शनि की साढ़े साती

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शनि की साढ़ेसाती, पनोती, ढईया एवं प्रकोप, कष्ट से कैसे बचें। एक 100 फीसदी लाभकारी जानकारी... अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार.... रविवार को सुबह सूर्योदय से पहले यानी प्रातः 4 से 5 बजे के बीच किसी जोशी या शनि महाराज को छायादान करें। छायादान का सामान… कांसे या मिट्टी का पात्र में तेल भरकर एक अमृतम राहु की तेल का दीपक जलाकर अपना चेहरा देखकर जोशी को दान करें। साथ में घर का बना हुआ उड़द की दाल का बना हुआ मंगोड़े, दहीबड़ा एवं टिल के लड्डू, काला वस्त्र, छतरी, जुते शहद या मधु पंचामृत तथा इमरती आदि साथ में दान करें। यह सब प्रक्रिया मुख्य दरवाजे पर खड़े होकर करें। ततपश्चात स्नान करके घर के मंदिर में देशी घी के 5 दीपक जलाएं। शनि का प्रकोप शान्त होने लग जाएगा। 7 दिन में यदि 40 फीसदी राहत महसूस करें, तो यह छायादान 7 बार करें। तिरुनल्लार शनि मंदिर जरूर जाएं...

पांडिचेरी के पास सृष्टि का एक मात्र स्वयम्भू शनि मन्दिर तिरुनल्लार के दर्शन करें। यहां भी शनि का छाया दान होता है। शिवलिंग के दर्शन करें। ग्वालियर के पास मोरेना ज़िले के शनिचरा मन्दिर के दर्शन रविवार/संडे को दोपहर 11.35 से 12.56 के बीच राहु की तेल के अपनी उम्र के अनुसार दीपक जलाकर, अपनी गलतियों की क्षमा मांगे। दर्शन करने के बाद जब घर पर लोटे, तो वही कुंड में स्नान करके ही वापस आये। मुझे शनि की महादशा में उपरोक्त पूजा से बहुत ज्यादा लाभ हुआ। यह उपाय काशी में हरिश्चंद घाट पर स्थित श्मशानेश्वर स्वयम्भू मन्दिर में तपस्वी एक अवधूत ने बताया था। अमृतम राहु की तेल का फार्मूला भी एक सिद्ध योगी अघोरी ने ही बताया। इससे अनेक लोगों को लाभ हो रहा है। राहु की तेल की प्रत्येक शनिवार पूरे शरीर में धूप में बैठकर मालिश करने से भी शनि की कृपा बनी रहती है। आप आजमाकर देख सकते हैं।


शनि के प्रकोप या विशेष कष्ट के समय रविवार की पूजा का विधान स्कंदपुराण, श्री भक्तमाल, संस्कार चंद्रिका, प्रतीक शास्त्र, चमत्कार चिंतामणी आदि पुस्तकों में भी विभिन्न तरीके से बताया है। 

!!ॐ पिपलेश्वराय नमःशिवाय!! महर्षि पिप्पलाद शनिदेव के गुरु हैं और शनि भगवान गुरु की भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं। मन्त्र का सदैव जाप करते रहें। चलते-फिरते, काम करते या सोते समय भी।


२३ फ़ीट ऊंची शनिदेव की मूर्ति, बनन्जे, उडुपी

शनि की साढ़े साती, भारतीय ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में से एक ग्रह, शनि की साढ़े सात वर्ष चलने वाली एक प्रकार की ग्रह दशा होती है। ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र के नियमानुसार सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। इस प्रकार जब शनि ग्रह लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है।[१] शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है, इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।[२][३]

अवधि

साढ़े साती के आरम्भ होने के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक प्राचीन मान्यता के अनुसार जिस दिन शनि किसी विशेष राशि में होता है उस दिन से शनि की साढ़े साती शुरू हो जाती है। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शनि जन्म राशि के बाद जिस भी राशि में प्रवेश करता है, साढ़े साती की दशा आरम्भ हो जाती है और जब शनि जन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जाती है। ज्योतिषविद शनि के आरम्भ और समाप्ति को लेकर एक गणितीय विधि का आकलन करते हैं, जिसमें साढ़े साती के आरम्भ होने के समय और समाप्ति के समय के अनुमान हेतु चन्द्रमा के स्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है।[१] चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्र मान लिया जाता है। इस प्रकार साढ़े साती की अवधि में शनि तीन राशियों से निकलता है, तो तीनों राशियों के अंशों के कुल समय को दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में चन्द्र से दोनों तरफ एक-एक अंश की दूरी बनती है।[३] शनि जब इस अंश के आरम्भ बिन्दु पर पहुंचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जब अंतिम अंश को पार कर जाता है तब इसका अंत माना जाता है।[२]

आंकड़े

संस्कृत पाठ: शनि के कक्षा पूरी करने में कितने दिन लगते हैं?
स्रोत पार्शवीय घूर्णन का अनुमानित समय[४]
सूर्य सिद्धांत १०,७६५ दिन, १८ घंटे, ३३ मिनट, १३.६ सैकिण्ड
सिद्धांत शिरोमणि १०,७६५ दिन, १९ घंटे, ३३ मिनट, ५६.५ सैकिण्ड
क्लाडियस टॉलमी १०,७५८ दिन, १७ घंटे, ४८ मिनट, १४.९ सैकिण्ड
२०वीं शताब्दी आकलन १०,७५९ दिन, ५ घंटे, १६ मिनट, ३२.२ सैकिण्ड

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अलग अलग राशियों के व्यक्तियों में इसका प्रभाव भी अलग अलग होता है। कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती आरम्भ होने के कुछ समय पूर्व ही इसके संकेत मिल जाते हैं और अवधि समाप्त होने से पूर्व ही उसके प्रभावों से मुक्त हो जाते हैं, वहीं कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद तक इसके प्रभाव समाप्त होते हैं। उनके अनुसार साढ़े साती के संदर्भ में कुण्डली में जन्म चन्द्र से द्वादश स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक इसलिये हैं कि द्वादश स्थान चन्द्र रशि के निकट होता है। ज्योतिष में द्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओर बुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है।

शनि साढ़े साती के तथ्य

शनि साढ़े साती तीन हिस्सों में होती है. हर एक हिस्सा लग भग २ वर्ष ६ माह का होता है। [५] अगर तथ्यों पर ध्यान दे, तो शनि का मकसद व्यक्ति को जीवन भर के लिए सिख देने का होता है. इसलिए पहले २ वर्ष ६ माह के हिस्से में शनि व्यक्ति को मानसिक रूप से परेशान करता है. दूसरे हिस्से में आर्थिक, शारीरिक, विश्वास इत्यादि रूप से क्षति पहुंचाता है, और तीसरे और आखिरी हिस्से में शनि महाराज, अपने कारण जो जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करवाते है। यह वो समय होता है, जब व्यक्ति को सत्य का ज्ञान होता है.

लक्षण और उपाय

ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे साढ़े साती चालू होने के संकेत मिलते हैं। इस दौरान असामान्य घटानाओं से आभास हो सकता है कि अवधि चालू है।[६] ज्योतिषाचार्य इसके प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं:

कहते हैं कि शिव की उपासना करने वालों को इससे राहत मिलती है। अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल वृक्ष शिव का रूप माना जाता है, वैसे इसमें सभी देवताओं का निवास मानते हैं, अतः पीपल को अर्घ्र देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं।[७] अनुराधा नक्षत्र में अमावस्या हो और शनिवार का योग हो, उस दिन तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करने से मुक्ति मिलती है।[२] शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इसके अलावा हनुमान जी को भी रुद्रावतार माना जाता है। अतः उनकी आराधना भी इसके निवारण हेतु फ़लदायी होती है।[८] मान्यता अनुसार नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी इसमें सार्थक उपाय होते हैं। इनकी अंगूठी बनवाकर धारण कर सकते हैं। शनि से संबंधित वस्तुएं, जैसे लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल, आदि शनिवार के दिन दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं[९] का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।[१] इसके अलावा अन्य उपाय भी बताये जाते हैं। शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो भी मुक्ति मिलना संभव होता है।

साढ़े साती शुभ भी

शनि की ढईया और साढ़े साती को प्रायः अशुभ एवं हानिकारक ही माना जाता है।[१] विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा में बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ, सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। हालांकि कुछ लोगों को शनि की दशा में काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करना होता है। इस प्रकार शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भी प्रदान करते हैं। इस दशा के समय यदि चन्द्रमा उच्च राशि में होता है तो अधिक सहन शक्ति आ जाती है और कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र सहनशीलता को कम कर देता है व मन काम में नहीं लगता है। इससे समस्याएं और बढ़ जाती हैं। जन्म कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलन भी आवश्यक होता है। अगर लग्न,वृष,मिथुन,कन्या,तुला,मकर अथवा कुम्भ है तो शनि हानि नहीं पहुंचाते हैं वरन उनसे लाभ व सहयोग मिलता है शनि यदि लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो किसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है। कुण्डली में स्थिति यदि इसके विपरीत है तो साढ़े साती के समय काफी समस्या और एक के बाद एक कठिनाइयों का सामना होता पड़ता है। यदि चन्द्र राशि एवं लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते हों अर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो साढ़े साती के समय मिला-जुला प्रभाव मिलता है।

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. साँचा:cite web
  3. साँचा:cite web
  4. साँचा:cite book
  5. साँचा:cite web
  6. साँचा:cite web
  7. साँचा:cite web
  8. साँचा:cite web
  9. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; पत्रिका-२ नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ