुमार उन प्रदर्शन करने वालों के आगे खड़े हो गए और अंग्रेज अफसर को बड़े गुस्से में सुनाया। 'अगर तुम्हें गोली मारनी है तो पहले मुझे मारो' और तिरंगा हाथ में लहराते हुए अंग्रेज अफसर के सामने नारा लगाने लगे 'वंदे मातरम -वंदे मातरम' । इससे अंग्रेज अफसर को और गुस्सा आया और उसने शिरीष कुमार के सीने में चार गोलियां मार दी। और उनके साथ में उनके साथी लाल-लाल धनसुख लालवानी, शशिधर केतकर, घनश्याम दास शाह इन इन लोगों को गोली मार कर शहीद कर दिया गया।