शलभासन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

शलभ टिड़डी को कहते है। पेट के बल लेटकर दोनो हाथो की अँगुलियो को मुट्ठी बान्ध कर कमर के पास लगाये, तत्पश्चात धीरे धीरे पूरक करके छाती तथा सिर जमीन मे लगाये हुए हाथो के बल एक पैर को यथाशक्ति एक-डेढ हाथ की ऊचाई पर ले जा कर ठहराऐ रहे, जब शवास निकलना चाहे तब धीरे धीरे पैर को जमीन पर रख कर शनै शने रेचक करे। इसी प्रकार दूसरे पैर को उठावे, फिर दोनो पैरो को उठावे। लाभ : जन्घा, पेट, बाहु आदि भागो को लाभ पहुन्चता है। पेट की आँते मजबूत होती है। सब प्रकार के उदर विकार दूर होते है।