रूसी रूपवाद
साँचा:asbox रूसी रूपवाद (Russian formalism) साहित्यिक आलोचना का एक प्रभावशाली स्कूल (सम्प्रदाय) था जो १९१० के दशक से आरम्भ होकर १९३० के दशक तक मौजूद था।
प्राथमिक रूप से १९१६ ई. में बोरिस ईकेन बॉम, विक्टर श्कलोवस्की तथा यूरी तान्यनोव द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग और फिर पेट्रोग्राद में स्थापित काव्य भाषा अध्ययन समुदाय (OPOYAZ) के कार्यों को रूसी रूपवाद कहा जाता है। इसमें १९१४ ई. में रोमन जैकोब्सन द्वारा स्थापित "द मॉस्को लिंग्विस्टिक सर्कल" के कार्य भी शामिल किए जाते हैं। प्रायः फूकोवादी ब्लादिमीर पोप भी इस आन्दोलन से जुड़े माने जाते हैं।
ईकेन बॉम ने 1926 ई. में ”रूपवादी पद्धति का सिद्धांत”("द थियोरी ऑफ द ‘फॉर्मल मेथड’") शीर्षक एक निबन्ध लिखा था। यह रूपवादियों द्वारा प्रस्तावित की गई पद्धति का परिचय देने वाला है। इसमें निम्नलिखित आधारभूत विचारों को शामिल किया गया है–
- इसका लक्ष्य “साहित्य का एक ऐसा विज्ञान जो स्वतंत्र और तथ्यपरक दोनों होगा” जिसे कभी कभी काव्यशास्त्र कहकर भी संबोधित किया जाता है पैदा करना है।
- चूंकि साहित्य भाषा द्वारा निर्मित होता है इसलिए भाषाविज्ञान साहित्य के विज्ञान का आधारभूत तत्व होगा।
- साहित्य बाहरी स्थितियों से स्वायत्त होता है इस अर्थ में कि साहित्यिक भाषा सामान्य प्रयोगों की भाषा से विशिष्ट होती है, कम-से-कम क्योंकि यह उस तरह पूर्णतः संप्रेषणात्मक नहीं होती है।
- साहित्य का एक अपना इतिहास है; रूपवादी संरचना में आविष्कार का इतिहास; और यह बाहरी भौतिक पदार्थों के इतिहास से निर्धारित नहीं होता है जैसा की मार्क्सवाद के कुछ क्रूर संस्करणों में बताया जाता है।
- साहित्यिक कृति जो कहती है उसे जैसे वह कहती है इससे अलगाया नहीं जा सकता है। इसलिए रूप और वस्तु अविच्छन्न और एक दूसरे के भाग होते हैं
आइचनबॉम के अनुसार स्कोलोवस्की इस समूह के सबसे अग्रणी आलोचक थे। उन्होंने इससे संबंधित दो संकल्पनाएं दी हैं।
- (१) अपरिचितिकरण (डिफिमिलियराइजेशन)
- (२) कथानक का विशिष्टीकरण
रूसी रूपवादियों ने साहित्यिक आलोचना में प्रायः सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक प्रभावों या लेखक के जीवन की भूमिका को अस्वीकार किया। विक्टर श्क्लोवस्की के शुरुआती लेखन "कला जैसे कि एक उपकरण" (Iskusstvo kak priem , 1916) के मुख्य तर्कों में इस सिद्धांत का स्पष्ट उल्लेख देखा जा सकता है। [१]