ब्रह्म कमल

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अमृतमपत्रिका, ग्वालियर से साभार

ब्रह्मकमल क्या है? ब्रह्मकमल, नीलकमल, रक्त कमल और श्वेत कमल में क्या अंतर है?...

क्या ब्रह्मकमल कीचड़

ब्रह्मकमल पुष्प कहाँ उत्पन्न होता है?

ब्रह्मकमल का पौधा कैसे लगाएं?

ब्रह्मकमल के ओषधि लाभ क्या हैं?

ब्रह्मकमल कहाँ मिलता है?

ब्रह्मकमल के फूल रात में ही क्यों खिलते हैं?

जाने ब्रह्मकमल के बारे में कुछ रोचक तथ्य और जानकारी....

कमल पुष्प अनेक तरह के होते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं पूरे विश्व में इसकी 210 प्रजातियां पाई जाती है।

ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है। बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित से भर जाता है। ब्रह्मकमल की खुशबू या गंध बहुत तीक्ष्ण- तेज होती है।

ब्रह्मकमल उत्तराखंड राज्य का पुष्प है। केदार नाथ से 2 किलोमीटर ऊपर वासुकी ताल के समीप तथा ब्रह्मकमल नामक तीर्थ पर ब्रह्मकमल सर्वाधिक उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त फूलों की घाटी एवं पिंडारी ग्लेशियर रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है।

ब्रह्मकमल पुष्प की कोई जड़ नहीं होती यह पत्तो से ही पनपता है यानी इसके पत्तों को बोया जाता है। इसे अधिक पानी और गर्मी से बचाना जरूरी है। भारत में Epiphyllum oxypetalum ब्रह्म कमल तथा उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। जिसमें ब्रह्मकमल का सर्वोच्च स्थान है। यह एक ऐसा फूल है जिसकी महालक्ष्मी वृद्धि के लिए पूजा की जाती है। शेष पुष्पों से भगवान की पूजा करते हैं। यह कभी पानी में नहीं खिलता। इसका वृक्ष होता है। पत्ते बड़े और मोटे होते हैं। पुष्प सफेद होता है।

फूलों से भगाएं बीमारी!!!

ब्रह्मकमल पुष्प रात्रि में 9 बजे से 12.30 के बीच ही खिलता है। इसे खिलते हुए देखना बहुत सौभाग्य सूचक होता है। इसके दर्शन से अनेक परेशानियों से निजात मिलती है।

ब्रह्मकमल साल में केवल एक महीने सितंबर में ही पुष्प देता है। वो भी एक तने से एक पुष्प।


सुदर्शन चक्र की कहानी…

महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णुजी ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर 1008 शिव नामों से 1008 ब्रह्मकमल पुष्पों से शिवार्चन किया और वे, कमलनयन कहलाये। यही इन्हें सुदर्शन चक्र वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था। केदारनाथ शिवलिंग को अर्पित कर प्रसाद के रूप में दर्शनार्थियों को बांटा जाता है।

ब्रह्म कमल, फैनकमल कस्तूरा कमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं। भावप्रकाश निघण्टु नामक आयुर्वेद की एक बहुत ही पुरानी किताब में संस्कृत के एक श्लोक में कमलपुष्प का वर्णन है-

वा पुंसि पद्म नलीनमरविन्दं महोत्पलम्।

सहस्त्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेश्यम्।।

पक्केरुहं तामरसं सारसं सरसी रुहम्।

बिसप्रसूनराजीवपुष्कराम्भो रुहाणी च।।

कमलं शीतलं वर्णयं मधुरं कफपित्तजित्

अर्थात- कमलपुष्प, पुरहन पद्म, नलिन, अरविंद, महोत्पल, सहस्त्र पत्र, कमल, शतपत्रं, कुशेषय, पक्केरुह, तामरस, सरस, सरसीरुह, विसप्रसून, राजीव, पुष्कर और अम्भोरूह ये सब वैदिक संस्कृत नाम हैं।

बंगाल-,उड़ीसा में पदम्, मराठी-गुजरात में कमल, कन्नड़ में बिलिया तावरे, अंग्रेजी में सैक्रेड लोटस नेलंवियम स्पेसियोजम विल्ड कहा जाता है।

कमल सदैव कीचड़ में ही गर्मी तथा वर्षाकाल के वक्त खिलता है। कमल के बीजों को कमलगट्टा कहते हैं।

कमल का फूल शीतल वर्ण यानी देह के रंग को निखारने वाला, मधुर रस युक्त, कफ-पित्त नाशक होता है।

कमलपुष्प के फायदे, गुण-लाभ….

तृष्णा अर्थात अधिक प्यास लगना, शरीर में दाह-जलन, रक्तविकार, खून की खराबी या अशुद्धि, विस्फोट अर्थात पूरे शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती हैं इसमें कमल पुष्प का रस लगाने से लाभ होता है।

खराब लिवर की सर्वश्रेष्ठ ओषधि…

ब्रह्म कमल के फूल से तैयार सूप लिवर की सूजन (inflammation) का इलाज करने और शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है! यकृत केंसर में इसका सुप पिलाते हैं।

ब्रह्मकमल एक बेहतरीन लिवर ओषधि-टॉनिक है। यह लिवर पर फ्री रेडिकल्स के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक है।

ब्रह्म कमल के पौधे को सदैव छांव में लगाएं, जहां सुबह थोड़ी धूप आती हो। ब्रह्मकमल के पौधे को लगाने के लिए आपको इसकी एक पत्ती लेनी पड़ती है।

मधुमेह यानि डाइबिटिज की दवा..

★ कमल फूल में मिश्री पीसकर सुबह खाली पेट लेने से पुराना प्रमेह नष्ट हो जाता है।

★ कमल बीज एवं कमल की पंखुड़ी देशी घी में भूनकर 3 दिन खिलाने से पीलिया जड़ से मिट जाता है।

तन-मन के टोक्सिन, दूषित दोष साफ करे-कमल…

कमल पुष्प का रस एवं क्वाथ का उपयोग करने से शरीर के विषैले तत्व दूर होते हैं। यह इम्युनिटी बूस्टर भी होता है। इसका एक चम्मच रस का शर्बत पीने से त्वचा में निखार आता है।

ब्रह्मकमल पुष्प यौन स्वास्थ्य (sexual health) या सेक्सुअल पावर बढ़ाने में कारगर है। उत्तराखंड में इस पुष्प को पीसकर मिश्री मिलाकर दूध के साथ पिलाते हैं, जिससे वीर्य गाढ़ा होने लगता है।

बैक्टीरिया के स्ट्रेन में S.aureus और E.coli शामिल हैं, जो यूरिनरी ट्रेक इंफेक्शन (urinary tract infection) के संक्रमण का कारण बन सकते हैं, जबकि फंगस स्ट्रेन में C. albicans शामिल हैं, जो जननांग यानी प्राइवेट पार्ट में खमीर संक्रमण (genital yeast infection) का कारण बनते हैं।

ब्रह्मकमल जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के चार स्ट्रेन और फंगस के तीन स्ट्रेन के खिलाफ रोगाणुरोधी (antimicrobial properties) गुण रखता है।

महिलाओं के लिए कमल एक सर्वश्रेष्ठ ओषधि है। यह एक बेहतरीन गर्भस्थापक है। कमल के सेवन से गर्भस्त्राव रुकता है। गर्भाशय की विकृति में हितकर है। खड़कर सोमरोग या पीसीओडी स्त्री विकारों में अत्यन्त हितकारी है।

श्वेत या सफेद कमल फूल को पुण्डरीक, लाल कमल पुष्प को कोकनद तथा नीलकमल को इंदीवर कहते हैं। नीलकमल केवल मणिधारी नाग के स्थान ही खिलता है। यह दुर्लभ है।

इंदीवर भारत के बहुत प्रसिद्ध गीतकार भी

हैं। इनका जन्म झांसी के पास बरुआसागर नामक ग्राम में हुआ था। यह जाती से कलार थे। बचपन में इनका सही नाम श्यामलाल था।

सफेद कमल यानी श्वेत कुमुद शीतल, मधुर एवं कफ-पित्त का नाधक होता है जबकि रक्तकमल यानि रक्तकुमुद या कल्हार इतनी कारगर ओषधि नहीं है।चरक, सुश्रुत सहिंता व द्रव्यगुण विज्ञान में कमल के अनेक भेदों का वर्णन है।

दिन ओर रात में खिलने वाले कमल के किस्से…


कमल के कंद व बीजों में राल, ग्लूकोज, मेटारविन, टैनिन, वसा नेलंविन क्षाराम पाया जाता है।

कमल की पंखुड़ियां या पुष्प शीतल ठंडक दायक, दाह को मिटाने वाली, ह्रदय की रक्षक व बलदायी, रक्तसंग्राहक और मूत्र को साफ लेन वाली होती हैं। कमल पुष्प का काढ़ा सुबह खाली पेट गर्मी के दिनों में 10 से 15 ml थ रोज लेना हितकारी रहता है। इससे बार-बार आने वाले ज्वर, संक्रमण, अतिसार से राहत मिलती है।

तीव्र ज्वर के समय जब कोई उपाय काम न करे, तो कमल फूल का काढ़ा मधु पंचामृत के साथ देने से रोगी की सुरक्षा होती है। इससे ज्वर, संक्रमण का दुष्प्रभाव नहीं होता।

गर्भवती स्त्री को अगर गर्भपात की संभावना हो तो कमलफूल का फाण्ट पिलाने से गर्भ गिरने से बच जाता है।


पुष्पांजलि के रहस्य….जीवन को सहज-सरल, हल्का बनाये रखने के लिए पुष्पांजलि जरूरी है।

शारदा तिलक ग्रन्थ के मुताबिक..

‘देवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा’…

अर्थात-घर के मंदिर में देवताओं का मस्तक एवं शिंवलिंग सदैव पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए अन्यथा घर में निगेटिव ऊर्जा का आगमन होने लगता है।

ईश्वर को नियमित पुष्प चढ़ाने से परिवार के सदस्य रोगी बने रहते हैं। प्रतिदिन पुष्पार्चन, जलार्पण एवं अमृतम द्वारा निर्मित राहुकी तेल का दीपदान राहुकाल में नित्य करना शुभकारी रहता है।

कमल का केशर भी अत्यंत उपयोगी ओषधि है-

सुख-सपन्नता, शांति और धनवर्षा कारक उपाय…

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

प्रत्येक मंगलवार एवं शुक्रवार उपरोक्त शांति मन्त्र तीन बार पढ़कर माँ महालक्ष्मी तथा शिवलिंग पर श्वेत कमल या ब्रह्मकमल अर्पित करने से घर में सुख-शांति आती है और धन की अपार वृद्धि होती है। यह एक अवधूत द्वारा बताया गया शर्तिया उपाय है।


पुष्प भी हैं ओषधियाँ…. क्योंकि यह शारीरिक तथा मानसिक तकलीफों को मिटाने में सहायक हैं-

फूलों से माला बनती है और माल भगवान पर अर्पित करने से जीवन की ज्वाला, दुःख-दर्द, कष्ट-समस्याओं का निवारण होता है।

ललितासहस्त्रनाम…. नामक ग्रन्थ में माला की परिभाषा दी है-‘मां शोभां लातीति माला’

अर्थात – जो शोभा, सुन्दरता बढ़ाये, वह माला है। पूजा में माला का बहुत महत्व है। पंचमहाभूतों में यह पृथ्वीतत्व का प्रतीक है। जिन लोगों का जन्म वृष, हस्त तथा मकर राशि में हुआ हो उन्हें हर महीने की दोनों चतुर्दशी को शिव व दुर्गा शतनाम से शाम को सूर्यास्त के बाद अर्पित करने से सन्तति एवं सम्पत्ति में निश्चय ही बढोत्तरी होती है।

कुलार्णव तन्त्र में उल्लेख है कि शिंवलिंग पर पुष्प और माला अर्पित करने से जीवन में स्थिरता आती है। भय-भ्रम, शंका का नाश हो जाता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। कभी बीमारी नहीं होती।

“विष्णु नारदीय पुराण” एवं

‘विष्णु धर्मोत्तर पुराण’ में वर्णन है कि..पुष्प प्रथ्वी और प्रकृति की देन हैं। यह हल्के और सुगंधित होते हैं।

प्रतिदिन ब्रह्मा-विष्णु-महेश इन तीनों के प्रतीक…3 फूल रोज शिंवलिंग पर अर्पित करने से जीवन कभी भारी नहीं लगता।

सिरदर्द, माइग्रेन, मानसिक क्लेश, अवसाद या डिप्रेशन या किसी तरह के मानसिक विकारों में 72 दिन तक लगातार शिंवलिंग पर पुष्प चढ़ाने से चमत्कारी फायदा होता है।

कालिका पुराण में लिखा है कि… प्रातः घर के सभी सदस्य बिना अन्न ग्रहण किये शिंवलिंग या देवताओं की पूजा-अर्चना अवश्य करें। यह दुःख नाशक प्रयोग है।

“तन्त्र रहस्योपनिषद” एवं वास्तुदोष निवारण कर्म में कहा गया है कि जिस घर में प्रातः या सुबह और शाम या रात को ईश्वर का पुष्प से श्रृंगार नहीं होता, दीपक नहीं जलता, शंखध्वनि नहीं बजती,

शिंवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता, उनके घर में धीरे-धीरे प्रेत-पिशाच, भूतों का वास होने लगता है।

घर की सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति क्षीण होने लगती है। घर की रक्षा करने वाली सूक्ष्म पवित्र-पुण्य आत्माएं, पितृगण आदि कहीं अन्यत्र चली जाती हैं। वह घर दोष, दुख, दरिद्र, रोग कारकहो जाता है।

फूल श्रृंगार भी तो वरदान व ओषधि भी…

संतान की कामना वालों को 27 दिन तक लगातार 108 पुष्प धतूरे के शिंवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।

गुरु गोरखनाथ का वचन है कि.. उसे निश्चित रूप से पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है। यह गुरु वचन कभी खाली नहीं जाएगा।

गेंदा पुष्प के चमत्कारी – ‘५ –लाभ

पदमपुराण, जंगल की पुष्प-बूटी नामक किताब में गेंदे के फूल को बहुत ही लाभकारी बताया है। यह 100 तरह की तकलीफों को मिटाता है।

【१】गेंदे के फूल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से अनेकों वात रोगों का नाश हो जाता है।

【२】यह मच्छर, कृमि-कीटाणु भगाने में उपयोगी है।

【३】जहाँ गेंदे के फूल रखा होता है, वहाँ कभी किसी तरह का संक्रमण नहीं रहता।

【४】गेंदे की खुशबू से नाक तथा मस्तिष्क के कीड़े मर जाते हैं है।

【५】मिर्गी के रोगी को गेंदे के पुष्प परबरोज 4 घण्टे लिटाने से यह रोगवमिट जाता है।

【६】गेंदा फूल का आधा चम्मच रस में 2 कालीमिर्च, थोड़ी अजवायन मिलाकर….खाली पेट पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

गुलाब का फूल… के 4 चमत्कार

यह पित्तनाशक होता है। पेट की बीमारी में इसका गुलकन्द बहुत फायदा करता है।

अवधूत की भभूत….

【1】अविवाहित लोग साथ रविवार और कुँवारी लड़कियां सोमवार को शिवसहस्त्रनाम यानी शिवजी के एक हजार नाम द्वारा किसी ब्राह्मण से उच्चारण करवाकर शिंवलिंग पर 1000 गुलाब के फूल 1-1 शिव नाम से एक-एक पुष्प अर्पित करते हैं, तो 6 माह के अंदर हर हाल में विवाह पक्का हो जाता है। यह उपाय अवधूत नागा सन्त श्री श्री शंकरानंदजी ने अपने एक ग्रन्थ “अवधूत की भभूत” में लिखा है।

【2】गुलाब की केशर यानी जीरा मिश्री के साथ लेने से चक्कर आने की शिकायत दूर होती है।

【3】गुलाब की 10 पत्तियों में 10 ग्राम शक्कर मिलाकर, मसलकर खाने से महिलाओं का पुराने से पुराना प्रदर रोग मिट जाता है। इसे 10 दिन तक लेवें। साथ में अमृतम का नारी सौन्दर्य माल्ट का सेवन करें। यह सुन्दरता वृद्धि के अलावा अनेक स्त्रीरोग नाशक है।

【4】यह शुभसूचक है। विशेषकर प्रेम के इजहार में इसे तोहफे के रूप में दिया जाता है। गुलाब का उपयोग किसी को रिझाने में किया जाता है। किसी ने कहा है—

औरत मोहताज नहीं किसी गुलाब की।

वो खुद बागवान है इस कायनात की।।

एक बानगी ओर देखे….…

बड़े ही चुपके से भेजा था, मेरे महबूब ने मुझे एक गुलाब।

बड़े ही चुपके से भेजा था, मेरे महबूब ने मुझे एक गुलाब। कम्बख्त उसकी खुशबू ने, सारे शहर में हंगामा कर दिया।।

गुड़हल या जसोन्दी का फूल…

■ शरीर में जब बहुत तपन हो, जलन हो पित्त बढ़ा हुआ हो, बेचैनी हो, तब इसके फूल का स्वरस मिश्री के साथ देना लाभकारी है।

■ गुड़हल का फूल गंजापन मिटाने में अत्यंत हितकर है। अमृतम का सबसे बेहतरीन उत्पाद कुन्तल केयर स्पा में इसीलिए मिलाया है।

■ गुड़हल फूल वीर्य पुष्टिकारक भी है।

चमेली के फूल….आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ “भावप्रकाश” में इसके अनेको फायदे लिखे हैं—

◆ चमेली फूल रक्त के तापमान को तुरन्त कम करता है।

◆ यह जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी एवं ट्यूमररोधी होता है।

◆ यह रक्तस्राव को रोकता है।

◆ मलेरिया से बचाता है।

◆ गर्मी में होने वाले विकारों जैसे- लू-लपट, मरोई, फुंसी आदि से रक्षा करता है।

◆ चमेली के फूल को मसलकर इसका रस चेहरे पर लगाने से त्वचा दमकने लगती है। सुन्दरता वृद्धि में इसका कोई सानी नहीं है।

अमृतम द्वारा निर्मितव“फेस क्लीनअप” में इसे विशेष विधि से मिलाया गया है।

◆ मुहँ में बार-बार होने वाले छालों को हमेशा के लिए ठीक करने में उपयोगी है। जब भी मुंह में चले हों, तो इसके पुष्पों को चबाकर फेक दें और 2 गिलास पानी पीले।

◆ केश श्रृंगार में बालों के जूडे में इसे लगाने से जुओं का नाश हो जाता है। माइग्रेन ठीक होता है।

विशेष आग्रह-गूगल आदि अनेक साइडों पर बहुत से लेख/ब्लॉग पड़े हैं, जो भ्रमित करने वाले भी हैं। पाठकों से निवेदन है कि वे उन्हीं लेखों पर विश्वास करें… जिनमें ग्रन्थ, पुस्तकों का सन्दर्भ हो।

एक महत्वपूर्ण जानकारी

अमरनाथ के बारे में अमृतमपत्रिका पर पढ़ें। यह जानना जरूरी है कि भोलेनाथ ने माँ भगवती को जी अमरकथा सुनाई थी… वह कौन सी थी।


Saussurea obvallata
Brahma Kamal.jpg
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
(unranked) Eudicots
(unranked) Asterids
गण: Asterales
कुल: एस्टेरेसी
ट्राइब: Cynareae
वंश: Saussurea
जाति: S. obvallata
द्विपद-नामकरण
Saussurea obvallata
(DC.) Edgew.

ब्रह्म कमल (वानस्पतिक नाम : Saussurea obvallata) एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं।

भारत में Epiphyllum oxypetalum को भी 'ब्रह्म कमल' कहते हैं। उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं पूरे विश्व में इसकी 210 प्रजातियां पाई जाती है ब्रह्म कमल के खिलने का समय जुलाई से सितंबर है ब्रह्म कमल, फैनकमल कस्तूराकमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं उत्तराखंड की फूलों की घाटी में केदारनाथ में पिंडारी ग्लेशियर में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पुस्तकों केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है जुलाई से सितंबर तक मात्र 3 माह तक फूल खिलते हैं बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित से भर जाता है

बाहरी कड़ियाँ

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यह हिमालय की वादियों में खिलता है। फिलहाल इसकी 1 तस्वीर भारत तिब्बत सीमा पुलिस ने जारी की है। यह 14 साल में खिलता है। यह सिर्फ रात में खुलता है और सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है।

Monika khokhar