वी॰ नारायण मेनन
वल्लथोल नारायण मेनन (16 अक्टूबर 1878 – 13 मार्च 1958) केरल राज्य से मलयालम भाषा के भारतीय कवि थे।[१]वे मलयालम साहित्य में मानव के मानसिक भाव को काल्पनिकता का परिधान देकर सुदर रूप में प्रस्तुत करने वाले महान कवियों में से एक थे। उन्होने 1909 में बाल्मीकि रामायण का मलयालम भाषा में अनुवाद किया। 1910 में "बधिरविलापम्" नामक विलापकाव्य लिखा। इसके बाद उन्होंने अनेक नाटकीय भावकाव्य लिखे--गणपति, बंधनस्थनाय अनिरुद्धन्, ओरू कत्तु (एक खत), शिष्यनुम् मकनुम् (शिष्य और पुत्री), मग्दलन मरि यम्, अच्छनुम् मकनुम (पिता पुत्री) कोच्चुसीता इत्यादि। सन् 1924 के बाद रचित साहित्यमंजरियों में ही वल्लथोल के देशभक्ति से ओतप्रोत वे काव्यसुमन खिले थे जिन्होंने उनको राष्ट्रकवि के पद पर आसीन किया। एन्रे गुरुनाथन (मेरे गुरुनाथ) इत्यादि उन भावगीतों में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। जीवन के कोमल और कांत भावों के साथ विचरण करना वल्लथोल को प्रिय था। अंधकार में खड़े होकर रोने की प्रवृत्ति उनमें नहीं थी। यह सत्य है कि पतित पुष्पों को देखकर उन्होंने भी आहें भरी हैं, परंतु उनपर आँसू बहाते रहने की तुलना में विकसित सुमनों को देखकर आह्लाद प्रकट करने की प्रवृत्ति ही उनमें अधिक हैं।[२][३] वल्लथोल नारायण मेनन को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से 1954 में सम्मानित किया गया।
सन्दर्भ
- ↑ "Vallathol Narayana Menon" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. Kerala Sahitya Akademi. Retrieved April 18, 2014.
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- ↑ साँचा:cite book