वीरेन्द्र वीर
वीरेन्द्र वीर (15 जनवरी 1911- 31 दिसम्बर 1993) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, शिक्षाशास्त्री एवं पत्रकार थे।
परिचय
दिल्ली, पंजाब तथा हरियाणा की पत्रकारिता में महाशय कृष्ण एवं उनके समाचार पत्र ‘दैनिक प्रताप’ का विशेष योगदान है। इन्हीं महाशय जी के घर में 15 जनवरी 1911 को वीरेन्द्र वीर का जन्म हुआ।
आर्य समाज से प्रभावित परिवार होने के कारण उन्हें देश एवं धर्म के प्रति भक्ति के संस्कार मिले। इसी से प्रेरित होकर वे छोटी अवस्था से ही स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने लगे। उन दिनों लाहौर क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र था। उस ओर भी वीरेन्द्र जी का रुझान था। इस कारण पुलिस की सूची में उनका नाम भी लिख लिया गया।
16 वर्ष की अवस्था में वीरेन्द्र वीर को ‘सांडर्स हत्याकांड’ के संदिग्ध अभियुक्त के रूप में पकड़ लिया गया; पर इसमें इनका कोई हाथ नहीं था। शासन को इस कारण इन्हें छोड़ना पड़ा। एक वर्ष बाद ‘वायसराय बम कांड’ में इन्हें फिर गिरफ्तार किया गया; पर इस बार भी शासन इनके विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं जुटा सका। अतः ये सम्मान सहित बरी हो गये। फिर भी शासन इन पर सदा सन्देह की दृष्टि रखता था।
1930 में पंजाब के गर्वनर पंजाब विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में भाग लेने के लिए लाहौर आये। वहाँ क्रान्तिकारी हरिकिशन ने गर्वनर पर बम फेंका। उस समय इन्हें भी अनेक युवा मित्रों सहित फिर गिरफ्तार किया गया, क्योंकि हरिकिशन को समारोह के लिए प्रवेश पत्र वीरेन्द्र जी ने ही दिया था; पर इस बार भी अपराध सिद्ध न होने के कारण शासन को इन्हें छोड़ना पड़ा। यद्यपि इस कांड में हरिकिशन जी को फाँसी हुई।
1931-32 में गांधी जी द्वारा संचालित ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ में सक्रिय रहने के कारण वीरेन्द्र वीर को जेल भेज दिया गया। जेल में रहते हुए ही उन्होंने एम.ए अर्थशास्त्र की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की। जेल से आने पर इनके पिता महाशय कृष्ण जी ने इन्हें ‘दैनिक प्रताप’ का कार्यभार सौंप दिया। अब सम्पादक के रूप में इनका एक नया जीवन प्रारम्भ हुआ।
सम्पादक रहते हुए वीरेन्द्र जी प्रायः राष्ट्रीय विषयों पर अपनी कलम चलाया करते थे। अतः उनके समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री को आधार बनाकर ‘भारतीय प्रेस अधिनियम’ के अन्तर्गत इन्हें जेल भेजा गया। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भाग लेने के कारण ये तीन साल शाहपुर तथा स्यालकोट की जेल में रहे।
इस समय इनके पिता तथा दोनों भाई भी जेल में थे। 1945 में सबको रिहा कर दिया गया। 1947 में समाचार सामग्री के आधार पर इन्हें फिर जेल जाना पड़ा। इनके भाई कुँवर नरेन्द्र ने ‘वीर अर्जुन’ नामक दैनिक हिन्दी समाचार पत्र चलाया। उसे भी भारी लोकप्रियता मिली।
भारत के स्वाधीन होने पर वीरेन्द्र जी ने राजनीति में प्रवेश किया। वे एक बार पंजाब की विधान सभा और एक बार विधान परिषद के सदस्य रहे। 1954 में उन्होंने हिन्दी में ‘दैनिक वीर प्रताप’ शुरू किया। आर्य समाज के माध्यम से वे धार्मिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते थे।
शिक्षा प्रसार में भी उनकी भारी रुचि थी। वे डी.एम. कालिज, मोगा; डी.एम. शिक्षा महाविद्यालय, मोगा; दोआबा कालिज, जालन्धर तथा कन्या महाविद्यालय, जालन्धर के अनेक वर्ष तक प्रधान रहे।