मांझी नागौर

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मांझी नागौर जिले के डेगाना तहसील में स्तिथ एक बड़ा गांव है। यह गांव से कस्बा की संक्रमण की अवस्था में है। मांझी का लिंगानुपात 1001 है जो राज्य के औसत लिंगानुपात 928 से उच्च है। किन्तु चिंताजनक स्तिथि शिशु लिंगानुपात में है जो की मात्रा 787 है जो राज्य के औसत 888 से भी न्यून है। ग्राम मांझी की साक्षरता दर 62.81 % है जिसमे पुरुष साक्षरता दर 80.17 % है तथा महिला साक्षरता दर 46.11 है।[१] वर्त्तमान में मांझी डेगाना पंचायत समिति के अन्तर्गत एक ग्राम पंचायत है [२] जहाँ प्रति पांच वर्ष उपरांत सरपंच का चुनाव होता है ग्राम पंचायत मांझी में तीन राजस्व गांव आते है जो की मांझी, हबचर एवम डुकियासर है। निकटतम रेलवे स्टेशन किरोदा है जो 1 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है हालाँकि अब मांझी एवम किरोदा दोनों गांव शामिल हो गये है तथा क्षेत्र में एक बड़े कस्बे बनने की और अग्रसर है। दोनों पंचायतों में कुल ६ राजस्व गांव आतें है जिनमे मांझी, किरोदा, हबचर, डुकियासर, कुतियासनी खुर्द एवम कुतियासनी कलां आतें है इससे पूर्व नुंद गांव भी मांझी में शामिल था किन्तु अधिक आबादी से उसे अलग ग्राम पंचायत बनाया गया।[३]

मांझी ग्राम के लोग मुख्यतः कृषि पशुपालन से जुड़े है इसके अलावा वृहद् स्तर पर चमड़ा उद्योग जुटी उद्योग में भी सलंग्न है यहाँ के कई निवासी बड़े शहरों में व्यवसायी है।

भौगोलिक क्षेत्र

मांझी गांव एक बड़ा गांव है, यह एक हरा भरा एवम स्वच्छ गांव है। इसकी प्राकृतिक छटा निराली है यह गांव पर्यावरण के प्रति जागरूक है तथा यहाँ धोरों के बीच हरियाली देखी जा सकती है इससे यहाँ वन्य जीव जंतु एवम पशु पक्षियों की भी भरमार है यहाँ पाए जाने वाले जंतुओं में हिरन, नीलगाय, बैल गाय भेड़े ऊंट बकरियां तथा पक्षियों में यहाँ मोर तोते चील कबूतर बहुतायत में पाएं जाते है और भी अनेक प्रकार पशु पक्षी पाए जातें है।

मांझी का इतिहास

आजादी से पूर्व यहाँ जागीरदारी व्यवस्था प्रचलित थी तथा यह गांव मेड़तिया माधोदासोतों की जागीरदारी में रहा। मांझी गांव का इतिहास अत्यंत गौरव पूर्ण रहा है यह गांव पुरानीअपनी विरासत अभी भी सहेजे हुए है। गांव से बाहर की ओर पुरातन ताम्र युगीन सभ्यता के अवशेष मिले है जो इसकी पुरातनता एवम ऐतिहासिकता को इंगित करते है यह सभ्यता मांझी एवम चुई ग्राम के मध्य पायी गयी है जहाँ पूरा पाषाण युग के अवशेष मिले है।

हालाँकि मांझी ग्राम काफी पुरातन है किन्तु राव दूदा से पुराने लिखित साक्ष्यों का अभाव है। ऐसा कहा जाता है की एक बार विश्नोई सम्रदाय के प्रवर्तक जाम्भोजी अपनी गायों को लेकर इस ओर से गुजर रहे थे जब वे इस स्थान पर आये तो उन्होंने अपनी गायों को पानी पिलाने के लिए तालाब या नदी को ढूंढा। बहुत ढूंढने पर भी उन्हें कोई भी पानी का स्रोत नही मिला आखिर में पुराने खंडहरों के पास एक कुआँ दिखाई दिया जो भी पानी से सुख पड़ा था उन्होंने अपने शिष्यों से उस कुएं को गहरा करवाकर पानी निकलवाया एवम अपनी गायों की प्यास बुझाई। इस बात से जाम्भोजी अत्यंत आहात हुए उन्होंने इस समस्या का उपाय सोचा उन्होंने राव जोधा के पुत्र राव दूदा से वार्ता की तथा उनसे इस समस्या को बताया। दूदा जी जाम्भोजी से अत्यंत प्रभावित हुए एवम उनसे इस हेतु सहयोग माँगा तब जाम्भोजी ने उन्हें कैर के पौधे की तलवार रूपी लकड़ी दी तथा दूदाजी को वरदान दिया कि जहाँ-जहाँ तक तू इसे ले जायेगा तेरा राज्य स्थापित होगा दूदा जी ने जाम्भोजी की बातों का अक्षरशः पालन किया तथा मांझी एवम आसपास की धरती पर लोगों को पुनः बसाकर इसे समृद्ध बनाया। इस सूखे एवम वीरान भूमि पर पुनः वृक्षारोपण एवम जल के स्रोतों को खुदवाया। दूदा जी ने सर्वप्रथम एक तालाब का निर्माण करवाया जिसे कालांतर में दुदोलाई ( दूदातलाई ) कहा जाने लगा। उन्होंने मांझी को अपनी प्रारम्भिक राजधानी बनाकर धीरे धीरे आसपास के क्षेत्र पर अधिकार करने लगे। कुछ समय में ही उन्होंने मेड़ता, नागौर,डीडवाना ,लाडनूँ ,चूरू, परबतसर, डीडवाना सांभर अजमेर एवम पाली पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। कालांतर में दूदाजी ने अपनी राजधानी मेड़ता बना ली जो की सम्पूर्ण राज्य के मध्य में स्तिथ थी फिर भी दूदा जी ने जाम्भोजी की दिए वचनासुर मांझी को नहीं छोड़ा उन्होंने इसे हरा भरा एवम समृद्ध बनाया तथा गांव के मध्य में अपने आराध्य चारभुजा जी (ठाकुर जी महाराज ) का मंदिर बनाया। जहाँ वे समय समय पर अपनी पौत्री भक्त शिरोमणि मीरां के साथ आते थे एवम कुछ समय यहाँ व्यतीत करते थे दूदा एवम मीरां बाई के कृष्ण भक्त होने से यहाँ लोग भी कृष्ण भक्ति की ओर आसक्त हुए कालांतर में यह कृष्ण भक्ति का बड़ा केंद्र बन गया। मीरां बाई मेवाड़ जाने के बाद भी कई बार यहाँ रैदास जी के साथ आई थी तथा चारभुजा जी की सेवा में यहाँ भजन कीर्तन करती। धीरे धीरे यहाँ मीरां एवम रैदास भक्तों का जमावड़ा हो गया जिसका प्रमाण वर्तमान में भी देखा जा सकता है यहाँ की आबादी में 43 % से अधिक जनसँख्या आज भी रैदास भक्त रैगर जाति की है।

राव दूदा जी ने यहाँ अनेक जातियां बसाई तथा सामाजिक सौहाद्र को अपनाकर इस क्षेत्र को सुखी एवम समृद्ध बनाया दूदाजी ने यहाँ जाट, रैगर, मेघवाल, ब्राह्मण, बनिए आदि बसाये इन्ही लोगों की सहायता से उन्होंने एक बड़े एवम समृद्ध मेड़ता राज्य को स्थापित किया। इसीलिए किसी चारण ने लिखा है

उदियापुर चूड़ा अचल , ज्यूँ शेखो आमेर। दूदो मांझी मेड़ते, अर कांधल बीकानेर।।

राव दूदाजी के पश्चात् राव वीरमदेव एवम राव जयमल मेडतियां यहाँ के शासक बनें परंतु उन्होंने मुख्य राजधानी मेड़ता ही रखी। दूदा जी के पश्चात कुछ समय के लिए मांझी मीरा बाई के पिता राव रतन सिंह की भी कर्म भूमि रही थी रतन सिंह के मांझी, बाजोली नेणिया, कुड़की समेत 12 गाँवो की जागीरदारी रही किन्तु रतन सिंह के खानवा युद्ध में काम आने पर मांझी कालांतर में राव जयमल जी के पुत्र राव माधोदास जी को जागीर में मिला, उन्होंने मांझी को अपनी राजधानी बनाया धीरे धीरे उन्होंने पुनः इस क्षेत्र पर शासन स्थापित किया जो की राव जयमल के मेवाड़ चले जाने पर जोधपुर के शासक मालदेव द्वारा अधिकार में कर लिए गए थे राव माधोदास ने मेड़ता के अधिकांश भाग को पुनः अपने कब्जे में किया। उन्होंने जोधपुर से रियां, आलनियावास , भोपालगढ़ तथा दूसरी और डीडवाना, खाटू तथा जायल पर कब्ज़ा किया, उन्होंने अजमेर के सूबेदार तथा मांडू के सुल्तान से सांभर झील को अपने कब्जे में पुनः लिया।

माधोदास के पुत्र राव सुन्दरदास हुए जिन्होंने कृष्ण भक्ति में लीन रहे तथा कई रचनाएँ लिखी। कालांतर में यहाँ के शासक रूप सिंह हुए जिन्होंने अजमेर सूबेदार तहवर खान से गायों की रक्षार्थ युद्ध किया तथा तहवर खान को मारकर 1000 से अधिक गायों की रक्षा की इस युद्ध में रूप सिंह समेत 9 व्यक्ति शहीद हुए इसी युद्ध की याद में पुष्कर में वराह मंदिर के समीप गौ घाट का निर्माण कराया गया। इन पर एक दोहा भी लिखा गया है

राजल गोकुल रूप सिंह चंडी हटी जगदीश। सुजो अणदो कान्हो नौ नर हुया नरेश।।

कालांतर में इसी कुल में भवानी सिंह हुए जिन्होंने पुनः स्वतंत्र मेड़ता राज्य की स्थापना का प्रयास किया। इन्होंने मुग़ल सेना से कई बार सामना किया तथा मारवाड़ से दिल्ली जाने वाले कर रूपी शाही खजाने को लुटा एवम क्षेत्र में कई सामाजिक कार्य करवाये जिनमे पेयजल के लिए 11 तालाबों का निर्माण, वृक्षारोपण भी शामिल थे इन्होंने गांव में लक्ष्मन जी का मंदिर भी बनवाया तथा गांव के आराध्य चारभुजा जी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा गायों एवम मंदिर के नाम पर 1००० बीघा जमीन दान की , जो की मंदिर के समीप स्तिथ शिलालेख पर खुदा हुआ है। भवानी सिंह के पुत्र मान सिंह हुए जिन्होंने 1857 कि क्रांति में सहयोग किया। इन्होंने जोधपुर एवम अंग्रेजों की संयुक्त सेना के विरुद्ध गूलर ,आलनियावास एवम आहुवा ठाकुर कुशल सिंह के साथ मिलकर युद्ध किया जिसमे इन्होंने इस संयुक्त सेना का हराया तथा जोधपुर के पोलिटिकल एजेंट मोक मेसन के सर को काटकर आहुआ किले के दरवाजे पर लटकाया इस युद्ध में मांझी के कई लोग काम आये जिनमें जाट, मेघवाल तथा रैगर समुदाय के व्यक्ति भी शामिल थे जाटों में बिरमा जी , रुघोजी , किरपा जी , रैगरों में सुगनो जी , हड़मानों जी तथा मेघवालों में रामुजी, रूपो जी भी थे। इसके पश्चात पुनः जोधपुर एवम मांझी के मध्य मोती सिंह जी के समय सम्बन्ध कड़वे हुए तथा दोनों की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ। जिसमे जोधपुर सेना ने यहाँ तोपों से गोले बरसाए किन्तु गांव के सभी समुदाय के लोगों ने इसमें सहयोग एवम सहादत दी।

मांझी गांव एक समृद्ध इतिहास समेटे हुए है जिसकी वीरता की कहानी यहाँ की धरती आज भी बोलती है। कालांतर में द्वितीय विश्व युद्ध, भारत पाकिस्तान एवम भारत चीन युद्धों में भी यहाँ के वीरों ने अपनी अनूठी छाप छोड़ी। बदलते समय में गांव में आधुनिकता का भी परिचय मिलता है जहाँ गांव के लोग दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद , हैदराबाद जयपुर एवम जोधपुर में बड़े व्यवसायी बनें है

सन्दर्भ