रंगभूमि
रंगभूमि प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है।
उपन्यास - रंगभूमि लेखक-मुंशी प्रेमचंद पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष व बदलाव की महान गाथा है प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’।
उपन्यास - रंगभूमि
लेखक-मुंशी प्रेमचंद |
पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष व बदलाव की महान गाथा है प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है. विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं. रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है. नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन तथा स्त्री दुदर्शा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है. परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है. देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीणर्ता और वासनाओं से ऊपर उठकर नि:स्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी. रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है. कथा का नायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्रनायक की छवि लगती है. पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है. यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है. कहानी में सूरदास के अलावा सोफी, विनय, जॉन सेवक, प्रभु सेवक का किरदार भी अहम है. सोफी मिसेज जॉन सेवक, ताहिर अली, रानी, डाक्टर गांगुली, क्लार्क, राजा साहब, इंदु, ईश्वर सेवक, राजा महेंद्र कुमार सिंह, नायकरामघीसू, बजगंरी, जमुनी, जाह्नवी, ठाकुरदीन, भैरों जैसे कईं किरदार हैं.
सूरदास और सोफी का चरित्र
शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है. उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है. उसके मध्य भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएं और उनके मुकदमेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है. शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती हैं. बनारस में पांडेपुर ऐसी ही बस्ती है. वहां न शहरी दीपकों की ज्योति पहुंचती है, न शहरी छिड़काव के छींटे. दो-चार बिगड़े सफेदपोशों के भी हैं, जिन्हें उनकी हीनावस्था ने शहर से निर्वासित कर दिया है. इन्हीं में एक गरीब और अंधा चमार रहता है, जिसे लोग सूरदास कहते हैं. उनके गुण और स्वभाव भी जगत प्रसिद्ध हैं-गाने-बजाने में विशेष रुचि, हृदय में विशेष अनुराग, अध्यात्म और भक्ति में विशेष प्रेम, उनके स्वाभाविक लक्षण हैं. सूरदास एक बहुत ही क्षीणकाय, दुर्बल और सरल व्यक्ति था. पैदल चलने वालों को वह अपनी जगह पर बैठे-बैठे दुआएं देता था , लेकिन जब कोई इक्का आ निकलता, तो वह उसके पीछे दौड़ने लगता वहीं मिस सोफिया बड़ी-बड़ी रसीली आंखोंवाली, लज्जाशील युवती है. देहअति कोमल, माने पंचभूतों की जगह पुष्पों से उसकी सृष्टि हुई हो. रूप अति सौम्य, मानो लज्जा और विनय मूतिर्मान हो गए हों. सिर से पांव तक चेतना ही चेतना थी. जड़ का कहीं आभास तक न था. वह धर्म पर विश्वास करती थी लेकिन अंधविश्वास पर नहीं. इसका यह कथन कि महात्मा ईसा के प्रति कभी मेरे मुँह से कोई अनुचित शब्द नहीं निकला. मैं उन्हें धर्म, त्याग और सद्विचार का अवतार समझती हूँ! लेकिन उनके प्रति श्रध्दा रखने का यह आशय नहीं है कि भक्तों ने उनके उपदेशों में जो असंगत बातें भर दी हैं या उनके नाम से जो विभूतियाँ प्रसिध्द कर रखी हैं, उन पर भी ईमान लाऊँ! और, यह अनर्थ कुछ प्रभु मसीह ही के साथ नहीं किया गया, संसार के सभी महात्माओं के साथ यही अनर्थ किया गया. यह स्पष्ट होता है कि वह ऐसी लड़की नहीं थी कि जो समाज की सड़ीगली या थोपे गए मतों पर विश्वास करे.
{उपन्यास का सारांश}
गोदाम के पीछे की ओर एक विस्तृत मैदान था. यहां आस-पास के जानवर चरने आया करते थे। जॉन सेवक यह जमीन लेकर यहां सिगरेट बनाने का एक कारखाना खोलना चाहते थे. जमीन सूरदास की है. वह अपनी जमीन सिगरेट का कारखाना लगाने के लिए नहीं देना चाहता. उसे कईं तरह का प्रलोभन दिखाया जाता है लेकिन वह जमीन देने को राजी नहीं तो क्या जॉन सेवक बिना कारखाना लगाए ही चले जाते हैं यार सूरदास से जबरन जमीन छीन जाती है क्या गांववाले सूदरदास का समर्थन करते हैं या उसे अकेले ही जंग लड़नी पड़ती है? कहानी के दूसरे पन्ने में ईसाई लड़की सोफिया विनय सिंह से प्रेम कर बैठती है. जातप्रथा के उस दौरा में सोफिया-विनय का प्यार सफल हो पाता है? यह तो आपको कहानी पढ़ने से ही पता लगेगा.
जिंदगी की सच्चाइयों से होंगे वाकीफ
रंगभूमि कहानी है स्वतंत्रता आंदोलन की, संघर्ष की. अपनी कर्मभूमि में अपने कर्तव्य की.
तू रंगभूमि में आया, दिखलाने अपनी माया,
क्यों धरम-नीति को तोड़ै? भई, क्यों रन से मुँह मोड़ै?
काहनी के नायक सूरदास की इन पंक्तियों में सच्चाई है. यह जिंदगी की सच्चाइयों से वाकीफ कराती है. इंसान चाहे किसी भी हालत में हो उसे रंगभूमि में आकर कर्म करना पड़ता है और जो नीति और धर्म से मुँह मोड़ता है उसे धुत्कार ही मिलती है. सोफी-विनय के प्रेम की गाथा सोफी और विनय का मिलन जाति भेद के कारण लगभग अंसभव था . उनका प्रेम शाश्वत था. तमाम संघर्षों के बावजूद वो एक दूसरे से प्रेम करते रहे. कारगार मे विनय से मिलने आई सोफी की इन बातों से यह स्पष्ट होाा है कि अपनी त्राुटियों और दोषों का प्रदर्शन करके तुमने मुझे और भी वशीभूत कर लिया. तुम मुझसे डरते हो, इसलिए तुम्हारे सम्मुख न आऊँगी, पर रहूँगी तुम्हारे ही साथ. जहाँ-जहाँ तुम जाओगे, मैं परछाईं की भाँति तुम्हारे साथ रहूँगी. प्रेम एक भावनागत विषय है, भावना से ही उसका पोषण होता है, भावना ही से वह जीवित रहता है और भावना से ही लुप्त हो जाता है. वह भौतिक वस्तु नहीं है. तुम मेरे हो, यह विश्वास मेरे प्रेम को सजीव और सतृष्ण रखने के लिए काफी है. जिस दिन इस विश्वास की जड़ हिल जाएगी,उसी दिन इस जीवन का अंत हो जाएगा. अगर तुमने यही निश्चय किया है कि इस कारागार में रहकर तुम अपने जीवन के उद्देश्य को अधिाक सफलता के साथ पूरा कर सकते हो, तो इस फैसले के आगे सिर झुकाती हूँ. इस विराग ने मेरी दृष्टि में तुम्हारे आदर को कई गुना बढ़ा दिया है.
सोफी की मृत्यु की अफवाह प्रसारित होने के बाद विनय का उसे ढूंढ निकालना भी शाश्वत प्रेम का प्रतीक है.
मयंक पटेल लाइव |
रंगभूमि उपन्यास पर "मयंक पटेल लाइव" के विचार
रंगभूमि में कुछ भी खामी नहीं जिसे मुद्दा बनाया जा सके लेकिन फिर भी इसमें एक छोटी सी खामी लगी कभी-कभी सोफिया के किरदार को ज्यादा नकरात्मक दिखाया गया है जैसे अपने निजी फायदों के लिए मि. क्लार्क का इस्तमाल करना लेकिन कहानी के कुछ हिस्सों में उसे नायिका की तरह पेश किया गया है. इससे उसकी छवि स्पष्ट नहीं हो पाती. जो भी हो लेकिन सूरदास का किरदार उसे राष्ट्रनायक तथा कहानी को महागाथा जरूर बनाती है.
सारांश
कथा सम्राट प्रेमचंद (1880-1936) का पूरा साहित्य, भारत के आम जनमानस की गाथा है। विषय, मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती इनकी रचनाएँ इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हैं, और कालजयी कृतियों में गिनी जाती हैं। रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है। नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मध्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है। परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है। देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीर्णता और वासनाओं से ऊपर उठकर निःस्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी। रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है। कथानायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की छवि लगती है। सूरदास की मृत्यु भी समाज को एक नई संगठन-शक्ति दे गई। विविध स्वभाव, वर्ग, जाति, पेशा एवं आय वित्त के लोग अपने-अपने जीवन की क्रीड़ा इस रंगभूमि में किये जा रहे हैं। और लेखक की सहानुभूति सूरदास के पक्ष में बनती जा रही है। पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है। यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है।
{प्रेमचंद की कृतियाँ}}
कहानियाँ
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1. अन्धेर
2. अनाथ लड़की
3. अपनी करनी
4. अमृत
5. अलग्योझा
6. आख़िरी तोहफ़ा
7. आखिरी मंजिल
8. आत्म-संगीत
9. आत्माराम
10. दो बैल की कथा
11. आल्हा
12. इज्जत का खून
13. इस्तीफा
14. ईदगाह
15. ईश्वरीय न्याय [1]
16. उद्धार
17. एक ऑंच की कसर
18. एक्ट्रेस
19. कप्तान साहब
20. कर्मों का फल
21. क्रिकेट मैच
22. कवच
23. क़ातिल
24. कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
25. कौशल़
26. खुदी
27. गैरत की कटार
28. गुल्ली डण्डा
29. घमण्ड का पुतला
30. ज्योति
31. जेल
32. जुलूस
33. झांकी
34. ठाकुर का कुआं
35. तेंतर
36. त्रिया-चरित्र
37. तांगेवाले की बड़
38. तिरसूल
39. दण्ड
40. दुर्गा का मन्दिर
41. देवी
42. देवी - एक और कहानी
43. दूसरी शादी
44. दिल की रानी
45. दो सखियाँ
46. धिक्कार
47 धिक्कार - एक और कहानी
48. नेउर
49. नेकी
50. नब़ी का नीति-निर्वाह
51. नरक का मार्ग
52. नैराश्य
53. नैराश्य लीला
54. नशा
55. नसीहतों का दफ्तर
56. नाग-पूजा
57. नादान दोस्त
58. निर्वासन
59. पंच परमेश्वर
60. पत्नी से पति
61. पुत्र-प्रेम
62. पैपुजी
63. प्रतिशोध
64. प्रेम-सूत्र
65. पर्वत-यात्रा
66. प्रायश्चित
67. परीक्षा
68. पूस की रात
69. बैंक का दिवाला
70. बेटोंवाली विधवा
71. बड़े घर की बेटी
72. बड़े बाबू
73. बड़े भाई साहब
74. बन्द दरवाजा
75. बाँका जमींदार
76. बोहनी
77. मैकू
78. मन्त्र
79. मन्दिर और मस्जिद
80. मनावन
81. मुबारक बीमारी
82. ममता
83. माँ
84. माता का ह्रदय
85. मिलाप
86. मोटेराम जी शास्त्री
87. र्स्वग की देवी
88. राजहठ
89. राष्ट्र का सेवक
90. लैला
91. वफ़ा का ख़जर
92. वासना की कड़ियॉँ
93. विजय
94. विश्वास
95. शंखनाद
96. शूद्र
97. शराब की दुकान
98. शान्ति
99. शादी की वजह
100. शान्ति
101. स्त्री और पुरूष
102. स्वर्ग की देवी
103. स्वांग
104. सभ्यता का रहस्य
105. समर यात्रा
106. समस्या
107. सैलानी बन्दर
108. स्वामिनी
109. सिर्फ एक आवाज
110. सोहाग का शव
111. सौत
112. होली की छुट्टी
113.नम क का दरोगा
114.गृह-दाह
115.सवा सेर गेहुँ नमक कादरोगा
116.दुध का दाम
117.मुक्तिधन
118.कफ़न
उपन्यास
प्रेमचंद द्वारा लिखे गए उपन्यासों की सूची।[1]
- सेवासदन (१९१८)
- प्रेमाश्रम १९२२
- रंगभूमि १९२५
- निर्मला (१९२५)
- कायाकल्प १९२७
- गबन (१९२८)
- कर्मभूमि (१९३२)
- गोदान (१९३६)
- मंगलसूत्र (अपूर्ण)
नाटक
मुंशी जी ने तीन नाटक भी लिखे किन्तु नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक वस्तुतः संवादात्मक उपन्यास ही बन गए हैं।
- संग्राम (1923)
- कर्बला (1924)
- प्रेम की वेदी (1933)
बाहरी कड़ियाँ
विकिस्रोत पर इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है: |