महल (1949 फ़िल्म)

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साँचा:Infobox Filmઅસર महल 1949 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है।

संक्षेप"1949 में रिलीज "महल" आज भी बेजोड़।

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एक गुमनाम शख्स  द्वारा यमुना के किनारे बनवाये महल "संगम महल" में पनपी एक प्रेम कहानी की प्रस्तुति फ़िल्म में हैं। एक रात उसको बनाने वाला डूब जाता है। वह वापस आने का वादा करता है और उसकी प्रेमिका कामिनी उसके  इंतजार में दम तोड़ देती हैं।

40 साल बाद उसे सरकारी नीलामी में खरीदा जाता है और हरिशंकर के रूप में एक नया मालिक पुराने महल को खरीदता हैं। हरिशंकर महल में एक तस्वीर को देख कर दंग रह जाता है क्योंकि पुराने मालिक की वह तस्वीर हूबहू उसके जैसी होती हैं।

महल में हरिशंकर एक साया देखता है। अपने दोस्त की सलाह पर वह उस महल को छोड़कर वापस शहर चला जाता है। हरि वापस उस साये की कशिश में महल में लौट आता है। हरि का वकील  दोस्त श्रीनाथ हरि को उस साये से दूर रखना चाहता है तब साया वकील को चेतावनी तक दे देता हैं।

वकील मित्र हरिशंकर का ध्यान महल से हटाने की पुरजोर कोशिश करता है लेकिन हरिशंकर साये का पीछा जारी रखता है। साया हरिशंकर को जान देने पर उकसाता है तो भी हरि तैयार हो जाता है। साया हरि को एक जान लेने के लिए तैयार करता है ताकि हरि से मिलन हो सके। हरि इसके लिए भी तैयार भी हो जाता हैं। 

इससे पहले की हरी कुछ कर गुजरे हरि के पिता और श्रीनाथ  उसे शहर ले आते हैं।

महल में कामिनी का साया तड़पता है और हरिशंकर का इंतजार करता हैं। हरिशंकर की शादी रंजना से हो जाती हैं। हरिशंकर रंजना को लेकर वीरानों मैं चला जाता है। रंजना की हैरानी-परेशानी में 2 वर्ष गुजर जाते है लेकिन उनके बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं। रंजना की दुश्वारियों में रोज़ इजाफा होता जाता हैं। रंजना आखिरकार उस दीवार को पहचानना चाहती है जो उसके ओर हरिशंकर के बीच खड़ी होती हैं।

हरिशंकर अंततः पुनः महल लौटता है अपनी मुहब्बत पाने। इस बार रंजना भी उसके पीछे संगम भवन पहुच जाती हैं।  रंजना पुलिस थाने पहुचकर हरिशंकर की बेवफाई की रिपोर्ट करती हैं और जहर खा लेती है। पुलिस हरिशंकर को गिरफ्तार कर लेती हैं।

इसके बाद बहुत से राज खुलते हैं।

फ़िल्म के अंत में मालिन ही कामिनी निकलती है जो कि दरअसल आशा है। आशा कोर्ट में अपनी कहानी सुनाती है जिसे सुन कर दर्शक दंग रह जाते है। 

फ़िल्म में महल का सेट बहुत सुंदर बनाया गया था जिसे देखकर उसमे कुछ लम्हे गुज़ारने की इच्छा हर किसी के दिल में बलवती होती है। फ़िल्म में पुराने दौर की रेलगाड़ी को देखना एक अत्यंत सुखद अनुभव हैं। 

फ़िल्म से कुछ सम्वाद-

1. मुझे होश में आने दो, मैं जरा खामोश रहना चाहता हूं।

2. तुम एक पढ़े-लिखे आदमी हो जरा अपनी अक्ल से मशवरा करो। 

3. स्लो पोइज़न अक्सर मीठे होते है और धोखे अक्सर हसीन होते है। 

4. मोहब्बत के इस मुकदमे में बहस की जरूरत नही। 

5. हुजूर को शुबहा हुआ होगा।

6. मगर हम तो खुद जहर है आप हम से दवा बनने की उम्मीद करते है।

7. इस घर की कुछ देर कितनी देर की होती हैं।

8. पंछी एक बार जाल से निकल चुका अब वो और ऊँचा उड़ेगा।

9. तकलीफ उस नश्तर से भी होती है जो मरीज की बेहतरी के लिए उसके घाव में चुभाई जाती हैं।

10. मैं मेरी मजबूरी ओर बेबसी मैं कैद था।

11. मगर अफसोस की ना मैं कत्ल हो सकी और ना ही इनकी मोहब्बत पा सकी।

12. तुम्हारे लिए, तुम्हे पाने के लिए मैं हर कुर्बानी देने के लिए तैयार हुँ।

13. इतना जब्त मत करो, इंसान इतना जब्त नही कर सकता हैं।

फ़िल्म का संगीत अत्यंत कर्णप्रिय है। फ़िल्म के प्रमुख गाँनो मैं "आएगा आएगा आएगा आने वाला, दीपक बिन कैसे परवाने जल रहे हैं, कोई नही चलाता और तीर चल रहे हैं" आज भी ध्यान आकर्षित करता हैं। फ़िल्म में एक मुजरा " ये रात बीत जाएगी, जवानी फिर नही आएगी" तब के दौर को प्रस्तुत करता हैं। "मुश्किल है बहुत मुश्किल" कामिनी की मनोस्थिति को बेहतर अभिव्यक्ति देता हैं। आदिवासी कबीलाई नृत्य "हुम्बाला" का भी शानदार कोरियोग्राफी की गई हैं। "जो हम पर गुजरनी है, गुजर जाए तो अच्छा हो" रंजना के दर्द को बेहतर प्रस्तुत करता हैं। " दिल ने फिर याद किया" कामिनी के इन्तेजार को बयां करता हैं।

अशोक कुमार बेजोड़ थे व उनकी अभिनय क्षमता अतुलनीय थी। मधुबाला ने अपना किरदार बहुत खूबसूरती से निभाया था। फ़िल्म को देखना एक युग को जीना हैं। तीव्र गति की यह ब्लेक एन्ड व्हाइट फ़िल्म आपको बहुत पसंद आएगी।

सुरेन्द्र सिंह चौहान।

suru197@gmail.com

9351515139

चरित्र

मुख्य कलाकार

दल

संगीत

रोचक तथ्य

परिणाम

बौक्स ऑफिस

फ़िल्म ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये थे।

समीक्षाएँ

नामांकन और पुरस्कार

बाहरी कड़ियाँ