रिवर्स रेपो रेट

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पुनः क्रय अनुबंध अथवा रिपर्चेज एग्रीमेंट (Repurchase agreement) अथवा रेपो सामान्यतः सरकारी प्रतिभूतियों से लघु-अवधि उधार को कहते हैं। इसमें विक्रेता निवेशकों को विचाराधीन प्रतिभूतियों का विक्रय करता है और उसके कुछ दिनों बाद थोड़े अधिक मूल्य के साथ पुनः क्रय कर सकता है।

रिजर्व बैंक इंडिया के लिए रेपो का उपयोग

भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम या अधिक करने के लिए रेपो और रिवर्स रेपो को काम में लेता है। आरबीआई वाण्यिजिक बैंकों को जब उधार देता है तो उसे रेपो दर (repo rate) कहा जाता है। मुद्रास्फीति के समय, आरबीआई रेपो दर को बढ़ा देता है जिससे बैंकों द्वारा धन उधार लेने और अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होने को हतोत्साहित किया जाता है।[१] October 2019 के अनुसार आरबीआई रेपो दर 5.15% कर दिया है

रिवर्स रेपो रेट रिवर्स रेपो रेट को घटकर 4.90% हो गया है. रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है. बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में रिवर्स रेपो रेट काम आती है. नकदी बाजार में जब भी बहुत ज्यादा दिखाई देती है तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, जिससे की बैंक ज्यादा ब्याज कमाने हेतु अपनी रकमे उसके पास जमा करा दे.

सन्दर्भ

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