मुक्तछन्द
मुक्तछन्द (Free verse या vers libre) कविता का वह रूप है जो किसी छन्दविशेष के अनुसार नहीं रची जाती न ही तुकान्त होती है। मुक्तछन्द की कविता सहज भाषण जैसी प्रतीत होती है। हिन्दी में मुक्तछन्द की परम्परा सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने आरम्भ की।
हिन्दी का मुक्त छन्द फ्रेंच का 'वर्सलिब्र', अंग्रेजी का 'फ्री वर्स' या 'ब्लैकवर्स' का पर्यायवाची शब्द है। 'मुक्त काव्य' और 'स्वच्छन्द काव्य' प्रयोगकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण भेद हैं। फ्रेंच में - ‘वर्स लिब्र' और 'वर्स लिबेरे' ये दो समानप्रायः ध्वनि वाले पद इस सम्बन्ध में प्रयुक्त होते हैं। 'वर्स लिब्र' को ही अंग्रेजी में ‘फ्री वर्स' कहते हैं और हिन्दी में मुक्तकाव्य या मुक्त छन्द। ‘वर्स लिबेरे', को हम स्वच्छन्द काव्य कह सकते हैं।
पाश्चात्य आधुनिक कविता में मुक्त छन्द व्हिटमैन की सबसे बड़ी देन है। रूप के क्षेत्र में उनका यह आविष्कार, नये कथ्य से ही प्रसूत होता है। ‘न्यू पोएट्री' न अपने एक लेख कवि लिखता है कि, "अब वह समय आ गया है जब गद्य व पद्य के रूप में बनी बनाई सीमाओं को तोड़ डालना चाहिए"। अलंकृत विशेषणों, पुराने थीम व राइम की उपेक्षा करते हुए व्हिटमैन अपने लिए एक ऐसा माध्यम खोज निकालते है जो उन्हें पूरी की पूरी काव्यात्मक अभिव्यक्ति देने में सक्षम है। उनकी यही ताजी व अपारम्परिक प्रवृत्ति, मुक्त छन्द को आधुनिक रंग देती है, जो अतिशय भावात्मकता से दूर होती व यथार्थ की ओर जाती दीखती है।