लोधेश्वर महादेव मंदिर
Lodheshwar Mahadev Temple लोधेश्वर महादेव मंदिर | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | साँचा:br separated entries |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | साँचा:if empty |
ज़िला | बाराबंकी |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
देश | साँचा:flag |
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वास्तु विवरण | |
प्रकार | हिन्दू वास्तुकला |
निर्माता | साँचा:if empty |
ध्वंस | साँचा:ifempty |
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वेबसाइट | |
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लोधेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी में रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है।
पौराणिक महत्व
इस लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। फाल्गुन का मेला यहाँ खास अहमियत रखता है। पूरे देश से लाखों श्रद्धालू यहाँ कावर लेकर शिवरात्रि या शिरात्रि से पूर्व पहुँच कर शिवलिंग पर जल चढाते हैं। माना जाता है की वेद व्यास मुनि की प्रेरणा से पांडवो ने रूद्र महायज्ञ का आयोजन किया और तत्कालीन गंडक इस समय घाघरा नदी के किनारे कुल्छात्तर नमक जगह पर इस यज्ञ का आयोजन किया। महादेवा से २ किलोमीटर उत्तर, नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं। उसी दौरान इस शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी।
महादेवा मेला
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लगने वाले फाल्गुनी (स्थानीय - फागुनी) मेले में प्रति वर्ष कानपुर व बिठूर से गंगाजल लेकर सुदूर क्षेत्रों से शिवभक्त कांवरिये पैदल बाराबंकी जनपद स्थित लोधेश्वर महादेव की पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुए आते हैं। अपनी धुन व शिवभक्ति के पक्के कांवरियों की सकुशल सुरक्षित यात्रा, पूजा-अर्चना, जलाभिषेक सम्पन्न कराना प्रशासन के लिए एक चुनौती ही होता है। प्रशासन पूरी यात्रा के दौरान मुस्तैद व चौकन्ना रहता है। श्री लोधेश्वर महादेव मंदिर जाते हुए जब बाराबंकी क्षेत्र में कांवरिये प्रवेश करते हैं तो जगह-जगह लगे उनके विश्राम व जलपान शिविर उनका उत्साह बढ़ा देते हैं। हाथ जोड़कर सविनय कांवरियों को शिविर में बाराबंकी के नागरिक आमंत्रित करते हैं। कांवरियों की सेवा करके बाराबंकी जनपद के शिवभक्त नागरिक अपने आप को संतुष्ट व प्रसन्न महसूस करते हैं।[१]
ऐतिहासिक प्रमाण
इस पूरे इलाके में पांडव कालीन अवशेष बिखरे पड़े हैं। जब अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ छुपे थे, बाराबंकी को बराह वन कहा जाता था और यहाँ घने और विशाल जंगल थे। वर्षों तक पांडव यहाँ छुपे रहे और इसी दौरान उन्होंने रामनगर के पास किंतूर क्षेत्र में पारिजात वृक्ष लगाया और गंगा दसहरा के दौरान खिलने वाले सुनहरे पुष्पों से भगवान शिव की आराधना की। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि इस पारिजात वृक्ष को भगवान कृष्ण स्वर्ग से लाये थे और अर्जुन ने अपने बाण से पाताल में छिद्र कर इसे स्थापित किया था। ऐसे महान महादेवा परिक्षेत्र के दर्शन कर श्रद्धालू अपने को धन्य समझते हैं|[२]