भारत में खनन
भारत में खनन उद्योग एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, जो भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। खनन उद्योग का जीडीपी में योगदान 2.2% से 2.5% तक होता है, हालांकि कुल औद्योगिक क्षेत्र के हिसाब से देखा जाये तो यह जीडीपी में 10% से 11% के आसपास योगदान देता है। यहां तक कि छोटे पैमाने पर किए गए खनन से खनिज उत्पादन का भी कुल खनन में 6% का योगदान रहता है। भारतीय खनन उद्योग लगभग 700,000 व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है।[१]
2012 तक, भारत अभ्रक का सबसे बड़ा उत्पादक, लौह अयस्क का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दुनिया में बॉक्साइट का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत के धातु और खनन उद्योग का अनुमान 2010 में $106.4 बिलियन था।[२]
हालांकि, भारत में खनन मानव अधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी बदनाम है। हाल के दिनों में उद्योग कई हाई-प्रोफाइल खनन घोटालों की चपेट में आया है।[२]
परिचय
इस क्षेत्र में खनन की परंपरा प्राचीन है और बाकी दुनिया के साथ ही आधुनिकीकृत होती गई है।[३] 1991 के आर्थिक सुधारों और 1993 की राष्ट्रीय खनन नीति से खनन क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाया गया।[३] भारत के खनिज धातु और अधात्विक दोनों प्रकार के हैं।[४] धात्विक खनिजों में लौह और अलौह खनिज शामिल हैं, जबकि अधात्विक खनिजों में ईंधन, कीमती पत्थर, अन्य में शामिल हैं।[४]
डी.आर. खुल्लर मानते हैं कि भारत में खनन 3,100 से अधिक खदानों पर निर्भर है, जिनमें से 550 से अधिक ईंधन की खदानें हैं, 560 से अधिक धातु की खदानें हैं, और 1970 से अधिक की संख्या में अधातुओं की खदानें हैं। एस.एन. पाधी द्वारा दिये यह आंकड़ा के अनुसार: 'लगभग 600 कोयला खदानें, 35 तेल परियोजनाएं और विभिन्न आकारों की 6,000 धात्विक खदानें दैनिक औसत आधार पर दस लाख से अधिक व्यक्तियों को रोजगार देती हैं।'[५] दोनों ओपन कास्ट माइनिंग और अंडरग्राउंड माइनिंग ऑपरेशन किए जाते हैं और लिक्विड या गैसीय ईंधन निकालने के लिए ड्रिलिंग/पंपिंग की जाती है।[३] देश लगभग 100 खनिजों का उत्पादन और काम करता है, जो विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ-साथ घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।[३] भारत लौह अयस्क, टाइटेनियम, मैंगनीज, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, का निर्यात और कोबाल्ट, पारा, ग्रेफाइट आदि का आयात भी करता हैं।[३]
इतिहास
चकमक पत्थर की खोज सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों द्वारा 3 सहस्राब्दी ई.पू. की गई थी।[७] मिलान विश्वविद्यालय के पी. बैगी और एम. क्रेमस्ची ने 1985-86 के बीच की पुरातत्व खुदाई में कई हड़प्पा खदानों की खोज की। [८] बैगी(2008) खदानों का वर्णन करते है: 'सतह से खदानों के लिये लगभग गोलाकार खाली क्षेत्र होते हैं, जो खदानों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो प्रागैतिहासिक खनन से निकलने वाले चूना पत्थर ब्लॉक के ढेर और ऐरोलियन रेत से भरा हुआ है, जोकि थार रेगिस्तान से उड़ कर आये रेत के टीलों की वजह से होता है। इन संरचनाओं के चारों ओर चकमक पत्थर की कार्यशालाओं की संरचना मौजूद है, जिसमें चकमक पथरों के बने विशिष्ट हड़प्पा-नुमा लम्बी ब्लेड कोर और बहुत ही संकीर्ण ब्लेडलेट टुकड़ी के साथ विशेष बुलेट कोर लिये हुए थे।'[९] 1995 और 1998 के बीच, एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री रेडियोकार्बन ज़ीज़फस सीएफ का डेटिंग में पाए गए अंकतालिका के अनुसार यहां 1870-1800 ईसा पूर्व में गतिविधि जारी रही थी।[१०]
खनिज बाद में भारतीय साहित्य में उल्लेखित पाए गए है। जॉर्ज रॉबर्ट रैप - भारत के साहित्य में वर्णित खनिजों के विषय पर - यह मानते हैं कि:
भौगोलिक वितरण
देश में खनिजों का वितरण असमान है और खनिज घनत्व क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होता जाता है।[३] डी.आर. खुल्लर देश में पाँच खनिज 'बेल्ट' की जानकारी देते है: उत्तर पूर्वी प्रायद्वीपीय बेल्ट, केंद्रीय बेल्ट, दक्षिणी बेल्ट, दक्षिण पश्चिमी बेल्ट और उत्तर पश्चिमी बेल्ट। विभिन्न भौगोलिक 'बेल्ट' का विवरण नीचे दी गई तालिका में दिया गया है:[११]
खनिज बेल्ट | स्थान | प्राप्त खनिज |
---|---|---|
उत्तर पूर्वी प्रायद्वीपीय बेल्ट | झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्यों में फैला छोटा नागपुर पठार और उड़ीसा के पठार। | कोयला, लौह अयस्क, मैंगनीज़, अभ्रक, बॉक्साइट, तांबा, क्यानाइट, क्रोमाइट, बेरिल, एपेटाइट आदि, खुल्लर इस क्षेत्र को भारत के खनिज गढ़ कहते है और आगे अध्ययन का हवाला देते हुए लिखते है: 'इस क्षेत्र के पास भारत के 100 प्रतिशत क्यानाइट, 93 प्रतिशत लौह अयस्क, 84 प्रतिशत कोयला, 70 प्रतिशत क्रोमाइट, 70 प्रतिशत अभ्रक, 50 प्रतिशत अग्निसह मिट्टी, 45 प्रतिशत अभ्रक, 45 प्रतिशत चीनी मिट्टी, 20 प्रतिशत चूना पत्थर और 10 प्रतिशत मैंगनीज उपस्थित है।' |
मध्य बेल्ट | छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र। | मैंगनीज, बॉक्साइट, यूरेनियम, चूना पत्थर, संगमरमर, कोयला, रत्न, अभ्रक, ग्रेफाइट आदि बड़ी मात्रा में मौजूद हैं और इस क्षेत्र के खनिजों की शुद्ध सीमा का आकलन किया जाना बाकी है। यह देश में खनिजों का दूसरा सबसे बड़ा बेल्ट है। |
दक्षिणी बेल्ट | कर्नाटक पठार और तमिलनाडु। | लौह खनिज और बॉक्साइट। कम विविधता। |
दक्षिण पश्चिमी बेल्ट | कर्नाटक और गोवा। | लौह अयस्क, गार्नेट और मिट्टी। |
उत्तर पश्चिमी बेल्ट | राजस्थान और गुजरात के साथ अरावली श्रंखला। | अलौह खनिज, यूरेनियम, अभ्रक, बेरिलियम, बेरिल, शिलारस (पेट्रोलियम), हरसौंठ और पन्ना। |
भारत ने अभी तक अपने समुद्री क्षेत्र, पर्वत श्रृंखलाओं और कुछ राज्यों उदा. असम, में खनिज संपदा का पूरी तरह से पता लगाना बाकी हैं।[११]
भारत के खनिज संसाधन एवं उद्योग
कोयला
कोयला देश में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत हैं और देश की व्यावसायिक ऊर्जा की खपत में इसका योगदान 67 प्रतिशत है। इसके अलावा यह इस्पात और कार्बो-रसायनिक उद्योगों में काम आने वाला आवश्यक पदार्थ है। कोयले से प्राप्त शक्ति खनिज तेल से प्राप्त की गयी शक्ति से दोगुनी, प्राकृतिक गैस से पाँच गुनी तथा जल-विद्युत शक्ति से आठ गुना अधिक होती है। इसके महत्व के कारण इसे काला सोना की उपमा दी जाती है। कोयले के भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है – भारतीय मिनरल ईयर बुक (IMYB) 2009 के अनुसार देश में 1200 मीटर की गहराई तक सुरक्षित कोयले का भण्डार 26721.0 करोड़ टन था।
भारत में कोयले के प्रकार
कार्बन, वाष्प व जल की मात्रा के आधार पर भारतीय कोयला निम्न प्रकार का है
1. एन्थेसाइट कोयला (Anthracite Coal) : यह कोयला सबसे उत्तम है। इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 प्रतिशत, जल की मात्रा 2 से 5 प्रतिशत तथा वाष्प 25 से 40 प्रतिशत तक होती है। जलते समय यह धुंआ नहीं देता तथा ताप सबसे अधिक देता है। यह जम्मू-कश्मीर राज्य से प्राप्त होता है।
2. बिटुमिनस कोयला (Bituminous Coal) : यह द्वितीय श्रेणी का कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 55% से 65%, जल की मात्रा 20% से 30% तथा 35% से 50% होती है। यह जलते समय साधारण धुंआ देता है। गोंडवाना काल का कोयला इसी प्रकार का है।
3. लिग्नाइट कोयला (Lignite Coal) : यह घटिया किस्म का भूरा कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 45 प्रतिशत से 55 प्रतिशत, जल का अंश 30 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तथा वाष्प 35 प्रतिशत से 50 प्रतिशत होती है। यह कोयला राजस्थान, मेघालय, असम, वेल्लोर, तिरुवनालोर (तमिलनाडु), दार्जिलिंग (प. बंगाल) में मिलता है।
कोयला क्षेत्र
(क) गोंडवाना कोयला क्षेत्र : गोंडवाना क्षेत्र के अन्तर्गत दामोदर घाटी के प्रमुख कोयला क्षेत्र निम्न हैं
रानीगंज क्षेत्र : प. बंगाल का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर घाटी में है जो देश का सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है। इस क्षेत्र से देश का लगभग 35% कोयला प्राप्त होता है।
धनबाद जिले में स्थित झरिया कोयला क्षेत्र झारखण्ड राज्य का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है। देश के 90% से अधिक कोकिंग कोयले के भण्डार यहाँ स्थित हैं। कोयला धोवन शालाएँ सुदामडीह तथा मोनिडीह में स्थित हैं।
गिरिडीह क्षेत्र : झारखण्ड राज्य में स्थित, यहाँ के कोयले की मुख्य विशेषता यह है कि इससे अति उत्तम प्रकार का स्टीम कोक तैयार होता है जो धातु शोधन के लिए उपयुक्त है।
बोकारो क्षेत्र : यह हजारीबाग में स्थित है। यहाँ भी कोक बनाने योग्य उत्तम कोयला मिलता है। यहाँ मुख्य यह करगाली है जो लगभग 66 मीटर मोटी है।
करनपुरा क्षेत्र : यह ऊपरी दामोदर की घाटी में बोकारो क्षेत्र से तीन किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।
सोन घाटी कोयला क्षेत्र : इस क्षेत्र केअन्तर्गत मध्य प्रदेश के सोहागपुर, सिंद्वारौली, तातापानी, रामकोला और उड़ीसा के औरंगा, हुटार के क्षेत्र आते हैं।
महानदी घाटी कोयला क्षेत्र : इस क्षेत्र के अन्तर्गत उड़ीसा के तलचर और सम्भलपुर क्षेत्र, मध्य प्रदेश के सोनहट तथा विश्रामपुर-लखनपुर क्षेत्र मुख्य हैं।
छत्तीसगढ़ में कोरबा क्षेत्र की खाने हैं। इसका उपयोग भिलाई के इस्पात कारखाने में होता है। कोरबा के पूर्व में रायगढ़ की खानें हैं। चलवर खाने ब्राह्मणी नदी घाटी में हैं।
आन्ध्र प्रदेश के सिंगरैनी क्षेत्र में उच्च किस्म का कोयला मिलता है।
(ख) सिंगरैनी युग के कोयला क्षेत्र : सम्पूर्ण भारत का 2 प्रतिशत कोयला टर्शियरी युग की चट्टानों से प्राप्त होता है। इसके मुख्य क्षेत्र राजस्थान, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु हैं। राजस्थान में लिग्नाइट कोयले के भण्डार पलाना, बरसिंगरसर, बिथनोक (बीकानेर) कपूरकड़ी, जालिप्पा (बाड़मेर) और कसनऊ-इग्यार (नागैर) में है।
तमिलनाडु राज्य के दक्षिण में अर्काट जिले में नवेली नामक स्थान पर लिग्नाइट कोयला मिलता है। लिग्नाइट का सर्वाधिक भण्डार तथा उत्पादक तमिलनाडु में होता है। मन्नारगुड़ी (तमिलनाडु) में लिग्नाइट का सबसे बड़ा भण्डार अवस्थित है।
खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम
पेट्रोलियम टर्शियरी युग की जलज अवसादी (Aqueous Sedimntary Rocks) शैलों का ‘चट्टानी तेल’ है। जो हाइड्रोकार्बन यौगिकों का मिश्रण है। इसमें पेट्रोल, डीजल, ईथर, गैसोलीन, मिट्टी का तेल, चिकनाई तेल एवं मोम आदि प्राप्त होता है। भारत में कच्चे पेट्रोलियम का उत्पादन 2008-09 में 33.5 मिलियन टन था। जिसमें अभितटीय (Onshore) क्षेत्र का योगदान 11.21 मिलियन टन तथा अपतटीय (Offshore) क्षेत्र का योगदान 22.3 (66.6%) मिलियन टन था।
भारत में अवसादी बेसिनों का विस्तार 720 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्र पर है जिसमें 3.140 मिलियन वर्ग किमी. का महाद्वीपीय तट क्षेत्र सम्मिलित है। इन अवसादी बेसिनों में 28 बिलियन टन हाइड्रो-कार्बन के भण्डार अनुमानित किये गये हैं, जिनमें स 20082009 तक 7-70 बिलियन टन भण्डार स्थापित किये जा चुके हैं। हाइड्रोकार्बन में 70% तेल एवं 30% प्राकृतिक गैस मिलती है। प्राप्ति योग्य भण्डार 2.60 बिलियन टन होने का अनुमान है।
खनिज तेल क्षेत्र
भारत में चार प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र हैं। यथा
- ब्रह्मपुत्र घाटी
- गुजरात तट
- पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र
- पूर्वी अपतटीय क्षेत्र
ब्रह्मपुत्र घाटी : यह देश की सबसे पुरानी तेल की पेटी है जो दिहिंग घाटी से सुरमा घाटी तक 1300 किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। यहाँ के प्रमुख तेल उत्पादक केन्द्र हैं- डिगबोई (डिब्रुगढ़), नाहरकटिया, मोरनहुद्वारीजन, रुद्रसागर-लकवा तथा सुरमाघाटी।
गुजरात तट
- यह क्षेत्र देश का लगभग 18 प्रतिशत तेल उत्पादन करता है। यहाँ तेल उत्पादन की दो पेटियाँ हैं। यथा खम्भात की खाड़ी के पूर्वी तट के सहारे, जहाँ अंकलेश्वर तथा खम्भात प्रमुख तेल क्षेत्र हैं।
- खेड़ा से महसाना तक, जहाँ कलोर, सानन्द, नवगाँव, मेहसाना तथा बचारजी प्रमुख तेल क्षेत्र हैं। भरूच, मेहसाना, अहमदाबाद, खेड़ा, बड़ोदरा तथा सूरत प्रमुख तेल उत्पादक जिले हैं।
- अंकलेश्वर तेल क्षेत्र भरूच जिले में 30 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है।
- अशुद्ध तेल कोयली तथा ट्राम्बे में परिष्कृत किया जाता है। खम्भात : लुनेज क्षेत्र, जिसे ‘गान्धार क्षेत्र’ भी कहते हैं, बड़ोदरा के 60 किमी. पश्चिम में स्थित है।
- अहमदाबाद-कलोर क्षेत्र खम्भात बेसिन के उत्तर में अहमदाबाद के चारों ओर स्थित है।
3. पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र
इस क्षेत्र से देश के समस्त कच्चे तेल उत्पादन का 67 प्रतिशत उत्पादित किया जाता है। इसके अन्तर्गत तीन क्षेत्र सम्मिलित किये जाते हैं। यथा
- बम्बई-हाई तेल क्षेत्र देश का विशालतम तेल उत्पादक क्षेत्र है जिसका राष्ट्रीय उत्पादन में 60% से अधिक योगदान है। यह मुम्बई के 176 किमी. दक्षिण पश्चिम में लगभग 2500 वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। अतिदोहन के कारण इसका उत्पादन निरन्तर घट रहा है।
- बेसीन तेल क्षेत्र बम्बई हाई के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र के तेल भण्डार बम्बई हाई से अधिक बड़े हैं। अलियाबेट तेल क्षेत्र भावनगर से 45 किमी. दूर खम्भात की खाड़ी में स्थित है।
4. पूर्वी अपतटीय क्षेत्र
- पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी नदियों के बेसिनों तथा डेल्टाओं में प्राप्त हुए हैं। कृष्णा-गोदावरी अपतटीय बेसिन में स्थित रवा क्षेत्र में तेल प्राप्त हुआ है। अन्य तेल क्षेत्र अमलापुरु (आन्ध्र प्रदेश), नारिमानम तथा कोइरकलापल्ली (कावेरी बेसिन) में स्थित हैं अशुद्ध तेल चेन्नई के निकट पनाइगुड़ि में परिष्कृत किया जाता है।
- अशुद्ध तेल कावेरी डेल्टा, ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश) तथा बाड़मेर (राजस्थान) में भी प्राप्त हुआ है।
- मन्नार की खाड़ी (तिरुनेलवेली तट), पाइन्ट कालीमीर तथा जफना प्रायद्वीप एवं अवन्तांगी, कराईकुडी तट, बंगाल की खाड़ी, कश्मीर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक विस्तृत पेटी, अण्डमान द्वीप के पश्चिम में अपतटीय क्षेत्र आदि में भी तेल प्राप्ति की सम्भावना है। सरकार ने नयी खोज लाइसेन्स नीति के तहत 48 नये क्षेत्रों में तेल की खोज के लिये विदेशी कम्पनियों से निविदा आमन्त्रित किये थे।
यूरेनियम
इसकी प्राप्ति धारवाड़ तथा आर्कियन श्रेणी की चट्टानोंपेग्मेटाइट, मोनोजाइट बालू तथा चेरालाइट में होती है। यूरेनियम के प्रमुख अयस्क पिंचब्लेंड, सॉमरस्काइट एवे थेरियानाइट है। झारखण्ड का जादूगोडा (सिंहभूम) क्षेत्र यूरेनियम खनन के लिए सुप्रसिद्ध है। सिंहभूम जिले में ही भाटिन, नारवा, पहाड़ और केरुआडूंगरी में भारी यूरेनियम के स्रोतों का पता लगा है। राजस्थान में यूरेनियम की प्राप्ति भीलवाड़ा, बूंदी और उदयपुर जिलों से होती है।
थोरियम
भारत विश्व का सर्वाधिक थोरियम उत्पादक राष्ट्र है। थोरियस मोनोजाइट रेत से प्राप्त किया जाता है, जिसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन काल की चट्टानों के विध्वंश चूर्ण से हुआ है। जो मुख्यतः केरल के तटवर्ती भागों में मिलता है। इसके अलावा यह नीलगिरि (तमिलनाडु), हजारीबाग (झारखण्ड) और उदयपुर (राजस्थान) जिलों में तथा पश्चिमी तटों के ग्रेनाइट क्षेत्रों में रवों के रूप में भी प्राप्त होता है।
अभ्रक – Mica
अभ्रक का मुख्य अयस्क पिग्माटाइट है। वैसे यह | मस्कोवाइट, बायोटाइट, फ्लोगोपाइट तथा लेपिडोलाइट जैसे खनिजों का समूह है, जो आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में खण्डों के रूप में पाया जाता है। मिनरल ईयर बुक 2009 के अनुसार भारत 1206 हजार टन अभ्रक उत्पादित कर विश्व का (0.3%) 15वाँ सर्वाधिक अभ्रक उत्पादक राष्ट्र है। ज्ञातव्य है कि अभ्रक का मुख्य उपयोग विद्युतीय सामान में इन्सुलेटर सामग्री के रूप में तथा वायुयानों में उच्च शक्ति वाली मोटरों में, रेडियों उद्योग तथा रडार में होता है।
अन्वेषण में शामिल संस्था
भारत में व्यवस्थित सर्वेक्षण, पूर्वेक्षण और अन्वेषण के लिए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई), केन्द्रीय खान योजना एवं डिजाइन संस्थान (सीएमपीडीआई), तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), खनिज अन्वेषण निगम लिमिटेड (एमईसीएल), राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी), भारतीय खनन ब्यूरो (आईबीएम), भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड (बीजीएमएल), हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल), नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (नालको) और विभिन्न राज्यों के खनन और भूविज्ञान विभाग शामिल है। । तकनीकी आर्थिक नीति विकल्प केंद्र (C-गति) खनिज मंत्रालय के एक थिंक टैंक के तहत राष्ट्रीय अन्वेषण नीति देखता है।
खनिज
48.83% कृषि योग्य भूमि के साथ, भारत में कोयले (दुनिया में चौथा सबसे बड़ा भंडार), बॉक्साइट, टाइटेनियम अयस्क, क्रोमाइट, प्राकृतिक गैस, हीरे, पेट्रोलियम और चूना पत्थर के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।[१२] 2008 के खनिज मंत्रालय के अनुमान के अनुसार: 'भारत ने दुनिया के क्रोमाइट उत्पादकों के बीच दूसरे पायदान पर पहुंचने के लिए अपना उत्पादन बढ़ा दिया है। इसके अलावा, भारत कोयला और लिग्नाइट के उत्पादन में तीसरा, बेराइट में दूसरा, लौह अयस्क में चौथा, बॉक्साइट और कच्चे इस्पात में 5वें, मैंगनीज अयस्क में 7वें और एल्यूमीनियम में 8वें स्थान पर है।'[६]
भारत में दुनिया के ज्ञात और आर्थिक रूप से उपलब्ध थोरियम का 12% हिस्सा पाया जाता है।[१३] यह अभ्रक का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है, यह दुनिया भर में शुद्ध अभ्रक के कुल उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे वह यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि को निर्यात करता है।[१४] दुनिया में लौह अयस्क के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक के रूप में, इसका अधिकांश निर्यात जापान, कोरिया, यूरोप और मध्य पूर्व में होता है।[१५] भारत के कुल लौह अयस्क निर्यात में जापान की हिस्सेदारी लगभग 3/4 है।[१५] यह दुनिया में मैंगनीज के सबसे बड़े भंडार के साथ-साथ मैंगनीज अयस्क का निर्यातक है, यह जापान, यूरोप (स्वीडन, बेल्जियम, नॉर्वे, अन्य देशों में) और कुछ हद तक संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात करता है।[१६]
उत्पादन
वर्ष 2005-06 में चयनित खनिज के कुल उत्पादन, भारत सरकार के खनिज मंत्रालय के अनुसार नीचे तालिका में दिया गया है:
खनिज | मात्रा | इकाई | खनिज के प्रकार |
---|---|---|---|
कोयला | 403 | लाख टन | ईंधन |
लिग्नाइट | 29 | लाख टन | ईंधन |
प्राकृतिक गैस | 31,007 | लाख घन मीटर | ईंधन |
पेट्रोलियम | 32 | लाख टन | ईंधन |
बॉक्साइट | 11,278 | हजार टन | धातु खनिज |
तांबे | 125 | हजार टन | धातु खनिज |
सोने | 3,048 | हजार कार्यक्रमों | धातु खनिज |
लौह अयस्क | 140,131 | हजार टन | धातु खनिज |
सीसा | 93 | हजार टन | धातु खनिज |
मैंगनीज अयस्क | 1,963 | हजार टन | धातु खनिज |
जस्ता | 862 | हजार टन | धातु खनिज |
हीरा | 60,155 | कैरेट | गैर धातु खनिज |
जिप्सम | 3,651 | हजार टन | गैर धातु खनिज |
चूना पत्थर | 170 | लाख टन | गैर धातु खनिज |
फास्फोराइट | 1,383 | हजार टन | गैर धातु खनिज |
निर्यात
वर्ष 2005-06 में चयनित खनिज के कुल निर्यात, भारत सरकार के खनिज मंत्रालय के अनुसार नीचे तालिका में दिया गया है:
खनिज | 2004-05 में निर्यात कि
गई मात्रा |
इकाई |
---|---|---|
अल्युमिना | 896,518 | टन |
बॉक्साइट | 1,131,472 | टन |
कोयला | 1,374 | टन |
तांबे | 18,990 | टन |
जिप्सम और प्लास्टर | 103,003 | टन |
लौह अयस्क | 83,165 | टन |
नेतृत्व | 81,157 | टन |
चूना पत्थर | 343,814 | टन |
मैंगनीज अयस्क | 317,787 | टन |
संगमरमर | 234,455 | टन |
अभ्रक | 97,842 | टन |
प्राकृतिक गैस | 29,523 | टन |
सल्फर | 2,465 | टन |
जस्ता | 180,704 | टन |
कानूनी और संवैधानिक ढांचा
भारत एक्स्ट्रेक्टिव इंडस्ट्रीज ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव (EITI) का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।[१७] लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर, खनिज क्षेत्र का प्रबंधन करने के लिए कानूनी और संवैधानिक ढांचे बनाये गये हैं:
- खनिज क्षेत्र के लिए नीति स्तर के दिशानिर्देश 2008 की राष्ट्रीय खनिज नीति द्वारा दिए गए हैं।[१८]
- खनन परिचालन को खदान और खनिज (विकास और विनियमन) [MMDR] अधिनियम 1957 के तहत विनियमित किया जाता है।[१९]
- राज्य सरकारें, खनिज के मालिक के रूप में, खनिज रियायतें प्रदान करती हैं और एमएमडीआर अधिनियम 1957 के प्रावधानों के अनुसार रॉयल्टी, किराया और शुल्क एकत्र करती हैं।[२०] ये राजस्व राज्य सरकार के समेकित कोष में रखे जाते हैं और जब तक कि राज्य विधायिका बजटीय प्रक्रियाओं के माध्यम से उनके उपयोग को मंजूरी नहीं देती, उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। [२१]
- हाल के एक विकास में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि "खनिजों का स्वामित्व भूमि के मालिक के साथ निहित होना चाहिए न कि सरकार के साथ।"[२२]
खनन संबन्धित मुद्दें
भारत के खनन क्षेत्र में सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों में से एक भारत के प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन की कमी है।[११] कई क्षेत्रों में अन्वेषण नहीं हुआ हैं और अभी इन क्षेत्रों में खनिज संसाधनों का आकलन किया जाना बाकी है।[११] ज्ञात क्षेत्रों में खनिजों का वितरण असमान है और एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में काफी भिन्न होता है।[३] भारत लौह उद्योग से निकले रद्दी लोहा का पुनर्चक्रण और उपयोग करने के लिए इंग्लैंड, जापान और इटली के निपुणता का उपयोग करना चाहता है।[२३]
हाल के दशकों में, खनन उद्योग बड़े पैमाने पर विस्थापन, स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के मुद्दों का सामना कर रहा है - जैसा कि D + C विकास और सहयोग पत्रिका में भारतीय पत्रकार अदिति रॉय घटक द्वारा रिपोर्ट किया गया है - मानव अधिकारों के मुद्दे, बाल श्रम द्वारा उत्पादित वस्तुओं की सूची, प्रदूषण और भ्रष्टाचार, पशु आवास के लिए प्रदूषण, वनों की कटाई और पर्यावरण संबंधी मुद्दें है। [२४][२५][२६][२७][२८]
यह भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ अ आ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए खुल्लर, 631
- ↑ अ आ खुल्लर, 632-633฿
- ↑ पाधी, 1019
- ↑ अ आ India's Contribution to the World's mineral Production स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (2008), Ministry of Mines, Government of India. National Informatics Centre.
- ↑ शेमस, पृष्ठ 1856
- ↑ शेमस, 1857
- ↑ शेमस, 1858
- ↑ शेमस, 1860
- ↑ अ आ इ ई खुल्लर, 632
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ खुल्लर, 650-651
- ↑ अ आ खुल्लर, 638
- ↑ खुल्लर, 638-640
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ खुल्लर, 659
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ग्रंथ सूची
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