राजस्थानी संस्कृति
राजस्थान में मुश्किल से कोई महीना ऐसा जाता होगा, जिसमें धार्मिक उत्सव न हो। सबसे उल्लेखनीय व विशिष्ट उत्सव गणगौर है, जिसमें महादेव व पार्वती की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा 15 दिन तक सभी जातियों की स्त्रियों के द्वारा की जाती है, और बाद में उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन की शोभायात्रा में पुरोहित व अधिकारी भी शामिल होते हैं व बाजे-गाजे के साथ शोभायात्रा निकलती है। हिन्दू,सिख,जैन और बौद्ध एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। इन अवसरों पर उत्साह व उल्लास का बोलबाला रहता है। एक अन्य प्रमुख उत्सव अजमेर के निकट पुष्कर में होता है, जो धार्मिक उत्सव व पशु मेले का मिश्रित स्वरूप है। यहाँ राज्य भर से किसान अपने ऊँट व गाय-भैंस आदि लेकर आते हैं, एवं तीर्थयात्री मुक्ति की खोज में आते हैं। अजमेर स्थित ब्रह्मा जी का मंदिर दुनियां का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर कंबंधो(वे योद्धा जिनका धड़ सर कटने के बाद भी सैकड़ों किलोमीटर और सैकड़ों लोगों से या कई घंटों तक लड़ा हो) की पूजा होती है। [१]
नृत्य-नाटिका
राजस्थान का विशिष्ट नृत्य घूमर है, जिसे उत्सवों के अवसर पर केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है।[२] घेर नृत्य (महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाने वाला, पनिहारी (महिलाओं का लालित्यपूर्ण नृत्य), व कच्ची घोड़ी (जिसमें पुरुष नर्तक बनावटी घोड़ी पर बैठे होते हैं) भी लोकप्रिय है। सबसे प्रसिद्ध गीत ‘कुर्जा’ है, जिसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने पति को कुर्जा पक्षी के माध्यम से संदेश भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा के बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने भारतीय कला में अपना योगदान दिया है और यहाँ साहित्यिक परम्परा मौजूद है। विशेषकर भाट कविता की। चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद रासा, विशेष उल्लेखनीय है, जिसकी प्रारम्भिक हस्तलिपि 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम ख़्याल है, जो एक नृत्य-नाटिका है और जिसके काव्य की विषय-वस्तु उत्सव, इतिहास या प्रणय प्रसंगों पर आधारित रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुर्लभ वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, जिनमें बौद्ध शिलालेख, जैन मन्दिर, क़िले, शानदार रियासती महल और मंदिर शामिल हैं।
त्योहार
राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है। यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध हैं. सात वार नौ त्योहार. यहाँ के मेले और पर्व राज्य की संस्कृति के परिचायक हैं. यहाँ लगने वाले पशु मेले व्यक्ति और पशुओं के बीच की आपसी निर्भरता को दिखाते हैं. राज्य के बड़े मेलों में पुष्कर का कार्तिक मेला[३], परबतसर और नागौर के तेजाजी का मेला को गिना जाता हैं. यहाँ तीज का पर्व सबसे बड़ा माना गया है श्रावण माह के इसी पर्व के साथ त्योहारों की श्रंखला आरम्भ होती हैं जो गणगौर तक चलती हैं. इस सम्बन्ध में कथन है कि तीज त्योहारा बावरी ले डूबी गणगौर. होली, दीपावली, विजयदशमी, नवरात्र जैसे प्रमख राष्ट्रीय त्योहारों के अलावा अनेक देवी-देवताओं, संतो और लोकनायकों तथा नायिकाओं के जन्मदिन मनाए जाते हैं। यहाँ के महत्त्वपूर्ण मेले हैं तीज, गणगौर(जयपुर), जीण माता मेला (सीकर), बेनेश्वर (डूंगरपुर) का जनजातीय कुंभ, श्री महावीर जी (सवाई माधोपुर मेला), रामदेवरा या रूणेचा(जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला(मुकाम-बीकानेर), कार्तिक पूर्णिमा और पशु-मेला (पुष्कर-अजमेर) और श्याम जी मेला (सीकर) आदि।
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा तहसील में संगरिया के पास में धनोप माताजी का एक प्रसिद्ध मेला भरता है जो नवरात्रा में भरता है धनोप माता राजा धुंध की कुलदेवी थी और इस मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के शासन काल के समय बताया जाता है प्राचीन काल में यह नगर राजा धुंध की नगरी की जिसे ताम्रवती नगरी के नाम से भी जाना जाता था
टूरिज्म फेस्टिवल
राजस्थान को फेस्टिवल टूरिज्म का प्रमुख केंद्र कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पुष्कर मेला देश के सबसे बड़े आकर्षणों में से है। हर साल लाखों श्रद्धालु पुष्कर आकर पवित्र झील में डूबकी लगाते हैं। यहां दुनिया का सबसे बड़ा ऊंटों का मेला भी लगता है जिसमें 50,000 ऊँट हिस्सा लेते हैं। जनवरी, 2010 में इस मेले ने बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर 12 साल पर कुंभ होता है जबकि हर छह साल में अर्द्धकुंभ का आयोजन हरिद्वार और प्रयाग में होता है। इनमें विदेशी पर्यटक भारी तादाद में आते हैं।