राजस्थानी भाषा आंदोलन
राजस्थानी भाषा आन्दोलन 1947 से कार्यरत राजस्थानी भाषा के अधिक से अधिक प्रचार एवं मान्यता दिलाने के लिए प्रयासरत आन्दोलन है। राजस्थानी भाषा "मायड़ बोली" कि आवाज, प्रतिगीत ,प्रेरक गीत के रूप में क्रांतिकारी सुखवीर सिहँ कविया का गीत "क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै" बना । मीठो गुड़ मिश्री मीठी, मीठी जेडी खांड मीठी बोली मायडी और मीठो राजस्थान ।।
गण गौरैयाँ रा गीत भूल्या भूल्या गींदड़ आळी होळी नै, के हुयो धोरां का बासी, क्यूँ भूल्या मायड़ बोली नै ।।
कालबेलियो घुमर भूल्या नखराळी मूमल झूमर भूल्या लोक नृत्य कोई बच्या रे कोनी क्यू भूल्या गीतां री झोळी नै, कै हुयो धोरां का बासी क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
जी भाषा में राणा रुओ प्रण है जी भाषा में मीरां रो मन मन है जी भाषा नै रटी राजिया, जी भाषा मैं हम्मीर रो हट है धुंधली कर दी आ वीरां के शीस तिलक री रोळी नै, के हुयो धोरां का बासी, क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
घणा मान रीतां में होवै गाळ भी जठ गीतां में होवे प्रेम भाव हगळा बतलाता क्यू मेटि ई रंगोंळी नै, के हुयो धोरां का बासी क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
पीर राम रा पर्चा भूल्या माँ करणी री चिरजा भूल्या खम्माघणी ना घणीखम्मा है भूल्या धोक प्रणाम हमझोळी नै के हुयो धोरां का बासी, क्यू भूल्या मायड़ बोली नै ।।
बिन मेवाड़ी मेवाड़ कठै मारवाड़ री शान कठै मायड़ बोली रही नहीँ तो मुच्चयाँळो राजस्थान कठै ।।
(थारी मायड़ करे पुकार जागणु अब तो पड़सी रै - Repeat )
- सुखवीर सिंह कविया Sukhveer singh kaviya