रफिया मंजूरूल अमीन
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रफिया मंजूरूल अमीन (१९३०- ३० जून २००८) उर्दू की जानीमानी लेखिकाओं में से हैं। उनका पहला उपन्यास था 'सारे जहाँ का दर्द'। जो कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था और इसे लखनऊ के नसीम अनहोन्वी के प्रकाशन ने छापा था। उनका दूसरा उपन्यास था--'ये रास्ते' और इसके बाद आया 'आलमपनाह'। उन्होंने दो सौ से ज्यादा कहानियाँ लिखी हैं। वे विज्ञान की छात्रा थीं और उन्होंने एक विज्ञान-पुस्तक भी लिखी--'साइंसी ज़ाविये'। ९० के दशक में रेडियो पर आलमपनाह का रूपांतरण जितना लोकप्रिय हुआ था उतना ही लोकप्रिय हुआ था इसका टी.वी. रूपांतरण।[१]