बेसेल संधि

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बेसेल संधि (Basel Convention) खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के सीमापार स्थानांतरण के नियंत्रण और इन पदार्थों के निपटारे से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधि है।

यह संधि २२ मार्च १९८९ को हस्ताक्षर के लिये तैयार कर दी गयी तथा ५ मई १९९२ से प्रभावशील है।

पृष्ठभूमि

वर्तमान समयों में जलपोत विखंडन का कार्य मुख्य रूप से भारत, चीन, पाकिस्तान और बंग्लादेश में हो रहा है। कुछ ही अपवादों को छोड़कर अधिकांश पोतों का विखंडन समुद्र किनारे स्थित इकाइयों में होता है। उद्योगीकृत देशों में विद्यामान सामान्य मानकों और रूढ़ियों की तुलना में जलपोतों के विखंडन की वर्तमान पद्धतियां कई दृष्टियों से अनुपालन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती हैं। इन पद्धतियों की कुछ कमियों में शामिल हैं पर्याप्त एहतियाती कदम न उठाना, अपर्याप्त प्रशिक्षण और जागरूकता और ये सब विखंडन इकाइयों पर लागू होती हैं। इनके अलावा भी कई कमियां हैं। सुधार करने के उपाय लागू करने का प्रभाव मात्र जलपोत विखंडन इकाई पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि विखंडन के पूर्व की गतिविधियों पर और विखंडन के दौरान प्राप्त किए गए अपशिष्ट पदार्थों के अंतिम गंतव्य स्थान और उनके निपटारे पर भी पड़ेगा।

वर्तमान जलपोत विखंडन पद्धतियों की खामियों से जो समस्याएं पैदा होती हैं, उनके परिणाम मात्र पर्यावरण को ही नहीं भुगतने होते, बल्कि कर्मियों की व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरणीय प्रभावों को इस तरह वर्गीकृति किया जा सकता है: विखंडन के लिए आवश्यक स्थान को घेरकर और उसे विस्तार देते जाकर, विखंडन उद्योग स्थानीय परिवेश, पर्यावरण और समाज को प्रभावित करता है। उस स्थान में पहले से रहते आ रहे समुदाय मछली पकड़ने, कृषि आदि मूलभूत उद्योगों पर आश्रित हो सकते हैं जिससे दोनों के हितों में टकराहट संभव है और यह एक विचारणीय मुद्दा बन सकता है। समुद्र, जमीन और हवा में निकासी और उत्सर्जन से तीव्र और दीर्घकालिक प्रदूषण हो सकता है। पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों के पहुंचने को रोकने के लिए परिसीमन (कन्टेनमेंट) का अभाव चिंता का एक प्रमुख विषय है।

प्रक्रियाओं में और अधिक सुधार लाने की आवश्यकता को पहचानते हुए, ताकि बढ़ती संख्या में जलपोतों के विखंडन को ठीक तरह से प्रबंधित किया जा सके, खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के सीमापार स्थानांतरण पर नियंत्रण और उनके निपटारे से संबंधित बेसेल संधि में शामिल पक्षों की सभा ने दिसंबर 1999 में आयोजित अपनी पांचवीं बैठक (सीओपी 5) में इस विषय से दो-चार होने का निर्णय लिया। बेसेल संधि के तकनीकी कार्य दल को जलपोतों के संपूर्ण एवं आंशिक विखंडन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबंध हेतु तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धांत विकसित करने के कार्य का श्रीगणेश करने को कहा गया। इसके साथ ही, तकनीकी कार्य दल को जलपोत विखंडन के लिए प्रासंगिक बेसेल संधि के अधीन आनेवाले खतरनाक अपशिष्टों और पदार्थों की सूची बनाने को कहा गया।

मार्गदर्शक सिद्धांत

यह दस्तावेज, जलपोतों के संपूर्ण एवं आंशिक विखंडन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबंध हेतु तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धांत (आगे इसे "मार्गदर्शक सिद्धांत" कहा गया है), को उस उद्देश्य से तैयार किया गया कि ताकि इससे उन देशों को मार्गदर्शन मिल सके जो जलपोत विखंडन सुविधाएं स्थापित करना चाहते हैं। ये मार्गदर्शक सिद्धांत उन कार्यप्रणालियों, प्रक्रियाओं और कार्यविधियों के बारे में जानकारी एवं सिफारिशें देते हैं, जो पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबंधन हेतु लागू की जानी हैं। ये मार्गदर्शक सिद्धांत पर्यावरणीय निष्पादन के मानिटरण और सत्यापन के लिए भी परामर्श देते हैं।

बेसेल संधि के संदर्भ में ईएसएम को इस तरह परिभाषित किया गया है:

धारा 2, पैरा 8 के अनुसार "खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों और अन्य पदार्थों का पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबंध” से तात्पर्य है "खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों और अन्य पदार्थों का प्रबंधन इस तरीके से करना कि वह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को इन अपशिष्ट पदार्थों के कारण होनेवाले हर प्रतिकूल प्रभाव से बचाए"।

मूलभूत एहतियाती कदम न उठाने से कर्मियों की सुरक्षा दांव पर लग जाती है। जलपोतों को डीकमिशन करने के लिए उचित मार्गदर्शक सिद्धांत न होने के कारण जलपोतों को विखंडन के लिए भेजने के पूर्व उन पर आवश्यक तैयारियां करना संभव नहीं होता और इसलिए जलपोत स्वयं भी खतरों से भरे पिटारे होते हैं। जोखिक कम करने या उन्हें पूर्णतः दूर करने के मूलभूत कदम भी नहीं उठाए जाते और इससे अंततः दुर्घटनाएं होकर रहती हैं। कार्य प्रणालियों में परस्पर समायोजन का अभाव, सुविधाओं का अभाव और सुरक्षा नियंत्रण का अभाव, ये सब भी जोखिम के विभिन्न अंग हैं। स्वास्थ्य संबंधी सबसे प्रमुख चिंता का विषय है हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आना, स्वच्छता की अपर्याप्त सुविधाएं और कार्य प्रचालन का स्वरूप ही (इसमें कठोर श्रम की आवश्यकता पड़ती है और भारी-भरकम वस्तुओं को उठाना पड़ता है)। जलपोत विखंडन इकाइयों से निकलनेवाले प्रदूषकों के सामान्य संपर्क में आना इन इकाइयों के चारों ओर रहनेवाले लोगों के स्वास्थ्य को जोखिम में डाल सकता है। जलपोत विखंडन कर्मी और स्थानीय समुदाय के लोग पीसीबी, पीएएच, भारी धातुएं और एसबेस्टोस जैसे कैंसर लानेवाले पदार्थों (कार्सिनोजेन) और अन्य हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आ सकते हैं। इन पदार्थों के कारण होनेवाले हानिकारक परिणाम सुपरिचित हैं। ये प्रभाव काफी गंभीर हो सकते हैं और ये अगली पीढ़ियों को स्थानांतरित हो सकते हैं। ये मार्गदर्शक सिद्धांत इस समय जलपोतों को पुनश्चक्रण इकाई में भेजने के पूर्व उनसे खतरनाक पदार्थों को जहां तक हो सके हटाने के उपायों पर प्रकाश नहीं डालते हैं। लेकिन, बेसेल संधि के पक्षों का यह मानना है कि जलपोतों के पुनश्चक्रण से जुड़ी समस्याओं के समाधान हेतु इस तरह अपशिष्ट पदार्थों को कम करने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत गढ़ना बहुत ही आवश्यक है। आईएमओ/एमईपीसी इस मुद्दे तथा इससे संबंधित अन्य मुद्दों पर काम कर रहे हैं। वे अल्पकालिक और दीर्घकालिक कार्रवाई की योजनाएं विकसित कर रहे हैं। इसके साथ ही, इन मार्गदर्शक सिद्धांतों में जलपोत पुनश्चक्रण से जुड़े व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के पहलुओं पर गहराई से चर्चा नहीं हुई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस तरह के मार्गदर्शक सिद्धांत तैयार करने का कार्यभार संभाला है। जब ये सिद्धांत तैयार हो जाएंगे, इनका यहां समावेश किया जा सकता है।

बेसेल संधि के सचिवालय (एसबीसी) ने युनेप के प्रौद्योगिकी, उद्योग और अर्थशास्त्र विभाग (युनेप/डीटीआईई) से अनुरोध किया है कि वह जलपोतों के विखंडन के पश्चात डाउनस्ट्रीम पुनश्चक्रण परिचालनों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत विकसित करने के कार्य को संयुक्त रूप से हाथ में लिए जाने की संभावनाओं पर विचार करे।

यहां जिन विषयों को लिया गया है वे मात्र जलपोत विखंडन के तकनीकी और कार्यप्रणालीय पहलुओं से संबंधित हैं। यह मान लिया गया है कि खतरनाक अपशिष्ट के रूप में जलपोतों के निर्यात से जुड़े कानूनी प्रश्नों का बेसेल संधि के कानूनी कार्य दल द्वारा निरीक्षण अभी बाकी है।

इन मार्गदर्शक सिद्धांतों का अनुप्रयोग

ये मार्गदर्शक सिद्धांत वर्तमान जलपोत विखंडन सुविधाओं और नई सुविधाओं दोनों पर लागू होते हैं। वर्तमान कार्यप्रणालियों का उल्लेख वर्तमान सुविधाओं में ईएसएम सिद्धांतों को सुनियोजित तरीके से लागू किए जाने की प्रक्रिया के शुरुआती बिंदु के रूप में किया गया है। यह प्रक्रिया वर्तमान कार्यप्रणालियों और आदर्श सुविधा में जो भेद है, उसे रेखांकित करती है। नई सुविधाओं से आशा की जाती है कि वे आदर्श सुविधा के मानकों का अनुपालन करेंगी।

बाहरी कड़ियाँ

संस्थाएँ