रोहतास दुर्ग

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साँचा:for साँचा:infobox रोहतासगढ़ (Rohtasgarh) या रोहतास दुर्ग (Rohtas Fort) बिहार के रोहतास ज़िले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्राचीन दुर्गों में से एक है। यह बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 और डेहरी आन सोन से 43 किलोमीटर की दूरी पर सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊँचा है।[१]

विवरण

कहा जाता है कि इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। बहुत दिनों तक यह हिन्दू राजाओं,खासकर कूर्मकुल अवधिये कुशवाहों के अधिकार में रहा, लेकिन 16वीं सदी में मुसलमानों के अधिकार में चला गया और अनेक वर्षों तक उनके अधीन रहा। इतिहासकारों का मत है कि किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।[२]

रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेरा ४५ किमी तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य चार- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है। खरवार साम्राज्य रोहतासगढ़ दुर्ग या रोहतास दुर्ग, बिहार के रोहतास जिले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्राचीन दुर्गों में से एक है। यह बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 और डेहरी आन सोन से 43 किलोमीटर की दूरी पर सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊँचा है।इस प्राचिन किला का निर्माण सूर्यवंशी राजा सत्यवादी हरिशचन्द्र के पूत्र रोहिताश्य ने कराया था बहूत दिनो तक सूर्यवंशी खरवार राजाओ के अधिकार मे रहा लेकिन सन् 1539 ई मे शेरशाह और हूँमायूँ मे यूध्द ठनने लगा तो शेरशाह ने रोहतास के सूर्यवंशी खरवार राजा नृपती से निवेदन किया कि मै अभी मूसीबत मे हूँ अतः मेरे जनान खाने को कूछ दिनो के लिये रोहतास किला मे रहने दिया जाये रोहतास के खरवार राजा नृपती ने पडोसी के मदत के ख्याल से शेरशाह कि प्राथना स्वीकार कर ली और केवल औरतो को भेज देने का संवाद प्रेसित किया कई सौ डोलिया रोहतास दूर्ग के लिये रवाना हूई और पिछली डोली मे स्वयम शेरशाह चला आगे कि डोलिया जब रोहतास दूर्ग पर पहूची उनकी तलासी होने लगी जीनमे कूछ बूढी औरते थी ईसी बीच अन्य डोलीयो से सस्त्र सैनिक कूदकर बाहर नीकले पहरदार का कत्ल कर के दूर्ग मे प्रवेश कर गये शेरशाह भी तूरन्त पहूचा और किले पर कब्जा कर लिया ।[३]

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. Freitag, J. (2009). "Serving Empire, Serving Nation: James Tod and the Rajputs of Rajasthan". doi:10.1163/ej.9789004175945.i-230. {{cite journal}}: Cite journal requires |journal= (help)
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इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ