वासुदेव सार्वभौम
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वासुदेव सार्वभौम नव्य न्याय के प्रसिद्ध प्रणेता थे।
वासुदेव सार्वभौम बंगाल के प्रसिद्ध नैयायिक तथा नवद्वीप में न्याय विद्यापीठ के प्रथम प्रतिष्ठापक हैं। इन्होंने मिथिला जाकर वहाँ के प्रसिद्ध नैयायिक पक्षधर मिश्र से "तत्त्वचिन्तामणि" का अध्ययन किया था। मिथिला के नैयायिक अपने देश की निधि न्याय विद्या को मिथिला से बाहर ले जाने की अनुमति किसी को नहीं देते थे, इसलिए वासुदेव ने सम्पूर्ण "तत्वचिन्तामणि" और "न्यायकुसुमाञ्जलि" को अक्षरशः कण्ठस्थ कर लिया था। बाद में काशी आकर उन्हें लिपिबद्ध किया और इस प्रकार न्यायशास्त्र को नवद्वीप में ले जाकर उन्होंने वहाँ न्यायशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन के लिए एक नवीन महान विद्यापीठ की स्थापना की। उनका समय 13वीं शती का उत्तरार्ध और 14वीं शती का पूर्वार्ध माना जाता है।