माध्यस्थम्
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माध्यस्थम (arbitration) एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रम है जिसमें पक्षकर किसी तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप के माध्यम से तथा न्यायालय का सहारा लिए बिना अपने विवादों का निपटान करवाते हैं। यह ऐसी विधि है जिसमें विवाद किसी नामित व्यक्ति (जिसे 'विवाचक' या 'मध्यस्थ' कहते हैं) के सामने रखा जाता है जो दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात अर्ध-न्यायिक तरीके से मसले का निर्णय करता हैं। उदाहरणार्थ 'पंच' या 'पंचायत' को कोई विवाद संदर्भित करना माध्यस्थम का एक रूप है। सामान्यत:, विवादकारी पक्ष अपना मामला किसी माध्यस्थम न्यायाधिकरण को संदर्भित करते हैं तथा न्यायाधिकरण द्वारा लिया गया निर्णय 'अवार्ड' कहलाता है। माध्यस्थम का प्रयोग मुख्यत: व्यापार क्षेत्रों में किया जाता है जैसे निर्माण परियोजनाएं, नौवहन तथा संवहन, पेटेंट, कारोबार चिह्न तथा ब्रांड, वित्तीय सेवाएं जिनमें बैंकिंग तथा बीमा शामिल है, विदेशी सहयोग, भागीदारी विवाद इत्यादि।
समाधान समाधानकर्ता की सहायता से पक्षकारों द्वारा विवादों के सौहार्दपूर्ण निपटान की प्रक्रिया है। यह माध्यस्थम से इस अर्थ में भिन्न है कि माध्यस्थम में अवार्ड तीसरे पक्षकार या माध्यस्थम न्यायधिकरण का निर्णय है जबकि समाधान के मामले में निर्णय पक्षकारों का होता है जिसे समाधानकर्ता की मध्यस्थम से लिया जाता है।
विवाद समाधान की ऐसी विधियां कानूनी मुकदमे की तुलना में कई प्रकार से लाभप्रद हैं :-
- (क) ये न्यायालय में मुकदमें की तुलना में कम महंगे होते हैं;
- (ख) ये अत्यधिक सरल तथा त्वरित होते है जिससे दोनों पक्षकार समय के अपव्यय से बचते हैं;
- (ग) चूंकि कार्यवाहियां बंद दरवाजे में संचालित की जाती है, विवाद का प्रचार नहीं होता जिसमें गोपनीयता सुनिश्चित होती है;
- (घ) अवार्ड/निर्णय सामान्यत: अंतिम होता है क्योंकि अपील केवल कुछ मामलों में ही अनुमत की जाती है।
मध्यस्थ के कार्य इस प्रकार है:-
- पक्षकारों की उनके विवाद का सदभावपूर्ण निपटान करने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से मदद करना।
- वस्तुपरक, उचित और न्यायोचित सिद्धांतों का पालन करना।
- पक्षकारों के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों, व्यवसाय प्रयोगों, विवाद को परिस्थितियों और पक्षकारों के बीच पूर्ववर्ती कारोबारी पद्धतियों पर विचार करना।
- मामले की परिस्थितियों और पक्षकारों की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त विधि से समाधान कार्रवाइयों का संचालन करना।
- विवाद के निपटान के लिए प्रस्ताव रखना।
- जब तक पक्षकारों द्वारा अन्यथा सहमति न हो, उसी विवाद के संबंध में किसी पंचाट या न्यायिक कार्रवाई में किसी एक पक्ष के मध्यस्थ या प्रतिनिधि के रूप में कार्य नहीं करना।
- किसी पंचाट या न्यायिक कार्रवाइयों की साक्षी के रूप में कार्य नहीं करना।