रैंकोजी मन्दिर

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रैंकोजी मन्दिर टोकियो के परिसर में स्थापित नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आवक्ष प्रतिमा

रैंकोजी मन्दिर (जा: 蓮光寺 (杉並区), अं: Renkōji Temple) जापान के टोकियो में स्थित एक बौद्ध मन्दिर है। 1594 में स्थापित यह मन्दिर बौद्ध स्थापत्य कला का दर्शनीय स्थल है। एक मान्यता के अनुसार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रिम सेनानी सुभाष चन्द्र बोस की अस्थियाँ यहाँ आज भी सुरक्षित रखी हुई हैं। दरअसल 18 सितम्बर 1945 को उनकी अस्थियाँ इस मन्दिर में रखी गयीं थीं। परन्तु प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार नेताजी की मृत्यु एक माह पूर्व 18 अगस्त 1945 को ही ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हो गयी थी। जापान के लोग यहाँ प्रति वर्ष 18 अगस्त को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का बलिदान दिवस मनाते हैं।

इतिहास

सुभाषचन्द्र बोस की अस्थियाँ 18 सितम्बर 1945 को इस मन्दिर में लाकर रखी गयीं थीं जबकि प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार नेताजी की मृत्यु एक माह पूर्व 18 अगस्त 1945 को ही ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हो गयी थी।[१] भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जापान में टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रखी अस्थियाँ बोस की ही हैं।[२][३][४]

जर्मनी में अपने पति प्रोफेसर फाफ के साथ रह रही सुभाषचन्द्र बोस की एकमात्र पुत्री अनिता बोस फाफ के अनुसार उनके पिता की मृत्यु ताईपेन्ह में ही हुई थी और रैंकोजी मन्दिर में रखी अस्थियाँ उनके पिता की ही हैं।[५] जस्टिस मुखर्जी रिपोर्ट पर विद्वानों का यह कहना है कि सुभाष की नीति दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाने की थी। इसके लिये वे भूतपूर्व ब्रिटिश खुफ़िया अफ़सर के उस कथन का हवाला देते हैं जिसमें उसने स्वीकार किया था कि यदि उसे सुभाष जिन्दा हाथ लग जाता तो वह उसे मौत की सजा दिला कर ही चैन लेता। ऐसी हालत में संभव है कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई हो।[६] दूसरी ओर भारत में कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि फैजाबाद में सुभाषचन्द्र बोस वेश बदलकर गुमनामी बाबा के रूप में रहे और वहीं उनकी मृत्यु हुई।[७] सन् 1945 के बाद सुभाषचन्द्र बोस के रूस में होने की खबर पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हुए भारत सरकार से उन सभी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग की गयी जो जोसेफ स्टालिन की पुत्री स्वेतलाना ने गृह मन्त्रालय को सौंपी थीं।[८]

भारत सरकार के अलावा पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार से भी सुभाषचन्द्र बोस से सम्बन्धित गुप्त फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग की गयी।[९]

मन्दिर परिसर में नेताजी की प्रतिमा

जब अन्त्येष्टि के एक माह पश्चात् सुभाषचन्द्र बोस का अस्थिकलश ताईहोकू से जापान लाया गया तो मन्दिर के प्रमुख पुजारी मोचीज़ुकी ने उसे मन्दिर में एक सुरक्षा कवच (सेफ कस्टडी) की तरह सुरक्षित रखने की आज्ञा प्रदान की थी। तभी से उनका अस्थि कलश यहाँ रखा हुआ है।[१०] सुभाष के संगी-साथी व उनके प्रति अपनी निष्ठा रखने वाले लोग प्रति वर्ष उनकी पुण्य तिथि पर एकत्र होकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। बोस की ये अस्थियाँ मन्दिर परिसर स्थित एक स्वर्णिम पैगोडा में रखी गयी हैं। उसी के बाहर सुभाष की एक छोटी सी प्रतिमा भी लगा दी गयी है जिससे आगन्तुकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जा सके। इस तथ्य की पुष्टि भारत सरकार द्वारा गठित जी॰ डी॰ खोसला आयोग की रिपोर्ट में भी हो चुकी है।[११][१२]

अस्थियों पर विवाद

जर्मनी में अपने पति के साथ रह रही सुभाष की पुत्री अनिता बोस फाफ को यह विश्वास है कि उनके पिता की मृत्यु ताईपेन्ह में ही हुई थी और रैंकोजी मन्दिर में रखी अस्थियाँ उनके पिता की ही हैं।[१३] मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट पर बुद्धिजीवियों का यह तर्क है कि सुभाष की नीति दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाने की थी। उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में ही हुई थी जिसके लिये वे भूतपूर्व ब्रिटिश खुफ़िया अफ़सर का हवाला देते हैं जिसने कहा था कि यदि उसे सुभाष जिन्दा मिल जाता तो वह उसे मौत की सजा अवश्य दिलाता।[१४] परन्तु भारत में रह रहे कुछ लोगों का ऐसा भी मानना था कि फैजाबाद में बोस वेश बदलकर गुमनामी बाबा के रूप में काफी लम्बे समय तक रहे और वहीं उनकी मृत्यु हुई।[७] कोलकाता की एक इतिहासकार ने सन् 1945 के बाद नेताजी के रूस में होने की खबर का हवाला देते हुए भारत सरकार से उन सभी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग की जो जोसेफ स्टालिन की पुत्री स्वेतलाना ने भारत सरकार के गृह मन्त्रालय को सौंपी थीं।[८]

हिन्दू धर्म में कोई व्यक्ति जब मरता है तो दाह संस्कार करने के बाद उसकी अस्थियों को किसी पवित्र नदी या गंगा सागर में विसर्जित करने की परम्परा है। इसके साथ यह मान्यता भी है कि यदि कोई हिन्दू किसी ऐसे स्थान पर मरे जहाँ आस पास कोई भारतीय नदी न हो तो उसकी अस्थियों को किसी पोटली में बाँधकर या तो पीपल के वृक्ष की किसी शाखा पर लटका दिया जाता है या फिर पास के ही किसी मन्दिर में रख दिया जाता है। उसके बाद उसके परिवार के लोग उन अस्थियों को अपनी सुविधानुसार गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देते हैं। परन्तु नेताजी के अस्थि-कलश के साथ ऐसा भी नहीं हुआ। उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई अथवा नहीं हुई इस पर विवाद पैदा कर दिया गया। भारत सन् 1947 में आज़ाद हो गया। तब से लेकर आज तक इस विवाद की जाँच के लिये तीन-तीन आयोग बैठाये गये। पहले शाहनवाज़ आयोग, फिर खोसला आयोग[११] और सबसे अन्त में मुखर्जी आयोग ने इसकी जाँच की परन्तु परिणाम कुछ नहीं निकला। 8 नवम्बर 2005 को जस्टिस मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 17 मई 2006 को संसद में इस पर खूब बहस हुई और बताया गया कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई। साथ ही यह भी कहा गया कि रैंकोजी मन्दिर में रखी जिन अस्थियों का सम्बन्ध सुभाषचन्द्र बोस से बतलाया जाता है वे उनकी नहीं हैं। बाद में भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की वह रिपोर्ट खारिज कर दी।

विवाद का हल

नेताजी का उनकी पत्नी एमिली शैंकी के साथ एक दुर्लभ फोटो (विकिमीडिया कॉमंस से साभार)

सन् 1933 से 1936 तक सुभाषचन्द्र बोस यूरोप में रहे। सन् 1934 में जब वे ऑस्ट्रिया में अपना इलाज कराने गये थे उस दौरान उनके सम्पर्क में एमिली शेंकल (अं: Emilie Schenkl) नामक एक ऑस्ट्रियन महिला आयी। बाद में उन्होंने सन् 1942 में हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार एमिली से विवाह कर लिया। वियेना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम अनिता बोस रखा गया। अगस्त 1945 में ताइवान में हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में जब सुभाष की मौत हुई, अनिता पौने तीन साल की थी।[१५] बोस की बेटी अनिता विवाहित है और अभी जीवित है। उसका नाम अनिता फाफ (अं: Anita Bose Pfaff) है। वह अपने पिता के परिवार जनों से मिलने हेतु कभी कभार भारत-भ्रमण भी करती रहती है।

सोशल मीडिया पर कुछ बुद्धिजीवियों ने यह सुझाव पेश किया था कि रैंकोजी मन्दिर परिसर के पैगोडा में रखी सुभाष की अस्थियाँ जापान सरकार से भारत मँगा ली जायें और उनकी पुत्री अनिता फाफ को भारत बुलाकर अस्थियों का डीएनए टेस्ट करा लिया जाये। इससे नेताजी विमान दुर्घटना में मरे अथवा नहीं मरे इस विवाद का अन्त हो जायेगा और हिन्दू परम्परा के अनुसार पिता की अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित करने की उनकी पुत्री की इच्छा भी पूरी हो जायेगी। जी न्यूज टीवी चैनेल को दिये एक साक्षात्कार में अनिता फाफ अपनी यह इच्छा व्यक्त भी कर चुकी है।[१६]

कुछ लोगों का यह मानना है कि फैजाबाद में लम्बे समय तक रहते हुए वहीं पर अन्तिम साँस लेने वाले गुमनामी बाबा ही वास्तव नेताजी सुभाषचन्द्र बोस थे जो वेश बदलकर वहाँ रह रहे थे। जब यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय ले जाया गया तो उसकी लखनऊ बेंच ने इस बात पर हैरानी जतायी कि भारत सरकार ने जापान के रैंकोजी मन्दिर में रखी राख का डीएनए टेस्ट अभी तक क्यों नहीं कराया?[१७]

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. 68 सालों से जापान के एक पुजारी ने संभाल रखी हैं नेताजी की अस्थियां स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, दैनिक भास्कर, अभिगमन तिथि: १२ अगस्त २०१४
  4. जापान के एक पुजारी ने संभाल रखी हैं नेताजी की अस्थियां, दैनिक जागरण, अभिगमन तिथि: १२ अगस्त २०१४
  5. साँचा:cite web
  6. साँचा:cite web
  7. साँचा:cite web सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "nbt1" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  8. साँचा:cite web
  9. साँचा:cite web
  10. साँचा:cite web
  11. साँचा:cite web
  12. साँचा:cite book
  13. साँचा:cite web
  14. साँचा:cite web
  15. साँचा:cite news
  16. साँचा:cite web
  17. साँचा:cite web

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बाहरी कड़ियाँ