भास्कर वर्मन

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भास्कर वर्मन का निधानपुर शिलालेख

कुमार भास्कर वर्मन (600 - 650) कामरूप के वर्मन राजवंश के शासकों में अन्तिम एवं अन्यतम राजा थे। अपने ज्येष्ठ भ्राता सुप्रतिश्थि वर्मन की मृत्यु के पश्चात् उन्होने सत्ता सम्भाली। वे अविवाहित रहे तथा उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद शालस्तम्भ ने कामरूप पर आक्रमण करके सत्ता पर अधिकार कर लिया और शालस्तम्भ राज्य अथवा म्लेच्छ राजवंश की स्थापना की।

उत्तर भारत के राजा हर्षवर्धन (या शीलादित्य) कुमार भास्कर वर्मन के समकालीन थे। हर्षवर्धन के साथ उनकी मित्रता थी। उस समय गौड़ देश (या कर्णसुवर्ण, या बंगाल) में शशांक नामक राजा का शासन था। शशांक ने हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या कर दी। शशांक से अपने भाई की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिये हर्षवर्धन ने शशांक के राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के समय कुमार भास्कर वर्मन ने हर्षवर्धन की सहायता की। गौड़ राजा शशांक पराजित हुआ। फलस्वरूप शशांक के राज्य कर्णसुबर्ण तथा गौड़ या पौण्ड्रबर्द्धन, भास्कर वर्मन के अधिकार में आ गये। इसके बाद भास्कर वर्मन विशाल राज्य का स्वामी बन गया। भास्कर वर्मन के समय में कामरूप राज्य की सीमा पश्चिम में बिहार तक और दक्षिण में ओडीसा तक विस्तृत थी। भास्कर वर्मन ने निधानपुर (सिलहट जिला, बांग्लादेश) में अपने शिविर से तांबे की छाप अनुदान जारी किए और इसे एक अवधि के लिए अपने नियंत्रण में रखा।

चीनी यात्री युवान् च्वांग ने सातवीं शताब्दी में कामरुप का भ्रमण किया था। अपनी यात्रा के वर्णन में उसने लिखा है कि कामरूप राज्य का विस्तार १६७५ मील था और राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर ६ मील विस्तृत थी। यद्यपि भास्कर वर्मन सनातन धर्म के अनुयायी थे किन्तु बौद्ध धर्म के अनुयायियों और बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान करते थे। हर्षबर्द्धन, भास्कर वर्मन का यथेष्ट सम्मान करते थे। एक बार युवान् च्वांग के सम्मान के लिये राजा हर्षबर्धन ने प्रयाग में विशाल सभा का आयोजन किया था। जिसमें भारत के सभी विख्यात राजाओं को आमन्त्रित किया गया था।

युवान् च्वांग ने यह भी लिखा है कि कामरुप में प्रवेश करने से पहले उसने एक महान नदी कर्तोय् को पार किया। कामरुप के पूर्व में चीनी सीमा के पास पहाड़ियों की एक पंक्ति थी। उन्होंने उल्लेख किया की फसलें नियमित हैं, लोग सत्यनिष्ट हैं और राजा ब्राह्मण हैं।[१]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ