ललिता गौरी मंदिर
ललिता गौरी मंदिर जिसे ललिता माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह मंदिर प्राचीन पवित्र शहर वाराणसी के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का हिंदू धर्म में बड़ा धार्मिक महत्व है और यह देवी ललिता (देवी पार्वती का रूप ) को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था। मंदिर का निर्माण 1800-1804 के बीच राणा बहादुर शाह ने करवाया था। ललिता गौरी मंदिर ललिता घाट पर स्थित है और घाट का नाम इस मंदिर के नाम पर रखा गया था।[१]
ललिता गौरी मंदिर | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | साँचा:br separated entries |
शासी निकाय | साँचा:csv |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | साँचा:if empty |
ज़िला | बनारस |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
देश | साँचा:flag |
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भौगोलिक निर्देशांक | साँचा:coord |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | नागर |
निर्माता | साँचा:if empty |
ध्वंस | साँचा:ifempty |
अवस्थिति ऊँचाई | साँचा:convert |
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इतिहास
नेपाल के राजा, राणा बहादुर शाह ने वाराणसी में 1800 से 1804 में वनवास लिया और खुद को "स्वामी निर्गुण" कहा। अपने निर्वासन के दौरान, उन्होंने वाराणसी में पशुपतिनाथ मंदिर की घर प्रतिकृति के लिए एक घाट बनाने का फैसला किया। चुना गया स्थान ललित घाट था, जिसका नाम ललिता गौरी मंदिर रखा गया था। शाह ने घाट के साथ एक नेपाली मंदिर का निर्माण किया।[२]
महत्व
ऐसा माना जाता है माँ के दर्शन पूजन से सुख-समृद्धि के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति व कुंवारियों का शीघ्र विवाह की मनोकामना पूर्ण होती है। चैत मास में माता ललिता गौरी के दर्शन का विधान है। इन्हें माता पार्वती का तीसरा रूप माना जाता है ।