रानी कमलापति
रानी कमलापति १८वीं शताब्दी की भारत की एक रानी और वीरांगना थीं। वह भोपाल से ५० किलोमीटर दूर स्थित गिन्नौरगढ़ के गोंड राजा निजाम शाह की पत्नी थीं। नवम्बर २०२१ में भोपाल के 'हबीबगंज' नामक रेलवे स्टेशन का नाम 'रानी कमलपति रेल्वे स्टेशन' किया गया।
१६वीं सदी में भोपाल गोंड शासकों के अधीन था। कमलापति का विवाह गोंड राजा सूरज सिंह शाह के बेटे निजाम शाह से हुआ था। सन 1710 में भोपाल की ऊपरी झील के आसपास का क्षेत्र भील और गोंड आदिवासियों ने बसाया था। तत्कालीन गोंड सरदारों में निजाम शाह सबसे मजबूत माने जाते थे।[१]
गिन्नौरगढ़ के शासक निजाम शाह की ७ रानियाँ थीं। कमलापति उनकी सबसे प्रिय रानी थीं। निजाम शाह का भतीजा आलम शाह बाड़ी का शासक था। आलम की नजर निजाम शाह की संपत्ति पर था। अपने चाचा निजाम शाह की हत्या के लिए भतीजा आलम शाह लगातार षड्यंत्र रचना रहता था। मौका पाकर दसने राजा के खाने में विष मिलवा कर १७२० ई में उसकी हत्या कर दी। उससे रानी और उनके बेटे को भी खतरा था। ऐसे में रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह को गिन्नौरगढ़ से भोपाल स्थित रानी कमलापति महल ले आईं। रानी कमलापति अपने पति की मौत का बदला लेना चाहती थीं, लेकिन दिक्कत ये थी कि उनके पास न तो फौज थी और न ही पैसे।
इतिहासकारों के अनुसार, उसी समय अफगान दोस्त मोहम्मद भोपाल पर अधिकार करने के लिये प्रयासरत था। इससे पहले वह जगदीशपुर पर अधिकार कर उसका नाम इस्लामनगर रख चुका था। रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद खान से सहायत मांगी। उसने इसके लिये रानी से रानी से एक लाख रुपये की मांग की। रानी कमलापति को बदला लेना था, अतः पैसे न रहते हुए भी उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। दोस्त मोहम्मद खान कभी मुगल सेना का हिस्सा हुआ करता था। लूटी हुई संपत्तियों के हिसाब में गड़बड़ी के बाद उसे सेना से निकाल दिया गया था। फिर उसने भोपाल के पास जगदीशपुर में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी।
कमलापति के साथ दोस्त मोहम्मद ने निजाम शाह के भतीजे बाड़ी के राजा आलम शाह पर हमला कर उसकी हत्या कर दी और इस तरह कमलापति ने अपने पति की हत्या का बदला ले लिया।
रानी कम्लापति के अन्तिम दिनों का इतिहास ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। कहते हैं कि दोस्त मोहम्मद के बढ़ते दबाव के कारण रानी कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब की ओर कूद कर जान दे दी, तब यहां से कोलांस नदी की धारा बहती थी। इसके उपरान्त दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया तथा उसने रानी के पुत्र नवलशाह को भी मार डाला।[२]
अन्तिम हिन्दू रानी के रुप में कमला पति ।
रानी कमलापति के साहस और खूबसूरती के चर्चे चारों ओर होने लगे सोलवीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांव को मिलाकर गिन्नौड़गढ़ राज बनाया गया जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सूरज सिंह शाह थे।इनके पुत्र निजाम शाह,जो कि बहुत बहादुर, निडर तथा हर कार्य क्षेत्र में निपुण थे ,उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ। सन् 1710 में भोपाल की ऊपरी झील के आसपास का क्षेत्र भीड़ और गोंड आदिवासियों ने बसाया था तत्कालीन गोंड सरदारों में निजाम शाह सबसे मजबूत माने जाते थे।
निजाम शाह की सात पत्नियां थी जिनमें रानी कमलापति सातवें नंबर की थीं। निजाम शाह अपनी पत्नी रानी कमलावती से बहुत प्रेम करते थे। निजाम शाह ने रानी कमलापति को प्रेम स्वरूप की 1720 में एक सात मंजिला महल का निर्माण कराया । यह सात मंजिला महल अपनी सुंदरता, भव्यता और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध था। रानी कमलापति का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल था। राजा निजाम शाह और कमलापति का एक पुत्र था, जिसका नाम नवल शाह रखा गया।
वे राजा निजामशाह की सातवीं पत्नी थीं। रानी कमलापति अपने पति के साथ राजकीय कार्य जैसे जनता की परेशानियों को समझना, राज्य की गोंड़ संस्कृति पर ध्यान देना एवं राजकीय वित्तीय कोष का हिसाब रखना आदि कार्य में सहयोग देती थी। गिन्नौरगढ़ की उन्नति और रानी की खूबसूरती आसपास के राजाओं को खटकने लगी। गिन्नौरगढ़ के पास ही निजाम शाह के भतीजे आलम शाह जो की बाड़ी रियासत का शासक था । चाचा -भतीजा में रियासत को लेकर भी अनबन शुरू हो गई थी। उनका भतीजा आलम शाह चाचा की रियासत हड़पना चाहता था।
इसी लालच के चलते एक दिन उसने अपने चाचा को खाने पर बुलाया और उसके भोजन में जहर मिलाकर उनकी हत्या कर दी । अब उसकी नजर रानी कमलापति और उसके राज्य पर थी। अपनी सुरक्षा के लिए रानी अपने बेटे नवल शाह को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल कमलापति[३] महल में आकर रहने लगी। लेकिन उनके मन में अपने पति की हत्या का बदला लेने का भाव मुझे बेचैन कर रहा था। सेना और पैसे के अभाव में वे बदला लेने में असमर्थ थीं।
कमलापति महल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भोपाल स्थित रानी कमलापति का महल की दीवारें जीर्णशीर्ण आजकल हो गई हैं। छोटी झील के ऊपर बना यह महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है। इस महल के बारे में बताया जाता है कि यह महल परमार राजा भोज द्वारा भोपाल ताल के पूर्वी प्राचीन बांध के ऊपर बनाया गया है, जो 'भोजपाल' के नाम से भी जाना जाता है। कालान्तर में इससे वर्तमान भोपाल का प्रादुर्भाव हुआ। सन 1722 में रानी कमलापति द्वारा इसे बनवाया गया था। यह महल नगर में १८वीं सदी में निर्मित तत्कालीन राज्य की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है।
इस दो मंजिल महल के निर्माण में लाखोरी ईंटों का प्रयोग किया गया है, जिसका ऊपरी भाग मेहराबों तथा कमल की पंखुड़ियों से अलंकृत स्तम्भों पर आधारित है। महल में सामने की ओर छज्जे बनाए गए हैं। इस महल को भारतीय पुरातात्विक स्मारक के रूप में भारत सरकार द्वारा 1989 में संरक्षित घोषित किया गया और तभी से यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अधीन है।
सन्दर्भ
- ↑ रानी कमलापति की यादों को आज भी ताजा कर देता है उनका महल
- ↑ शौर्य और सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं रानी कमलापति, जिनके नाम पर हुआ हबीबगंज रेलवे स्टेशन
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