विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास
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विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास उसी समय से शुरू माना जा सकता है जबसे प्राचीन काल में लोगों ने वायुमण्डलीय विद्युत (विशेषतः तड़ित) को समझना शुरू किया।
कालक्रम
१९वीं शताब्दी
- 1820 - हंस क्रिश्चियन ओर्स्टेड (Hans Christian Ørsted) ने देखा कि किसी धारावाही चालक के निकट रखी चुम्बकीय सुई उत्तर-दक्षिण दिशा के बजाय अन्य दिशा में खड़ी होती है। इससे पता चला कि विद्युत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
- 1827 - जर्मन भौतिकशास्त्री जॉर्ज साइमन ओम (Georg Simon Ohm) ने Die galvanische Kette mathematisch bearbeitet (विद्युत परिपथ का गणितीय विश्लेषण) प्रकाशित किया जिसमें वर्तमान समय में 'ओम का नियम' नाम से प्रचलित सिद्धान्त भी था।
- 1831 - माइकल फैराडे (Michael Faraday) ने चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना को अपने प्रयोग से देखा।
- 1864 - जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) A Treatise on Electricity and Magnetism प्रस्तुत किया जिसमें विद्युतचुम्बकत्व के चार समीकरण दिये गये थे।
- 1879 - थॉमस अल्वा एडिसन (Thomas Alva Edison) ने विद्युत लैम्प का आविष्कार किया जो व्यावसायिक रूप से सफल रहा।
- 1888 - हेनरिख हर्ट्ज (Heinrich Hertz) ने विद्युतचुम्बकीय तरंगों का अस्तित्व प्रदर्शित किया। इससे मैक्स्वेल के सिद्धान्त की सत्यता सिद्ध हुई।
२०वीं शताब्दी
- विद्युत इंजीनियरी को एक व्यवसाय के रूप में मान्यता मिली।
- इलेक्ट्रॉनिकी के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ। यह मूलतः इलेक्ट्रॉनिक वाल्व तथा उसके बाद ट्रांजिस्टर तथा एकीकृत परिपथ के विकास के कारण सम्भव हुआ।
- इलेक्ट्रानिकी के विकास के फलस्वरूप आगे चलकर विद्युत इंजीनियरी और इलेक्ट्रानिकी अलग-अलग हो गये।
- अतिचालक पदार्थों का आविष्कार तथा विकास।