भू-आकारमिति
भू-आकारमिति (अंग्रेज़ी:Geomorphometry) भूगोल के अंतर्गत भू-आकृति विज्ञान की एक उपशाखा है जो पृथ्वी के धरातल की ज्यामिति का अध्ययन करने वाला विज्ञान है और यह स्थलरूपों के लक्षणों का मात्रात्मक निरूपण, वर्णन एवं विश्लेषण करता है।[१] आसान शब्दों में यह धरातल का मात्रात्मक विश्लेषण (:en:Quantitative research) करने वाला विज्ञान है।[२]
इवांस ने इसे दो प्रकारों में बाँटा है: विशिष्ट भूआकारमिति, जो असतत रूप से अलग-अलग स्थलरूप का अध्ययन करे और, सामान्य भूआकारमिति, पूरे धरातल को सतत इकाई के रूप में लेकर अध्ययन करे।[३]
भू आकृति विज्ञान की यह शाखा नयी नहीं है और भूगोल में कंप्यूटर के प्रयोग से पहले से रही है। किन्तु भूगोल में कम्प्यूटरों के प्रयोग और रिमोट सेंसिंग, जीआइएस और भूसूचना विज्ञान के क्षेत्र में हुई अभिवृद्धि ने भूआकारमिति के अध्ययन विधि में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है। पुराने समय में यह स्थलाकृतिक नक्शों पर आधारित मापन के द्वारा संपन्न की जाती थी जिनसे विभिन्न प्राचलों की गणना होती थी। अब डिजिटल ऊँचाई मॉडल (DEM) के प्रयोग ने इसके विधितंत्र में काफ़ी बदलाव किया है। रिमोट सेंसिंग के बढ़ते उपयोग के चलते डिजिटल तुंगता मॉडल (DEM) की गुणवत्ता में और इसके परिणाम स्वरूप भूआकारमिति की गणनाओं की शुद्धता में भी काफ़ी परिष्कार हुआ है।
इतिहास
परंपरागत आकारमिति
परम्परागत भू-आकारमिति में स्थलाकृतिक मानचित्रों का इस्तेमाल करके आकारमितिक प्राचलों की गणना की जाती है।[४] इसकी विधियाँ मानवीय मापन पर आधारित हैं। सामान्यतया इसके लिये 1:50,000 प्रदर्शक भिन्न वाली टोपोशीट प्रयोग में लायी जाती हैं और समोच्च रेखाओं और सरिताओं का मापन और गिनती इत्यादि मानवीय रूप से की जाती है।[५]
इसके लिये अध्ययन क्षेत्र को टोपोशीट्स पर चिह्नित कर उसे एक वर्ग किमी (2 से॰मी॰ X 2 से॰मी॰) की ग्रिडों में बाँट कर प्रत्येक ग्रिड में प्राचलों के मूल्य की गणना की जाती है।
प्राचल
कन्टूर आधारित मापनों में प्रमुख प्राचल हैं:
निरपेक्ष उच्चावच - जो किसी भी ग्रिड में सबसे अधिक मान वाली समोच्च रेखा के मान को मान लिया जाता है। चाहें तो इंटरपोलेशन से और सटीक गणना भी कर सकते हैं, परन्तु यह वैकल्पिक है।
सापेक्ष उच्चावच - किसी ग्रिड के भीतर सबसे अधिक मान वाले और सबसे कम मान वाले कंटूर के बीच का अंत।
औसत ढाल - सी॰ के॰ वेंटवर्थ द्वारा प्रस्थापित तरीके से।[६]
वहीं दूसरी ओर सरिताओं के मापन द्वारा भी तीन प्राचलों की गणना होती है:
सरिता फ्रीक्वेंसी - किसी ग्रिड में कुल सरिताओं की संख्या।
सरिता घनत्व - किसी ग्रिड में सरिताओं की कुल लम्बाई पर आधारित।
अपवाह टेक्सचर - प्रति किलोमीटर दूरी में कुल सरिताओं की कटान संख्या।
इनके अलावा कुछ मानों की गणना पूरे बेसिन के लिये भी की जाती है जैसे सरिता द्विभाजन सूचकांक (Bifurcation Ratio)।
सन्दर्भ
- ↑ DAVID M. MARK, GEOMORPHOMETRIC PARAMETERS: A REVIEW AND EVALUATION स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।(पीडीऍफ़)
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ खान, नज़मा :भूआकृति विज्ञान में मात्रात्मक विधियाँ, भूगोल में मात्रात्मक विधियाँ, गूगल पुस्तक, पृष्ठ 36
- ↑ सिंह, सवीन्द्र:भू आकृति विज्ञान, 6th ed., प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, अध्याय-19, पृ॰ 343-369।
- ↑ खान, नज़मा :भूगोल में मात्रात्मक विधियाँ, गूगल पुस्तक, पृष्ठ 42