वेंकटेश्वर
वेंकटेश्वर बालाजी | |
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श्री वेंकटेश्वर बालाजी | |
संबंध | श्री विष्णु |
निवासस्थान | वैकुंठ |
मंत्र | ॐ नमो वेंकटेशाय |
अस्त्र | शंख, चक्र गदा, पद्म |
प्रतीक | चंदन तिलक |
जीवनसाथी | साँचा:if empty |
संतान | साँचा:if empty |
सवारी | गरुड़ |
क्षेत्र | दक्षिण भारत |
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वेंकटेश्वर (साँचा:lang-te, साँचा:lang-ta, साँचा:lang-kn, साँचा:lang-sa) जो सव्यम भगवान विष्णु अवतार हैं। उन्हें गोविंदा, श्रीनिवास, बालाजी, वेंकट आदि नामों से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार, श्री विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमला के पास स्थित है। तिरुमाला-तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर लोग तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ पर साक्षात [बालाजी] विराजमान हे। यहां आने के पश्चात भक्तो को जनम मरण के बंंधन से मुक्ति मिलती हैं ओर सारे पाप धुल जाते हैं,
श्री वैंकटेश्वर का प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। श्री वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है।
इतिहास
जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु के पुत्र कामदेव को भस्म कर दिया था तब उनकी राख से एक असुर उत्पन्न हुआ जिसका नाम था भण्डासुर। भण्डासुर ने कई असुरों को अपने एक विशेष अस्त्र से जगाया। माता ललिता को मारने के लिए भण्डासुर ने हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष को अपने अस्त्र से जगाया। माता ने तत्काल भगवान श्री नरसिंह और भगवान श्री वराह को याद किया। सबसे पहले वराह ने हिरण्याक्ष को मार डाला किन्तु हिरण्यकशिपु के वध के लिए चौखट नहीं मिल रही थी। गोधूली बेला आरम्भ हुई। इस पर श्री गणेश ने देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा को याद किया और उन्हें एक चौखट बनाने का आदेश दिया। इस पर विश्वकर्मा ने एक चौखट बना दी। भगवान श्री नरसिंह हिरण्यकशिपु को चौखट पर ले गए और वहां उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपने घुटनों पर रखकर , गोधूली बेला में अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला। हिरण्यकशिपु के वध के बाद माता ललिता ने कहा कि इस चौखट पर भगवान विष्णु पुनः अवतार लेंगे। यहां उन्हें तिरुपति बालाजी या वेंकेटश्वर के नाम से पूजा जाएगा।
ठोड़ी पर निशान का राज़
वेंकटेश्वर की ठोड़ी पर एक चोट का निशान है जिसे ठीक करने के लिए हर दिन उनकी ठोड़ी पर चन्दन का लेप लगाया जाता है। उनकी ठोड़ी पर चंदन लगाने से हर मनोकामना पूरी होती है। मन्दिर में एक दण्ड भी रखा है जिससे भगवान वेंकटेश्वर की बचपन में पिटाई होती थी। उसी दण्ड से उनकी ठोड़ी पर चोट लगी थी।
इन्हें भी देखें
देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। देश-विदेश के कई बड़े उद्योगपति, फिल्म सितारे और राजनेता यहां अपनी उपस्थिति देते हैं.
जानें उनके आश्चर्यजनक तथ्य...
1. मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में वेंकटेश्वर बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
2. भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहेते है।
3. मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है। वहां पर लोग नियम से रहते हैं। वहीं से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की ही अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
4. भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है।
5. बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
6. गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है।
7. बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है।
8. बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
9. बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं।
10. गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है।
भगवान वेंकटेश्वर विष्णु को प्रिय केशदान
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि श्रद्धालु अपने केश / सबसे प्रिय श्रंगार ईश्वर को समर्पित करते हैं। मानव योनी मे जन्म ओर सम्सत पिढी की तरफ से कृतज्ञता हेतु केश समर्पिण किया जाता हैं ।
पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
श्री तिरुपति वेन्कटेशवर बालाजी मंदिर
तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर, तिरुपति तिरुमाला में स्थित प्रसिद्ध भव्य हिन्दू मन्दिर है। इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
पुराणो के अनुसार, वेन्कटेश्रर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है। ऐक १ लाख से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं। तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है।
इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है