भाषा विज्ञान कोश
भाषा विज्ञान कोश भाषाविज्ञान से सम्बन्धित सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक विषयों का विश्वकोश (encyclopedia) है। इसका प्रकाशन सन् १९६४ ईस्वी में ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी से हुआ था। इसके रचयिता भोलानाथ तिवारी हैं।
प्रकाशन-इतिहास
ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी के सन्दर्भकोश-प्रकाशन परियोजना के अन्तर्गत सन् १९५८ ईस्वी में प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य कोश' के प्रथम भाग (पारिभाषिक शब्दावली) में साहित्य के अध्येताओं के उपयोग में आने वाले वृहत्तर आयामों को समायोजित कर लिया गया था। हालाँकि विषय-क्षेत्र व्यापक हो जाने के कारण भाषाविज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली को इस कोश में बिल्कुल छोड़ दिया गया था। हिन्दी भाषा तथा उसकी जिन जनपदीय बोलियों को लिया गया था उसका भी केवल परिचयात्मक विवरण ही दिया गया था; भाषा वैज्ञानिक विवेचन नहीं दिया गया था। अतः बाद में उक्त कोश के द्वितीय संस्करण के समय ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी से ही 'भाषा विज्ञान कोश ' के रूप में एक स्वतन्त्र ग्रन्थ प्रस्तुत करके 'हिन्दी साहित्य कोश' की इस परियोजना को परिपूर्णता प्रदान की गयी। दूसरा कारण यह भी था कि भाषा-वैज्ञानिक शब्दावली मुख्यतः साहित्य से सम्बन्धित न होकर भाषाओं से सम्बन्धित होती है। इसलिए भी इसे 'हिन्दी साहित्य कोश' के अंग-रूप में प्रकाशित न करके एक स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में ही प्रकाशित किया गया।
भाषा विज्ञान कोश की रचना भाषाविज्ञान के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् भोलानाथ तिवारी द्वारा की गयी है। इस कोश का प्रथम संस्करण सन् १९६४ ईस्वी में प्रकाशित हुआ।
सामग्री-संयोजन
प्रस्तुत कोश में भाषाविज्ञान के प्रायः पूरे विस्तार को न्यूनाधिक रूप में समेट लेने का प्रयत्न किया गया है। सैद्धान्तिक पक्ष के अतिरिक्त विश्व की प्रमुख भाषाओं एवं लिपियों पर भी प्रविष्टियाँ सम्मिलित हैं। स्वाभाविक रूप से भारतीय भाषाओं एवं लिपियों को अपेक्षाकृत अधिक, तथा हिन्दी, उसकी बोलियों, उपबोलियों एवं स्थानीय रूपों को और भी अधिक स्थान दिया गया है।[१]
'अंकलिपि' से लेकर 'ह्सेम' (hsem) ('व' 'मोन-ख़्मेर' शाखा के 'पलौंगव' वर्ग की एक भाषा) तक ७४९ पृष्ठों में फैली इन बहुसंख्यक प्रविष्टियों में भाषाविज्ञान की बहुआयामी छवियों का प्रत्यंकन हो पाया है। विश्व के समस्त भाषा-परिवारों एवं उनमें सम्मिलित भाषाओं के विवेचनात्मक परिचय से संवलित इस कोश में भाषाओं के अतिरिक्त उनकी लिपियों पर अलग-अलग प्रविष्टियाँ दी गयी हैं। शब्दावली (प्रविष्टियों) के विवेचन में आवश्यकतानुसार यथासंभव समानुपातिक विस्तार का ध्यान रखा गया है। 'अक्षर' का विवेचन नौ पृष्ठों में किया गया है[२], जबकि 'अर्थ-परिवर्तन' का विवेचन बीस पृष्ठों में फैला हुआ है।[३] विवेचन को उदाहरण से स्पष्ट एवं यथासंभव पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया गया है। 'अवेस्ता' (भाषा) के परिचय में उद्धृत छन्द को पहले रोमन लिपि में देकर फिर उसके संस्कृत-रूपांतरण को भी दिया गया है।[४] पुनः 'अवेस्ता लिपि' पर भी संक्षिप्त टिप्पणी है। 'उदात्त' के बाद 'उदात्ततर' तथा 'अनुदात्त' के बाद 'अनुदात्ततर' को भी भिन्न प्रविष्टि के रूप में दिया गया है। जिस शब्द का प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में पारिभाषिक रूप में हुआ है उसके विवेचन में उन ग्रंथों का संदर्भ भी लिया गया है। बहुप्रचलित 'उपसर्ग' शब्द के विवेचन में भी शाकटायनीय धातुपाठ के अतिरिक्त वर्धमान के भी संस्कृत उद्धरण देकर विवेचन किया गया है तथा अनेक प्राचीन वैयाकरणों के अतिरिक्त 'ऋग्वेद प्रातिशाख्य' का भी सान्दर्भिक उपयोग किया गया है।[५]
प्रविष्टियों के अतिरिक्त अन्त में ५८ पृष्ठों में अंग्रेजी-हिंदी पारिभाषिक शब्दावली भी दी गयी है।[६]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-५ ('दो शब्द')।
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-४-१३.
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-३६-५६.
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-६३.
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-११४.
- ↑ भाषा विज्ञान कोश, भोलानाथ तिवारी, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, प्रथम संस्करण-१९६४, पृष्ठ-७५०-८०७.