वली
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वली या औलिया, एक अरबी मूल का शब्द है जिसका अर्थ है "मालिक", "संरक्षक", "रक्षक" या "मित्र"। यह आमतौर पर मुसलमानों द्वारा एक इस्लामी संत को इंगित करने के लिए उपयोग किया जाता है।[१][२][३][४] इस्लामी संस्कृति में वलियों के नाम के आगे सम्मानजनक रूप से अक्सर "हज़रत" लगाया जाता है।
इस्लामी समझ
संतों की पारंपरिक इस्लामी समझ में, संत एक ऐसा व्यक्ति होता है, जिसे "विशेष ईश्वरीय पहचान और पवित्रता द्वारा चिह्नित किया जाता है", और जिसे विशेष रूप से "अल्लाह द्वारा चुना जाता है और असाधारण उपहारों के साथ नवाज़ा होता है, जैसे कि चमत्कार करने की क्षमता"। संतों के सिद्धांत को इस्लामिक विद्वानों द्वारा बहुत पहले से मुस्लिम इतिहास[५][६][७][८] और कुरान के विशेष छंदों द्वारा स्पष्ट किया गया था और कुछ हदीस को प्रारंभिक मुस्लिम विचारकों द्वारा संतों के अस्तित्व के "दस्तावेजी सबूत" के रूप में व्याख्या की गई थी।[७] दुनिया भर के संतों की कब्रें विशेष रूप से १२०० ई० के बाद मुसलमानों के लिए विशेष तीर्थयात्रा का केंद्र बन गईं। इस्लामी परंपरा में, लोग, ऐसी मज़ारों तक, उन वाली की बरकत (आशीर्वाद) मांगने के लिए जाया करते हैं।[७]
श्रद्धा और वंदना
इस्लाम में हालाँकि संतों की कोई संहिताबद्ध सिद्धांत नहीं है, फिर भी सुन्नी तथा शिया दोनों परंपराओं में संरक्षक संतों और वलीयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।तथा अनेक सूफी संतों को किसी राष्ट्र, स्थान, शिल्प, वर्ग या कबीले का रक्षक माना जाता रहा है[९]
हालाँकि, सुन्नी इस्लाम के भीतर की वहाबी और सलफी पंथ संतों की वंदना (संरक्षक या अन्यथा किसी भी रूप में) पर तीव्र आलोचना और विरोध करते हैं, उनके विचारधारा के अनुसार यह दावा है की वलियों की वंदना करना तथा मज़ारों पर इबादत करना कि मूर्तिपूजा और शिर्क के रूप हैं। १८वीं शताब्दी में पहली बार वहाबीवाद के सामने आने के बाद से, तथा उसका प्रभाव बढ़ने के वजह से अधिक मुख्यधारा के सुन्नी मौलवियों ने इस तर्क की समर्थन किया है। आलोचकों द्वारा व्यापक विरोध न होने के प्रभाव से, सुन्नी दुनिया में संतों की व्यापक वंदना २०वीं सदी से वहाबी और सलफी प्रभाव के तहत घट गई है।[१०]
विरोध विचारधाराओं के होने के बावजूद, आज भी इस्लामी दुनिया के कई हिस्सों में संत-वंदना का शास्त्रीय सिद्धांत जारी है, पाकिस्तान, मिस्र, तुर्की, सेनेगल, इराक, ईरान, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, और मोरक्को जैसे मुस्लिम देशों के साथ-साथ भारत, चीन, रूस और बाल्कन जैसी बड़ी इस्लामी आबादी वाले देशों में भी मुस्लिम आबादी के विशाल वर्गों के बीच धर्मनिष्ठा की दैनिक अभिव्यक्तियों में वालीयों, पीरों, और दरगाहों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।[३]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ John Renard, Friends of God: Islamic Images of Piety, Commitment, and Servanthood (Berkeley: University of California Press, 2008); Idem., Tales of God Friends: Islamic Hagiography in Translation (Berkeley: University of California Press, 2009), et passim.
- ↑ अ आ Radtke, B., Lory, P., Zarcone, Th., DeWeese, D., Gaborieau, M., F. M. Denny, Françoise Aubin, J. O. Hunwick and N. Mchugh, "Walī", in: Encyclopaedia of Islam, Second Edition, Edited by: P. Bearman, Th. Bianquis, C. E. Bosworth, E. van Donzel, W. P. Heinrichs.
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ J. van Ess, Theologie und Gesellschaft im 2. und 3. Jahrhundert Hidschra. Eine Geschichte des religiösen Denkens im frühen Islam, II (Berlin-New York, 1992), pp. 89–90
- ↑ B. Radtke and J. O’Kane, The Concept of Sainthood in Early Islamic Mysticism (London, 1996), pp. 109–110
- ↑ अ आ इ Radtke, B., "Saint", in: Encyclopaedia of the Qurʾān, General Editor: Jane Dammen McAuliffe, Georgetown University, Washington, D.C..
- ↑ B. Radtke, Drei Schriften des Theosophen von Tirmid̲, ii (Beirut-Stuttgart, 1996), pp. 68–69
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite book