मिताली मधुमिता
लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता | |
---|---|
जन्म | साँचा:br separated entries |
देहांत | साँचा:br separated entries |
निष्ठा | साँचा:flag/core |
सेवा/शाखा | साँचा:flagicon भारतीय सेना |
उपाधि | लेफ्टिनेंट कर्नल |
नेतृत्व | सेन्य शिक्षा कोर, काबुल, अफ़ग़ानिस्तान 2010–2011 |
सम्मान |
सेना मेडल |
मिताली मधुमिता, भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी हैं जिन्हें बहादुरी पुरस्कार दिया गया हैं।[१] 26 फरवरी, 2010 को अफगानिस्तान के काबुल में आतंकवादियों द्वारा भारतीय दूतावास पर हुए हमले के दौरान दिखाए गए अनुकरणीय साहस[२] के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता ने 2011 में सेना पदक प्राप्त किया।[१] इसके अलावा वे जम्मू-कश्मीर[१] और भारत के पूर्वोत्तर राज्य[२] में भी अपनी सेवा दे चुकी थी। लेफ्टिनेंट कर्नल मधुमिता[३] भारतीय दूतावास के अन्दर जाकर, जहाँ हमला हुआ था, कई घायल नागरिकों और सेन्य कर्मियों को मलबे से बचाया था। 2010 के काबुल दूतावास हमले में सात भारतीयों सहित लगभग उन्नीस लोगों ने अपनी जान गंवा दी।[४]
सेन्य करियर और सेना में रहने के लिए कानूनी लड़ाई
मधुमिता वर्ष 2000 में एक लघु सेवा कमीशन के तहत सेना में शामिल हुई।[५] वह सैन्य शिक्षा कोर का हिस्सा थीं और सेना के अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अफगानिस्तान के काबुल में सेवारत थीं। मधुमिता को जम्मू-कश्मीर और भारतीय राज्य के पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी तैनात किया गया था।[६] मधुमिता के लघु सेवा कमीशन के अधिकारी से स्थायी कमीशन के लिए सेना से अनुरोध किया, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने उनके अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, मधुमिता ने रक्षा मंत्रालय के फैसले के विरुद्ध मार्च 2014 में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से अपील की।[७][८] न्यायाधिकरण ने पाया कि उनके पास अनुरोध की योग्यता थी और फरवरी 2015 में रक्षा मंत्रालय को उसे बहाल करने का निर्देश दिया गया था।[७] हालांकि रक्षा मंत्रालय ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील की थी जिसमें कहा गया था कि मधुमिता ने एक लघु सेवा कमीशन पर सेना में शामिल हुई थी।[७] 2016 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भारतीय सेना में स्थायी कमीशन देने के खिलाफ रक्षा मंत्रालय की याचिका को खारिज कर दिया।[९]
सैन्य पदक