लेश्या

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जैन दर्शन के सन्दर्भ में लेश्या कर्म का एक सिद्धान्त है।

कृष्ण आदि छः प्रकार के पुद्गल द्रव्यों के सहयोग से स्फटिक के परिणमन की तरह होने वाला आत्म-परिणाम लेश्या है।(उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य बृहद्वृत्ति पृष्ठ ६५६) स्वामी श्रीमन्नेमीचन्द्रसैद्धांतिचक्रवर्ती जी ने गोम्मटसारजी जीवकांड में बताया है कि :-

लिपंइ अप्पीकीरइ एदीए णियअपुण्‍णपुण्‍णं च ।
जीवोत्ति होदि लेस्सा लेस्सागुणजाणयक्खादा ॥४८८॥

अर्थात,

- जो लिम्पन करती है, याने को कर्मों को आत्मा से लिप्त करती है, वह लेश्या है।
- जिसके द्वारा आत्मा पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करती है, वह लेश्या हैं।
- जो कर्म-स्कंध से आत्मा को लिप्त करता है, वह लेश्या है।

जैसे, मिट्टी, गेरू आदि के द्वारा दीवार रंगी जाती है, उसी प्रकार शुभ-अशुभ भाव रूप लेप के द्वारा आत्मा का परिणाम लिप्त किया जाता है । यह भी कह सकते हैं कि :- मनुष्य के अच्छे-बुरे भावों को लेश्या कहते हैं !

आगे जिस प्रकार थर्मामीटर से शरीर का ताप नाप जाता है, उसी प्रकार "भावों के द्वारा" आत्मा का ताप अर्थात उसकी लेश्या का पता चलता है।

- कषायों के उदय से अनुरंजित मन-वचन-काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं।

लेश्या के छ:भेद हैं - कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म एवं शुक्ल लेश्या। कृष्ण, नील, कापोत लेश्याएँ अशुभ एवं तेजो, पद्म, शुक्ल लेश्याएँ शुभ हैं।

लेश्याओं के लक्षण

1. कृष्ण लेश्या - तीव्र क्रोध करने वाला हो, शत्रुता को न छोड़ने वाला हो, लड़ना जिसका स्वभाव हो, धर्म और दया से रहित हो, दुष्ट हो, दोगला हो, विषयों में लम्पट हो आदि यह सब कृष्ण लेश्या वाले के लक्षण हैं।

2. नील लेश्या - बहुत निद्रालु हो, परवंचना में दक्ष हो, अतिलोभी हो, आहारादि संज्ञाओं में आसक्त हो आदि नील लेश्या वाले के लक्षण हैं।

3. कापोत लेश्या - दूसरों के ऊपर रोष करता हो, निन्दा करता हो, दूसरों से ईष्र्या रखता हो, पर का पराभव करता हो, अपनी प्रशंसा करता हो, पर का विश्वास न करता हो, प्रशंसक को धन देता हो आदि कापोत लेश्या वाले के लक्षण हैं।

4. तेजो लेश्या - जो अपने कर्तव्य-अकर्तव्य, सेव्य-असेव्य को जानता हो, दया और दान में रत हो,मृदुभाषी हो, दृढ़ता रखने वाला हो आदि पीत लेश्या वाले के लक्षण हैं।

5. पद्म लेश्या - जो त्यागी हो, भद्र हो, सच्चा हो, साधुजनों की पूजा में तत्पर हो, उत्तम कार्य करने वाला हो, बहुत अपराध या हानि पहुँचाने वाले को भी क्षमा कर दे आदि पद्म लेश्या वाले के लक्षण हैं।

6. शुक्ल लेश्या - जो शत्रु के दोषों पर भी दृष्टि न देने वाला हो, जिसे पर से राग-द्वेष व स्नेह न हो,पाप कार्यों से उदासीन हो, श्रेयो कार्य में रुचि रखने वाला हो, जो पक्षपात न करता हो और न निदान करता हो, सबमें समान व्यवहार करता हो आदि शुक्ल लेश्या वाले के लक्षण हैं।

अशुभ लेश्या जीव को दुर्गति की ओर तथा शुभ लेश्या जीव को सुगति की ओर ले जाती है।

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