रेशमा
रेशमा | |
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अन्य नाम | रेशमां |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मूल | लाहौर, पाकिस्तान |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
शैलियां | पंजाबी लोकगीत |
सक्रिय वर्ष | 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध से 2013 तक |
रेशमा (c.1947 – 3 नवम्बर 2013) सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। उनका 3 नवम्बर 2013 को पाकिस्तान के लाहौर में निधन हो गया।[१][२][३][४]
बचपन और व्यक्तिगत जीवन
रेशमा का जन्म राजस्थान राज्य की रतनगढ़ तहसील के लोहा गाँव में लगभग १९४७ में एक बंजारों के परिवार में हुआ। वह एक बंजारा जनजाति से थी जो उनके पिता इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे। उनकी बंजारा जनजाति भारत के विभाजन के तुरंत बाद कराची चली गई।[५] भारत विभाजन के कुछ देर बाद उनका परिवार पाकिस्तान में जा बसा।[६] उनका कहना है कि शास्त्रीय संगीत में उनको कोई शिक्षा हासिल नहीं हुई।[७] रेशमा नें एक इंटरव्यू में कहा है के "मेरा जन्म बीकानेर राजस्थान के पास एक क़स्बे में एक सौदागरों के परिवार में हुआ। जन्म का साल तो मुझे मालूम नहीं लेकिन मुझे बताया गया के जब मुझे १९४७ में पाकिस्तान लाया गया तो मेरी चंद माह की ही उम्र थी। मेरे परिवार वाले बीकानेर से ऊँट ले जाकर और जगहों पर बेचते थे और वहां से गाय-बकरियां वापस ला कर घर के पास बेचते थे। मैं बंजारों के एक बड़े क़बीले से हूँ और मेरा परिवार हमेशा इधर से उधर सफ़र ही करता रहता था। हम में से कईं अब लाहौर और कराची में बस गए हैं लेकिन जब भी हमें फिर सफ़र याद आता है हम बोरिया-बिस्तर बाँध के चल देतें हैं।"[८]
रेशमा अनपढ़ थी और अनौपचारिक तरीक़े से बोलती थी। उन्होंने हमेशा भारत-पाकिस्तान मित्रता को बढ़ाने की बात की थी। रेशमा ने सुश्री इन्दिरा गान्धी के सामने भी गाया था। रेशमा ठेठ पंजाबी बोलतीं थीं।[९] १९४७ के विभाजन के बाद, जनवरी २००६ में जब पंजाब के दोनों हिस्सों के बीच लाहोर-अमृतसर बस पहली बार चली तो सबसे पहली बस पर २६ यात्री थे, जिसमे से १५ पाकिस्तान सरकार के अफ़सर थे। बाक़ी यात्रियों में से ७ रेशमा और उनके परिवारजन थे।[१०][११]
प्रसिद्धि
रेशमा सब से पहले रेडियो पाकिस्तान पर गाने गाकर मशहूर हुईं थीं।[१२][१३] उनके सब से जाने माने गानों में "दमादम मस्त क़लन्दर", "हाय ओ रब्बा, नहियो लाग्दा दिल मेरा", "सुन चरख़े दी मिट्ठी-मिट्ठी कूक माहिया मईनु याद आउंदा", "वे मैं चोरी-चोरी" और "अक्खियाँ नूं रैह्न दे अक्खियाँ दे कोल" शामिल हैं। "अक्खियाँ नूं रैह्न दे अक्खियाँ दे कोल" को राज कपूर ने १९७३ में बनी फ़िल्म बॉबी में हिन्दी में अनुवादित कर के "अक्खियों को रहने दे अक्खियों के पास" के रूप में डाला। धीरे-धीरे रेशमा के गाने सीमा पार कर के भारत में लोकप्रिय होने लगे। १९८०-९० के अरसे में जब भारत-पाकिस्तान के दरमयान कलाकारों को आने-जाने की कि अनुमति दी गयी, तो रेशमा नें भारत में गाने गाये। सुभाष घई नें अपनी फ़िल्म 'हीरो' में उनसे "लम्बी जुदाई" गवाया जो बहुत प्रसिद्ध हुआ।[१४]
रेशमा नें पंजाबी और हिन्दी-उर्दू के अलावा सिन्धी, राजस्थानी, पहाड़ी-डोगरी और पश्तो में गाने गाये थे।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- रेशमा हिन्दी गीत "लम्बी जुदाई" गाते हुए (यु-ट्यूब पर)
- रेशमा पंजाबी गीत "अक्खियाँ नूं रैहन दे" गाते हुए (यु-ट्यूब पर)
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ Banjaran singer Reshma स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Banjara Times
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- ↑ India-Pakistan bus links Punjab - बीबीसी न्यूज़
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