मुरारीलाल शर्मा

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डॉ॰ मुरारीलाल शर्मा पश्चिम ओड़िशा के प्रसिद्ध हिंदीविद्‍ माने जाते हैं। इनके पिता प्रसिद्ध गांधीवादी मिश्रिलाल शर्मा रहे। सन. 1966 में मिश्रिलाल हरियाणा का अपना पुश्तेनी गांव पिराणपुरा छोड़ कर उडिशा के अत्यंत पिछड़े जिले कालाहांडी में बस गये। यहां इन्होंने जीविका के लिए वैद्य का पेशा अपनाया तथा गरीबों को अंधविश्वास से दूर कर सस्ती दवाओं के द्वारा इलाज करने का प्रण लिया। पिता के समाजसेवी भावना ने मुरारीलाल को प्रभावित किया। इन्होंने उच्च शिक्षा जी.एम. कालेज, तथा संबलपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इन्होंने वकालत की दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की परंतु वकालत के पेशे में इनका मन नहीं रमा। इसके वाद इन्होंने अध्यापन के पेशे को चुना तथा लोईसिंगा कालेज से हिंदी शिक्षक के रूप में अपने अध्यापन का कैरियर प्रारंभ किया। ऐसे में जब अपेक्षाकृत संपन्न तटीय ओडिशा का कोई भी प्राध्यापक पश्चिम ओडिशा नहीं आना चाहता था इन्होंने अपनी संपूर्ण सेवा पश्चिम ओडिशा के कालेजों में प्रदान की। ये पंचायत कालेज, बरगड़ हिंदी विभागाध्यक्ष और रीड़र के रूप में सन.2006 में सेवानिवृत्त हुए। डॉ॰ शर्मा अपने छात्रों में अपनी मिलनसारिता और निश्चल चरित्र के लिए जाने जाते हैं। हिंदी की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में इनके विचारप्रद भाषा संबंधी लेख प्रकाशित होते रहते हैं। दलित साहित्य पर इन्होंने विशेष तौर पर कार्य किया है। संबलपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति से जूड़े किसी भी कार्यक्रम में डॉ॰ शर्मा अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। काव्य मंजुषा इनकी विशिष्ट संपादित कृति है जो की संबलपुर विश्वविद्यालय के स्नातक हिंदी के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। हिंदी भाषा के अलावा पश्चिम ओडिशा की ‘कौशली’ भाषा और संस्कृति पर भी इनके कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इनके दिशानिर्देश में वर्तमान में छह: छात्र पी.एचडी की उपाधि हेतु शोध कार्य कर रहे हैं।

संपादित कृति

काव्य मंजूषा, हिंदी भारती

पुरस्कार

  • बाबा अंबेदकर दलित साहित्य सम्मान
  • कोयला भारती सम्मान (२०१५ में)[१]

सन्दर्भ


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