लिलिएसी कुल
लिलिएसी कुल (Liliaceae) के एकबीजपत्री पादप (monocotybdon) प्राय: विश्वव्यापी हैं। इस कुल के पौधे अधिकतर शाकीय होते हैं, जो अपने संयुताक्ष प्रकंद, अथवा बल्व का प्रकंद (root stock) द्वारा चिर जीवित रहते हैं। थोड़े से पौधे क्षुप, या छोटे वृक्ष रूप में भी होते हैं, जैसे युका (Yucca), ड्रासिना (Dracaena) आदि। इनमें उत्तक वृद्धि भी होती है। अनेक पौधे मरुद्भिदी, धीकुँवार (Aloe) सदृश कुछ मांसल या सरस, चौपचीनी या स्माइलेक्स (Smilax) तथा ग्लोरिओसा (Gloriosa) सदृश्, कुछ आरोही और रसकस (Ruscus) एवं शतावरी (Asparagus) सदृश्, कुछ पर्णाभस्तंभ (phylloclade) युक्त होते हैं। इस कुल के २०० वंश तथा २०० स्पीशीज ज्ञात हैं।
पुष्पक्रम
प्राय: असीमाक्षी (racemose) शाखाएँ समीमाक्षी। प्याज (cymose) आदि के छत्रक सदृश पुष्पक्रम वास्तव में मिश्रित समीमाक्ष हैं। पुष्प प्राय: द्विलिंगी (bisexual) पंच-चक्रिक (pentacyclic), त्रितयी (trimerous), त्रिज्या सममित (actinomorphic), जायांगाधर (hypogynous), परिदल पुंज (perianth) ३+३ स्वतंत्र या कुछ जुड़ा हुआ, दलाभ (petaloid), पुंकेसर (stamen) दो चक्करों में ३ या ६, प्राय: अंतमुँख परागकोश, अंडप तीन, युक्तांडप प्राय: उत्तरी (कभी अधोवर्ती) बीजाडन्यास (placentation) प्राय: अक्षीय, बीजांड एक या अनेक (प्रत्येक विवर में दो पंक्तियों में), फल कोष्ठ विदारक (loculicidal) या पटविदारक (septicidal), कुछ पादपों में भरी।
परागण
स्वयं तथा अपर दोनों रीतियों से, सिला (Scilla), ऐलियम (Allium) आदि में अंडाशय भित्ति में, अंडपों के बीच तथा अन्य पुष्पों में परिपुष्प के आधार (base) पर मधु उत्सर्जित होता है। युका में परागणविधि मनोरंजक है। यह एक विशेष कीट प्रोनुवा युकासिला (Pronuba yuccasella) द्वारा होता है। पुष्पों के खिलते ही यह कीट अंदर घुसता है और परागकोशों से पराग एकत्रित कर, इसे एक छोटी गोली के रूप में बनाकर अपनी शृंगिका (antenna) में दबा लेता है। अब वह पुष्प के अंडाशय पर बैठकर यह टटोलता है कि उससे बीजांड कहाँ हैं। जहाँ एक बीजांड होता है, ठीक उसके बाहर अंडाशय भित्ति में वह एक छेद कर देता है और उसमें एक अंडा दे देता है। फिर दौड़कर वह वर्तिकाग्र पर पहुँचता है और शृंगिका में दबाई हुई परागकण की गोली में से कुछ परागकण वर्तिकाग्र पर रखकर अपनी टाँगों द्वारा जितना हो सकता है भीतर दबा देता है। इसके बाद कीट पुन: अंडाशय पर लौट आता है। दूसरे बींजांड को टटोलकर यह कीट अंडाशय की भित्ति में पुन: दूसरा छेद कर एक और अंडा दे देता है तथा फिर वह वर्तिकाग्र पर दौड़ जाता है और पहले की भाँति परागकण उसके भीतर दबा देता है। ऐसा वह बारंबार करता है और अंडाशय भित्ति में अपने कई अंडे दे देता है। कुछ समय बाद इधर कीट के अंडे, डिंभक आदि तैयार होते हैं और उधर अनेक बीजांड निषेचित होकर मुलायम बीज के रूप में तैयार हो जाते हैं। अब डिंभक और बीज में एकत्रित भोज्य सामग्री के बीच अंडाशय की भित्ति की केवल थोड़ी सी ही कोशिकाएँ शेष बची रहती हैं। डिंभक इन्हें काट डालता है और बीच की भोजन सामग्री के सहारे बढ़ने लगता है। इस प्रकार युका और प्रोनुबा युकासिला कीट का जीवन परस्पर संबंधित है।
मुख्य पादप
इस कुल के मुख्य पौधे ये हैं :
१. प्याज या ऐलियम सीपा (Allium cepa),
२. लहसुन या ऐलियम सेटाइवम (Allium sativum) (इन दोनों की पर्याप्त खेती की जाती है),
३. शतावरी या ऐसपैरेगस (इसके प्र्ह्रसित (reduced) शल्कपत्रों के वक्ष में हरे पर्णाभ पर्व (cladodes) निकलते हैं तथा इसकी जड़े सगंध होती है),
४. अग्निशिखा या ग्लोरिओसा सुपर्वा (Gloriosa superba) (इसके पत्तों का अग्रभाग तंतु रूप हो जाता है),
५. चोपचीनी या स्माइलैक्स (इसका शिराविन्यास जालिकावत है; एक मत के अनुसार इसके अनुपत्रों का अग्रभाग तंतु रूप में परिवर्तित हो जाता है),
६. रसकस (यह पर्णाभस्तंभ का एक अच्छा उदाहरण है),
७. धीकुवार या एलो (मांसल पत्तियों से युक्त औषधि पादप है),
८. युका तथा ड्रासिना (छोटे क्षुपी पादप हैं, जिनमें परवर्ती वृद्धि (secondary growth) होती है)।
९. ऐस्फोडलस (Asphodelus) (एक अपतृण (weed) है, जिसके सामान्य वल्कुट (general cortex) में भी जड़ें होती हैं।
बाहरी कड़ियाँ
- Bulbsociety
- Chilean Liliaceae at Chileflora