नीलगिरी वृक्ष
स्क्रिप्ट त्रुटि: "about" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। साँचा:taxobox दोस्तों में सुदर्शन यहाँ आपको बताऊंगा नीलगिरी के पेड़ के बारे में जानकारियां
नीलगिरी (अंग्रेज़ी:यूकेलिप्टस) मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाया जाने वाला पौधा है। इसके अलावा भारत, उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप में भी नीलगिरी के पौधों की खेती की जाती है। दुनिया भर में इसकी लगभग ३०० प्रजातियां प्रचलन में हैं। यह पेड़ काफी लंबा और पतला होता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग औषघि और अन्य रूप में किया जाता है। पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं जिनकी सतह पर गांठ पाई जाती है जिसमें तेल संचित रहता है। इस पौधे की पल्लवों पर फूल लगे होते हैं जो एक कप जैसी झिल्ली से अच्छी तरह ढंके होते हैं। फूलों से फल बनने की प्रक्रिया के दौरान यह झिल्ली स्वयं ही फट कर अलग हो जाती है। इसके फल काफी सख्त होते हैं जिसके अंदर छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं।[१]
परिचय
यूकेलिप्टस (Eucalyptus) मिर्टेसी (Myrtaceae) कुल का एक बहुत ऊँचा वृक्ष हैं। इसकी लगभग 600 जातियाँ हैं, जो अधिकांशत: आस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाई जाति हैं। यूकेलिप्टस रेंगनेस (Eucalyptus regnas) इनमें सबसे ऊँची जाति हैं, जिसके वृक्ष 322 फुट तक ऊँचे होते हैं। उपयोगिता के कारण यूकेलिप्टस अब अमरीका, यूरोप, अफ्रीका एवं भारत में बहुतायतश् से उगाया जा रहा है। बीज नरम, उपजाऊ भूमि में सिंचाई करके बो दिया जाता है। कुछ वर्ष बाद छोटे छोटे पौधों को सावधानी से निकालकर, जंगलों में लगा दिया जाता है। ऐसे समय जड़ों की पूरी देखभाल करनी पड़ती है, अन्यथा थोड़ी असावधानी से ही उनकी जड़े नष्ट हो जाती हैं। इसके कारण पौधे सूख जाते हैं। दक्षिण भारत में नीलगिरि पर्वत पर यूकेलिप्टस ग्लोबूलस (Eucalyptus globulus) जातिवाला वृक्ष बाहर से मँगाकर लगाया गया है। इस स्थान पर यह बहुत अच्छा उगता है और काफी ऊँचे ऊँचे वृक्ष के जंगल तैयार हो गए हैं। ऊँचे वृक्ष से अच्छे प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है, जो जहाज बनाने, इमारती खंभे, अथवा सस्ते फर्नीचर के बनाने में काम आती है। इसकी पत्तियों से एक शीघ्र उड़नेवाला तेल, यूकेलिप्टस तेल, निकाला जाता है, जो गले, नाक, गुद्रे तथा पेट की बीमारियों, या सर्दी जुकाम में ओषधि के रूप में प्रयुक्त होता है। इस वृक्ष से एक प्रकर का गोंद भी प्राप्त होता है। पेड़ो की छाल कागज बनाने और चमड़ा बनाने के काम में आती है।
विकास
नीलगिरी के पौघे सामान्य मिट्टी और जलवायु में उगते हैं। जिन क्षेत्रों में औसत तापमान ३०-३५ डिग्री तक रहता है वो नीलगिरी की खेती के लिए अनुकूल माने जाते हैं। इस पौघे का विकास बीजों और कलम दोनों से ही किया जा सकता है। चूंकि इसके पौघे काफी लंबे होते हैं इसलिए प्राय: इन्हें जमीन में ही रोपा जाता है। पोघे के उचित विकास के लिए इन्हें पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश, हवा और पानी की आवश्यकता होती है।
तेल
नीलगिरी की ताजा पत्तियों को तोड़कर इससे तेल बनाया जाता है जो विभिन्न रोगों के उपचार में काम आता है। इन पत्तियों से डिस्टीलेशन की प्रक्रिया द्वारा तेल निकालने का काम होता है। इस प्रक्रिया के बाद रंगहीन द्रव्य (तेल) प्राप्त होता है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वाद नहीं होता। इस तेल की सबसे बडी विशेषता यह है कि यह केवल अल्कोहल में घुलनशीन होता है। नीलगिरी तेल का प्रयोग एक एंटीसेप्टिक और उत्तेजक औषधि के रूप में किया जाता है।[१] यह हृदय गति को बढाने में मदद करता है। नीलगिरी का तेल जितना पुराना होता जाता है इसका असर और भी बढता जाता है। [२] यह काफी हद तक मलेरिया रोग के उपचार में भी काम में आता है। गले में दर्द होने पर भी नीलगिरी के तेल का उपयोग किया जाता है।
इसके लंबे तने को बल्लियां और टिम्बर के लिए उपयोग किया जाता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ नीलगिरी। पत्रिका.कॉम।
- ↑ नीलगिरी तेल का उपयोग और फायदे साहूफॉरयो.कॉम
बाहरी कड़ियाँ
लेखक:-सुदर्शन पाटीदार
मोहन बड़ोदिया
जिला - शाजापुर
मध्य प्रदेश