रोमन संख्यांक
रोमन संख्यांक द्वारा दर्शायी गयी संख्यांक पद्धत्ति का प्राचीन रोम में उद्गम हुआ और भली भांति उत्तर मध्य युग में पूर्ण यूरोप में संख्याओं को लिखना का सामान्य तरीका बना रहा।
रोमन अंक प्राचीन रोम की संख्या प्रणाली है, जिसमें लातिनी भाषा के अक्षरों को जोड़कर संख्याएँ लिखी जाती थीं। पहले दस रोमन अंक इस प्रकार हैं -
संख्या | रोमन अंक | टिपण्णी |
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१ | I | |
२ | II | |
३ | III | |
४ | IV | 'V' का मतलब पाँच (५) होता है - इसकी बाएँ तरफ़ 'I' (यानि १) लिखने का मतलब है के वह संख्या घटाई जा रही है और ५-१ = ४ होता है |
५ | V | |
६ | VI | 'V' का मतलब पाँच (५) होता है - इसकी दाएँ तरफ़ 'I' (यानि १) लिखने का मतलब है के वह संख्या बढ़ाई जा रही है और ५+१ = ६ होता है |
७ | VII | इसे ऐसे समझ सकते हैं के ५ ('V') में २ ('II') जोड़ा जा रहा है, जिस से ७ बनता है |
८ | VIII | |
९ | IX | 'X' का मतलब दस (१०) होता है - इसकी बाएँ तरफ़ 'I' (यानि १) लिखने का मतलब है के वह संख्या घटाई जा रही है और १०-१ = ९ होता है |
१० | X |
दस से अधिक संख्याएं
संख्या | रोमन अंक | टिपण्णी |
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११ | XI | |
१४ | XIV | इसका अर्थ है के १० ('X') में दाएँ तरफ़ की संख्या ('V' यानि ५) जोड़ो और बाएँ तरफ़ की संख्या ('I' यानि १) घटाओ - १०+५-१=१४ |
१९ | XIX | 'XX' २० होता है और उसमें से १ घटाया जा रहा है - २०-१=१९ |
४० | XL | 'L' का मतलब पचास (५०) होता है जिसमें से 'X' (१०) घटाया जा रहा है - ५०-१०=४० |
८० | LXXX | ५०+१०+१०+१०=८० |
९० | XC | 'C' का मतलब सौ (१००) होता है - इसकी दाएँ तरफ़ 'X' (यानि १०) लिखने का मतलब है के वह संख्या घटाई जा रही है और १००-१०=९० होता है |
३०० | CCC | |
४०० | CD | 'D' यानि ५००, जिसमें से 'C' यानि १०० कम किये गए - जिससे ४०० बने |
499 | CDXCIX | 'CD' का मतलब ४००, 'XC' का मतलब १००-१०=९० और 'IX' का मतलब १०-१=९ - यानि कुल मिलकर ४००+९०+९=४९९ |
१००० | M | |
१९९४ | MCMXCIV | १०००+(१०००-१००)+(१००-१०)+(५-१)=१०००+९००+९०+४=१९९४ |
३८८८ | MMMDCCCLXXXVIII |
रोमन अंकों की कमियाँ
रोमन अंको में शून्य नहीं होता। इनमें बड़ी संख्याओं को लिखना बहुत कठिन हो जाता है - एक तो उनमें बहुत से अक्षर हो जाते हैं और उन्हें समझने में भी समय लगता है। क्योंकि भारतीय प्रणाली की स्थानीय मान (प्लेस वैल्यू) की अवधारणा इनमें नहीं है, इसलिए रोमन अंकों में गणित करना बहुत ही मुश्किल है। जैसे-जैसे भारतीय अंक पहले मध्य पूर्व और फिर यूरोप में फैलने लगे, रोमन अंकों का प्रयोग केवल वर्गों-अध्यायों के नामों के लिए ही होने लगा और गणित में इनकी भूमिका समाप्त हो गयी।
आईयूपीएसी के नये दिशानिर्देशों के अनुसार अब आवर्त सारणी के समूहों के नाम रोमन के बजाय हिन्दू अंकों में लिखे जाते हैं।